श्री सिद्धिविनायक आरती हिंदी और अंग्रेजी में

"जय देव जय देव" का लयबद्ध जाप हवा में गूंजता है, तथा हृदय को भक्ति और श्रद्धा से भर देता है।

श्री सिद्धिविनायक आरती भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखती है, जो बाधाओं को दूर करने वाले भगवान गणेश से आशीर्वाद मांगती है।

चाहे अंग्रेजी में गाई जाए या हिंदी में, यह पवित्र आरती ईश्वर के प्रति आस्था और कृतज्ञता की शाश्वत अभिव्यक्ति है।

श्री सिद्धिविनायक आरती हिंदी में

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची ।
नूरवी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची ।
सर्वांगी सुन्दर उति शेंदु राची ।
कंठी झलके माल मुकताफळांची ।
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शनमात्रे मनः,
वॅड
जय देव जय देव ॥

रत्नखचित् फ़रा तुझ गौरीकुमारा ।
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा ।
हीरे जड़ित मुकुट शोभतो बरदास ।
रुन्झुणति नूपुरे चरनी घागरिया ।
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शनमात्रे मनः,
: ... : ...
जय देव जय देव ॥

लम्बोदर पीताम्बर फनीवर वंदना ।
सरल ध्वनि वक्रतुंडा त्रिनयना ।
दास रामाचा वाट पाहे सदना ।
संकटी पावावे निर्वाणी, रक्षावे सुरवर वंदना ।
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शनमात्रे मनः,
: ... : ...
जय देव जय देव ॥

॥ श्री गणेशाची आरती ॥
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको ।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरीहरको ।
हाथ के लिए गुड लड्डू साने सुरवरको ।
महिमा कहे न जय लागत वाले पाडको ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य हैं आपके दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरी ।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी ।
कोटीसूरजप्रकाश आबी छबी तेरी ।
गण्डस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारी ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य हैं आपके दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

भवभगत से कोई शरणागत आवे ।
संतत संपत सभहीं पावे ।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे ।
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य हैं आपके दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

॥ श्री शंकराची आरती ॥
लवथवती विक्रळा ब्रह्माण्डी माँ,
विशेषे कंठ काला त्रिनेत्री ज्वाला
लावण्य सुन्दर मस्तकी बाला,
तेथुनिया जल निर्मल वाहे झुळझुळा ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकर ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

कर्पुरगौरा भोला नयनी विशाला,
अर्धांगी पार्वती सुमनंच्या मांळा
विभूतिचे उदळण शीतकंठ नीला,
ऐसा शंकर शोभे उमा वेल्हा॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकर ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

देवी दैत्यि सागरमृंथ पै केले,
त्यामाजी अवचित हलाहल जे उठे
ते त्वा असुरपणे प्रश्न केले,
नीलकंठ नाम प्रसिद्ध झाले ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकर ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

व्याघ्राम्बर फणिवरधर सुन्दर मदनारी,
पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी
शतकोटीचे बीज वाचे उच्चारी,
रघुकुलटिकळक रामदासा अंतरी ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकर ।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

॥ श्री देवीची आरती ॥
दुर्गे दुर्घट भारी तुजवि संसारी,
अनाथनाथे अम्बे करुणा विस्तारी ।
वारी वारिं जन्ममरणाते वारी,
हरि पड़लो अब संकट निवारी ॥
जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी ।
सुरवर-ईश्वर-वरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

त्रिभुवनी भुवनी पाहतां तुज ऎसे नहीं,
चारी श्रमले लेकिन न बोलेवे कहीं ।
सही विवाद हल हो गया,
तेतुं भक्तालागी पावसि लवलाही ॥
जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी ।
सुरवरईश्वरवरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां,
क्लेशापासून्नि सोडी तोडी भवपाशा ।
अन्वे तुजवांचून कोण पुरविल आशा,
नरहरि तल्लीन झाला पदपंकजलेशा ॥
जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी ।
सुरवरईश्वरवरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

॥ घालीन लोटांगण आरती ॥
घालीन लोटांगण, वंदीन चरण ।
डोळ्यान्नी पाहीन रुप तूं ।
प्रेमें आलिंगन, आनंदे पूजिन ।
भावें ओवाळीन म्हणे नामा ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बंधुक्ष्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

कायेन वाचा मनसेन्द्रियेवरा,
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यध्यत सकलं परस्मे,
नारायणयेति समर्पयामि ॥

अच्युतं केशवं रामनारायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचन्द्र भजे ॥

हरे राम हर राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

श्री सिद्धिविनायक आरती अंग्रेजी में

सुख कर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नचि ।
नूरवी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची ।
सर्वांगी सुन्दर उत्तिषेन्दु राची ।
कंठी झलके माड़ मुख्ता पढांची ।
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शन मात्रे मान,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

रत्नखाचित् फला तुझ गौरीकुमारा ।
चंदनाची उठी कुमकुम के शर ।
भाड़े जदित मुकुट शोभतो बारा ।
रुंझुनति नुपूरे चरणि घाघरिया ।
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शन मात्रे मान,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

लंबोदर पीताम्बर फणीवर वंदना ।
सरल सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयन ।
दास रामाचा वट पाहे सदना ।
संकटि पाववे निर्वाणी रक्षवे सुरवर वंदना ।
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय मंगल मूर्ति ।
दर्शन मात्रे मान,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

॥श्री गणेशाची आरती॥

शिन्दुर लाल चढयो अच्छा गजमुखको ।
डोंडिल लाल बिराजे सुत गौरिहारको ।
हाथ लिये गुड़ लड्डू साईं सुरवरको ।
महिमा कहे न जाए लागत हूँ पड़को॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

