सूर्य चालीसा (सूर्य चालीसा) हिंदी और अंग्रेजी में

हिंदू आध्यात्मिकता के ताने-बाने में, दिव्य देवताओं की पूजा का बहुत महत्व है। इनमें सूर्य देवता का स्थान सर्वोपरि है।

सूर्य चालीसा, सूर्य को समर्पित एक भक्ति भजन है, जो तेजस्वी देवता के प्रति भक्ति और श्रद्धा का सार प्रस्तुत करता है।

इस ब्लॉग में, हम सूर्य चालीसा के आध्यात्मिक महत्व पर चर्चा करेंगे तथा हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में इसके छंदों का अन्वेषण करेंगे।

श्री सूर्य देव चालीसा हिंदी में

॥ दोहा ॥
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग,
पद्मासन स्थित ध्याऐ, शंख चक्र के संग॥

॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥

भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनुर विभाकर॥

विवस्वान आदित्य विक्रतन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥

अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 4

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकाहि,
मुनिगण होत प्रसन्न मोदलहि॥

अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥

मण्डल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥८

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥

पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥

चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नासावै॥१२

नमस्कार, यह चमत्कार है,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥

सेवै भानु तुमहिं मन लाय,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाया॥

बारह नाम उच्चारण करते,
सहस जन्म के पातक आते॥

उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सुधहि छन॥१६

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥

अर्क शीशे को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥

भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥२०

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कान्धे लोभा॥

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥

दो हाथ पर रक्षा करन,
भानुमान उररसर्म सुदरचन॥२४

बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमन्ह, रहत मन मुदभर॥

जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥

विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥

सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥२८

हम जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥

दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मन्हा जापै॥

अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥

ग्रह गन ग्रसि नस्पवत जाही,
कोटि बार मैं प्रणवौं ताही॥३२

मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥

भक्ति भाव्युत पूर्ण नियम सों,
दूर हत्त्सो भवके भ्रम सों॥

परम धन्य पुत्र नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हरि॥३६

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयेन॥

भानु उदय बैसाखगीवै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥

यम भादों अश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥

अघन भिन्न विष्णु हैं पूषां,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥४०

॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होनहिं सदा कृतकृत्या॥

सूर्य चालीसा अंग्रेजी में

॥दोहा ॥

कनक बदन कुंडला मकर, मुक्ता माला अंगा।

पद्मासन स्थिता ध्याये, शंख चक्र के संग॥

॥ चौपाई ॥

जय सविता जय जयति दिवाकरा!। सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिराहारा॥

भानु! पतंगा! मरीचि! भास्कर!। सविता हंसा! सुनुरा विभाकरा॥

विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचना॥

अम्बरमणि! खगा! रवि कहालते। वेद हिरण्यगर्भ कहा गते॥

सहस्त्रांशु प्रद्योतना कहिकाहि। मुनिगणा होता प्रसन्न मोदलाहि॥

अरुणा सदृशा सारथि मनोहरा। हंकाता हया सता चढ़ि रथा परा॥

मंडला की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरि बलिहारी॥

उच्चैःश्रवा सदृशा हय जोते। देखि पुरन्दरा लज्जिता होत॥

मित्रा मरीचि भानु अरुणा भास्करा। सविता सूर्य अर्का खगा कलिकारा॥

पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकाई॥

द्वादशा नाम प्रेमा सो गावैं। मस्तका बरहा बर नववैन॥

चर पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघा पुंज नासवै॥

नमस्कार को चमत्कार यहाँ। विधि हरिहर को कृपासारा यहा॥

सेवै भानु तुमहिं मन लै। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पै॥

बरहा नाम उच्चरण करते। सहसा जनमा के पताका तरते॥

उपाख्यान जो करते तावजाना। रिपु सो जमालहाते सोतेहि छना॥

धन सुता जूता परिवार बढातु है। प्रबल मोह को फंदा कटतु है॥

अर्क शिशा को रक्षा करते। रवि ललता पर नित्य बिहारते॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजता। कर्ण देसा पर दिनकर छाजता॥

भानु नासिका वसाकरहुनिता। भास्करा कराता सदा मुखको हिता॥

ओन्था रहै परजन्य हमारे। रसना बिच तीक्ष्ण बसा प्यारे॥

कंथा सुवर्णा रेती की शोभा। तिग्मा तेजसः कंधे लोभा॥

पूषां बहु मित्र पिठहिं पारा। त्वष्टा वरुणा रहाता सु-उष्णकरा॥

युगल हठ परा रक्षा करण। भानुमान उरसर्मा सु-उदारचना॥

बसता नाभि आदित्य मनोहरा। कटिमन्हा, राहता मन मुदभरा॥

जंघा गोपति सविता बसा। गुप्त दिवाकरा करता हुलासा॥

विवस्वाना पद की रखवारी। बहारा बसते निता तम हरि॥

सहस्त्रांशु सर्वांग संहारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

आसा जोजना अपने मन माहि। भय जगबिचा करहुँ तेहि नाहि॥

दद्रु कुष्ठ तेहि कबहु न व्यापै। जोजना याको मन मन्हा जपै॥

अन्धकारा जगा का जो हरता। नव प्रकाश से आनंद भारत॥

ग्रहा गण ग्रसि न मितवता जहि। कोटि बारा मैं प्रणवौं ताहि॥

मंदा सदृशा सुता जगा मे जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके॥

धन्य-धन्य तुमा दिनमणि देवा। किया करता सुरमुनि नर सेवा॥

भक्ति भावयुता पूर्ण नियम सो। दूरा हतातसो भवके भ्रम सो॥

परमा धन्य सो नर तानाधारी। है प्रसन्न जेहि पर तम हरि॥

अरुणा मघा महान सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयना॥

भानु उदय बैसाखा गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥

यम भादो आश्विन हिमरेता। कातिका होता दिवाकरा नेता॥

अगहाना भिन्न विष्णु हैं पूसाहिं। पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं॥

॥दोहा ॥

भानु चालीसा प्रेम युता, गवाही जे नर नित्या।

सुख सम्पत्ति लहि बिबिधा, होन्हि सदा कृतकृत्या॥

भक्ति की ताने-बाने में सूर्य चालीसा एक उज्ज्वल धागे की तरह चमकती है जो भक्त को सूर्य की दिव्य चमक से जोड़ती है।

हिंदी और अंग्रेजी दोनों में गूंजने वाले इसके श्लोकों के साथ, यह आध्यात्मिक ज्ञान और ब्रह्मांडीय संबंध का एक प्रकाश स्तंभ है। दिव्य चमक को अपनाएँ, और सूर्य चालीसा को आंतरिक शांति और समृद्धि की ओर अपने मार्ग को रोशन करने दें।

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