खाटू श्याम कथा हिंदी में

भारतीय संस्कृति में प्रतीकों का अत्यंत महत्व है। ये कथाएं हमें न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं, बल्कि हमें जीवन के मूल्य और धर्म के महत्व को भी समझाती हैं।

इन दिनों में से एक महत्वपूर्ण कथा है "खाटू श्याम कथा"। यह कथा भगवान के अवतार और उनकी लीलाओं को संजीवनी देती है और लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती है।

"खाटू श्याम कथा" में भगवान कृष्ण के अवतार को विशेष रूप से वंशानुक्रमण किया गया है। इस कथा में कई रोचक और प्रेरणादायक घटनाएँ हैं जो धार्मिक उत्साह और श्रद्धा को दर्शाती हैं। यह कथा उन लोगों के लिए भी एक मार्गदर्शन है जो धर्म की प्रेरणा कर रहे हैं या अपने जीवन में धार्मिक तत्वों को समर्पित करने की इच्छा रखते हैं।

खाटू श्याम कथा

महाभारत काल में लगभग पांच हज़ार वर्ष पहले एक महान आत्मा का अवतार हुआ था जिसे हम भीम पौत्र बैरवीक के नाम से जानते हैं, जो महीसागर संगम स्थित गुप्त क्षेत्र में नवदुर्गाओं की सात्विक और निष्काम भक्ति कर बैरवीक ने दिव्य बल और तीन तीर व धनुष प्राप्त किए थे।

कुछ वर्ष बाद कुरुक्षेत्र में उपलब्ध तथाकथित स्थान पर युद्ध के लिए कौरव और पांडवों की सेनाएं एकत्रित हुई। युद्ध का शंखनाद होने वाला ही था कि इस वृतांत वीरबीर को जाना गया और उन्होंने माता के आशीर्वाद से युद्धभूमि की ओर प्रस्थान किया। उनका इरादा था कि युद्ध में जो भी हारेगा उनकी सहायता करूंगा। जब भगवान श्री कृष्ण को यह वृत्तांत ज्ञात हुआ तो उन्होंने सोचा कि ऐसी स्थिति में युद्ध कभी समाप्त नहीं होने वाला। अतः उन्होंने ब्राह्मणों का वस्त्र धारण कर बर्बरीक का मार्ग रोकने के लिए उनसे पूछा कि आप कहां प्रस्थान कर रहे हैं। बर्बरीक ने अपना ध्येय बताया कि वह कुरुक्षेत्र जाकर अपना कर्तव्य निभाएंगे और इस पर ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण ने उन्हें अपना कौशल दिखाने को कहा। बर्बरीक ने एक ही तीर से पेड़ के सभी पत्तों को भेदते हुए एक पत्ते के नीचे दबा दिया था जिसे श्री कृष्ण ने अपने पत्तों के नीचे दबा दिया था। बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वह अपने पैर के पत्ते के ऊपर से हटकर आपका पैर घायल हो सकता है।

श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया और बर्बरीक से एक वरदान मांगा। बर्बरीक ने कहा हे यजमान आप जो चाहें मांग सकते हैं मैं वचन का पूर्ण पालन करूंगा। ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने शीशा दान दिया। यह सुनकर बर्बरीक तनिक भी प्रसन्न नहीं हुआ, परन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने वास्तविक रूप में दर्शन देने की बात की, क्योंकि कोई भी साधारण व्यक्ति यह दान नहीं मांग सकता। तब श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए। उन्होंने महाबली, त्यागी, तपस्वी वीर बर्बरीक का मस्तक रणचंडिका को अर्पित करने के लिए प्रार्थना की और साथ ही यह भी कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाओगे। मेरी ही शक्ति तुममें निहित होगी। देवगणतुम मस्तक की पूजा करेंगे जब तक यह पृथ्वी, नक्षत्र, चंद्रमा तथा सूर्य रहेंगे तब तक तुम, लोगों के द्वारा मेरे श्री श्याम रूप में पूजनीय रहोगे। मस्तक को अमृत से सींचाऔर अजर अमर कर दिया। मस्तक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा एवं युद्ध के साक्षी भी रहे। युद्ध के बाद महाबली वीरबलीक कृष्ण से आशीर्वाद लेकर अंतर्ध्यान हो गए।

बहुत समय बाद कलयुग का प्रसार बढ़ते ही भगवान श्याम के अवशेषों से भक्तों का उद्धार करने के लिए वह खाटू में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए। एक गाय घर जाते समय रास्ते में एक स्थान पर चारों ओर थनों से दूध की धाराएं बहती थी। जब ग्वाले ने यह दृश्य देखा तो सारा वृत्तांत भक्त नरेश (खंडेला के राजा) को प्रभावित किया। राजा भगवान का स्मरण कर भाव विभोर हो गया। स्वप्न में भगवान श्री श्याम देव ने प्रकट होकर कहा कि मैं श्यामदेव हूं जिस स्थान पर गाय के दूध से दूध पीता हूं, वहां मेरा शालिग्राम शिलारूप विग्रह है, खुदाई करके विधि विधान से प्रतिष्ठित करवा दो। मेरे इस शिला विग्रह को पूजने जो खाटू आएंगे, उनका सब प्रकार से कल्याण होगा। खुदाई से प्राप्त शिलारूप विग्रह को विधिवत शास्त्रों के अनुसार प्रतिष्ठित किया गया।

चौहान राजपूतों में नर्बदार कंवर हुई है, जिन्होंने इस विग्रह को विनाश के बचाने हेतु शुले में रखा एवं सेवा पूजा की। औरंगजेब के शासनकाल में पुराने मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके बाद जहां भगवान श्री श्याम देव का विग्रह स्थापित किया गया, वह आज भी विद्यामान है जहां देश के सभी कोनों से श्याम प्रेमी पूजा अर्चना एवं दर्शनार्थ आते हैं। अब नर्मदा कंवर के खानदान के ही चौहान राजपूत पुजारी हैं।
जय श्री श्याम !

समापन:

"खाटू श्याम कथा" एक ऐसी कथा है जो हमें अनेक शिक्षा देगी। यह हमें धर्म के महत्व को समझाता है, परमात्मा के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है, और हमें धार्मिक जीवन की प्रेरणा प्रदान करता है।

यह कथा हमें बताती है कि कैसे भगवान के भक्त अपने धार्मिक आदर्शों को पकड़कर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। इसके माध्यम से हमें यह भी सिखाया जाता है कि यदि हम सच्चे मन से परमात्मा की भक्ति करें तो वह हमेशा हमारे साथ होता है।

इसलिए, "खाटू श्याम कथा" हमें धर्म, आध्यात्मिकता और श्रद्धा के महत्व को समझाती है, और हमें सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

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