हिंदू धर्म में व्रत एकादशी एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि यह भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी मानी जाती है। एकादशी व्रत कथा का मूल उद्देश्य भक्तों को अधर्म से धर्म की ओर ले जाना है। इस व्रत का पालन करने से समस्त पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
व्रत एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब संसार में अधर्म का प्रकोप बढ़ गया था। धरती पर अंधकार का आतंक फैला हुआ था और धर्म का विनाश हो रहा था। तब भगवान विष्णु ने अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए माता एकादशी का प्राकट्य किया।
माता एकादशी ने राक्षस मुर का वध कर संसार को अधर्म से मुक्त किया। इसलिए, इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को जीवन में सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
एकादशी व्रत का विधि-विधान भी अत्यंत सरल और प्रभावशाली है। इस दिन प्रातःकाल स्नानादि व्रत का संकल्प लिया जाता है और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। पूरे दिन उपवास रखकर रात को जागरण और भगवान का कीर्तन किया जाता है। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करके अन्न-जल ग्रहण किया जाता है।
व्रत कथा
एकादशी व्रत कथा!
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! एक हजार यज्ञ और लाखों गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया गया है। तो यह तिथि सब तिथियों से उत्तम कैसे हुई, बताइए।
भगवान कहने लगे- हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! सभी देवता मृत्यु से पीड़ित होकर लोक में फिर से रहते हैं। तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! तीन लोगों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ।
वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवाजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुँचे। वहाँ भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे, कि हे देवदूत द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से प्रभावित होकर हम सब आपकी शरण में आते हैं।
आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सभी शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके शिवत्रि लोगों में चर तथा अचार कुछ भी नहीं है।
हे भगवान्! दैत्यों ने हमको स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें।
इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझसे कहो।
भगवान के ऐसे वचन सुनकर इन्द्र बोले- भगवान! प्राचीन काल में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसकी महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। यह चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से आशा करके वहां अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इन्द्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चन्द्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है।
सूर्य स्वयं ही प्रकाश बनाता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकन्दन! उस दुष्ट कोवले देवता को अजेय बनाइये।
यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्यमुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयानक गरजना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में चलते हैं। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आते हैं तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।
भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बाँध दिया। बहुत-से दैत्य मारे गए, केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहता है। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते हैं वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता है। उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया, फिर भी वह निरंतर युद्ध करती रही। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ।
10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा मगर मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रीकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुन्दर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए। मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से विकृत, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकार दिया, युद्ध किया और उसे घातक घाट उतार दिया।
श्री हरि ने जब योगनिद्रा की गोद से उठकर कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, तो आप सभी बातों को जानकर उस देवी से पूजित होंगे। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं।
जय श्री हरि !
व्रत कथा - निष्कर्ष
एकादशी व्रत का पालन करने से न केवल व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं, बल्कि उस व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि भी आती है। भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करके व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एकादशी व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में सत्य, धर्म और न्याय का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान विष्णु के प्रति निष्ठा श्रद्धा और विश्वास से ही हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। इस व्रत का पालन करने से हम अपने पापों से मुक्त होकर एक नये और शुद्ध जीवन की शुरुआत कर सकते हैं।
व्रत का महत्व इसलिए भी बढ़ता है क्योंकि यह भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी है। यह व्रत हमें अधर्म से धर्म की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है और हमें यह सिखाता है कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और विश्वास से ही हम अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकते हैं।
अतः, एकादशी व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाकर हम अपने जीवन को सच्चे अर्थों में धन्य बना सकते हैं और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।