अस्तौ सिद्धि दासी संकटको बैरी ।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी ।
कोटिसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी ।
गण्डस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारी ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

भवभगत से कोई शरणागत आवे ।
संतति सम्पत्ति सबहिं भरपुर पावे ।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे ।
गोसाविनंदन निशिदिन गुण गावे ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

॥ श्री शंकराची आरती ॥
लवथवती विकराला ब्रह्माण्डी माला,
विशेषे कंठ कला त्रिनेत्री ज्वाला
लावण्या सुन्दर मस्तकी बाला,
टेथुनिया जला निर्मला वाहे झुलाझुला ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय श्री शंकराचार्य ।
आरती ओवलु,
तुजा कर्पूरगौरा
जय देव जय देव ॥

कर्पूरगौरा भोला नयनी विशाला,
अर्धांगिनी पार्वती सुमनंच्या माला,
विभूतिचे उद्धालना शितिकंठ नीला,
ऐसा शंकर शोभे उमावेला ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय श्री शंकराचार्य ।
आरती ओवलु,
तुजा कर्पूरगौरा
जय देव जय देव ॥

देवी दैत्यि सागरमन्थना पै केले
त्यामाजी अवचिता हलाहल जे उथल
ते त्व असुरपणे प्रश्न केले,
नीलकण्ठ नाम प्रसिद्द झले ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय श्री शंकराचार्य ।
आरती ओवलु,
तुजा कर्पूरगौरा
जय देव जय देव ॥

व्याघ्राम्बरा फणीवरधरसुन्दर मदनारि,
पंचानन मनमोहन मुनिजन सुखकारी
शतकोतिचे बीज वचे उच्चरि,
रघुकुलतिलका रामदास अंतरी ॥
जय देव जय देव..

जय देव जय देव
जय श्री शंकराचार्य ।
आरती ओवलु,
तुजा कर्पूरगौरा
जय देव जय देव ॥

॥श्री देवीची आरती॥
दुर्गे दुर्गत भारी तुजवीं संसारी,
अनाथनाथे अम्बे करुणा विस्तारी ।
वारि वारि जनम मरंते वारि,
हरि पड़लो अता संकट निवारी ॥
जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथिनी ।
सुरवर ईश्वर वरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

तुजावीन भुवनि पहता तुज ऐसे नहीं,
चारि श्रमले परंतु ना बोलवे कहिन ।
सही विवाद करिता पडिले प्रवाहि,
ते तु भक्तलागि पावसि लवलाहि ॥
जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथिनी ।
सुरवर ईश्वर वरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासा,
क्लेशपासुनि सोदिवि तोदि भावपाशा ।
अम्बे तुज्वाचुन कोन पुरविल आशा,
नरहरि तल्लीन झाला पादपंकजलेषा ॥
जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथिनी ।
सुरवर ईश्वर वरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

॥घालिन लोटांगन आरती॥
घालिन लोतांगन वंदिन चरण ।
डोल्याणी पाहिं रूप तुझे ।
देव प्रेमे आलिंगन आनंदे पुजिन ।
भावे ओवलिन म्हाने नामा ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

कायेना वाचा मनसेन्द्रियेन्वा ।
बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावत ।
करोमि यध्यत् सकलं परस्मै ।
नारायणयेति समर्पयामि ॥

अच्युतं केशवं रामनारायणम् ।
कृष्णदामोदरं वासुदेवं भजे ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभम् ।
जानकी नायकं रामचन्द्र भजे ॥

हरे राम हरे राम राम,
राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

श्री सिद्धिविनायक आरती क्यों गाई जाती है:

श्री सिद्धिविनायक आरती, जिसे "जय देव जय देव" के नाम से भी जाना जाता है, भगवान गणेश के लिए एक शक्तिशाली आह्वान है, जो अपने ज्ञान, शुभता और परोपकार के लिए पूजनीय देवता हैं।

इस आरती को गाना ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण की हार्दिक अभिव्यक्ति है, जिसमें सफलता, समृद्धि और जीवन की यात्रा में बाधाओं को दूर करने का आशीर्वाद मांगा जाता है।

मधुर छंदों और लयबद्ध मंत्रों के माध्यम से भक्त भगवान सिद्धिविनायक की दिव्य उपस्थिति से जुड़ते हैं और शांति, सद्भाव और आध्यात्मिक उत्थान की भावना का अनुभव करते हैं।

निष्कर्ष:

जैसे ही "जय देव जय देव" का नारा आकाश में विलीन होता है, दिल शांति और दिव्य कृपा की भावना से भर जाता है। श्री सिद्धिविनायक आरती, चाहे अंग्रेजी में गाई जाए या हिंदी में, भाषा की बाधाओं को पार करती है, भक्तों को आस्था और भक्ति की सामूहिक अभिव्यक्ति में एकजुट करती है।

अपने शाश्वत छंदों और आत्मा को झकझोर देने वाली धुनों के माध्यम से यह आरती भगवान गणेश से आशीर्वाद मांगती है, जो हमें जीवन की चुनौतियों से गुजरने में मार्गदर्शन प्रदान करती है तथा दिव्य प्रकाश से हमारा मार्ग प्रकाशित करती है।

आइए हम ईमानदारी और भक्ति के साथ भगवान सिद्धिविनायक की स्तुति गाते रहें तथा आनंद, प्रचुरता और आध्यात्मिक पूर्णता से भरे जीवन के लिए उनका आशीर्वाद मांगें।

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