श्री सत्यनारायण कथा प्रथम अध्याय (श्री सत्यनारायण कथा - प्रथम अध्याय) हिंदी में

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से श्री सत्यनारायण कथा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह कथा न केवल रचनात्मकता के लिए आध्यात्मिक शांति का स्रोत है, बल्कि इसे सुनने और पढ़ने से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति भी होती है।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पालन प्राचीन काल से होता आ रहा है, और यह कथा विशेष रूप से पूर्णिमा के दिन से मनाई जाती है। इस कथा का पहला अध्याय भगवान विष्णु के सत्य रूप की महिमा का वर्णन करता है। इसमें भगवान सत्यनारायण की कथा और उनकी लीला का वर्णन है, जो हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

श्री सत्यनारायण कथा का प्रथम अध्याय विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, जो जीवन में आने वाली देवताओं का सामना करने के लिए भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं।

इस अध्याय में एक गरीब ब्राह्मण की कथा है, जो भगवान सत्यनारायण की कृपा से उनके जीवन में अद्भुत परिवर्तन लाता है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सत्य, भक्ति और श्रद्धा से भगवान की कृपा सदा हमारे साथ रहती है और हमें जीवन की सभी बाधाओं को पार करने की शक्ति देती है।

श्री सत्यनारायण कथा - प्रथम अध्याय

एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अट्ठासी हज़ार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्य को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऐसा बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य फल और मनोवांछित फल भी मिल जाए। इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं।

सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले - हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऐसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मुनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था। आप सब इसका ध्यान से सुनें -

एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा के लिए अनेकों लोगों को चंगाई देते हुए मृत्युलोक में आ पहुँचे। यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा। उनका दुःख देखकर नारद जी सोचते थे कि कैसा यत्न किया जाए, निश्चित रूप से मनुष्य के दुखों का अंत हो जाए। इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए। वहाँ देवों के ईश भगवान नारायण की स्तुति करने वाले हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, तथा गले में वरमाला पहने हुए थे।

स्तुति करते हुए नारद जी बोले - हे प्रभु! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं मिल सकती। आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है। निर्गुण स्वरूप सृष्टि के कारण भक्तों के दुःख को दूर करने वाले, आपको मेरा नमस्कार है।

नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले - हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए तैयार हैं? उसे नि:संकोच कहो। इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के कारण अनेकों दुःख से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! आप मुझ पर दया करते हैं तो बताइए कि वह अपने छोटे से प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं।

श्रीहरि बोले - हे नारद! मनुष्यों की भावनाओं के लिए तूने बहुत अच्छी बात पूछी है। जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात कहता हूँ उसे सुनो। स्वर्ग लोक एवं मृत्यु लोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य देने वाला है। आज प्रेमवश मैं उसे छोड़ता हूँ। श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छे प्रकार विधानपूर्वक करके मनुष्य को तुरन्त ही यहाँ सुख भोग कर, मृत्यु पर मोक्ष पाता है।

श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ।

नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले - दुःख व शोक को दूर करने वाला यह व्रत सभी स्थानों पर विजय पाने वाला है। मनुष्य को भक्ति और श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ करना चाहिए। भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूं का आटा सवाया लें। गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर तथा सभी भक्ति योग्य पदार्थों को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँगे।

.. ब्राह्मणों सहित बंधु-बांधवों को भी भोजन कराएँगे , उसके बाद स्वयं भोजन करेंगे। भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं। इस तरह से सत्यनारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सभी इच्छाएँ निश्चित रूप से पूर्ण होती हैं। इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है।

निष्कर्ष:

श्री सत्यनारायण कथा के प्रथम अध्याय का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से ही भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

भगवान सत्यनारायण की कथा हमें यह भी बताती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, अगर हम सत्य के मार्ग पर चलते हैं और भगवान की भक्ति करते हैं, तो हमें सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति अवश्य होगी।

इस कथा का अनुसरण करके हम अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और भगवान की अनंत कृपा का अनुभव कर सकते हैं। इसलिए, श्री सत्यनारायण व्रत कथा को अपने जीवन में अपनाएं और भगवान सत्यनारायण की कृपा से अपने जीवन को सफल और सुखमय बनाएं।

ब्लॉग पर वापस जाएँ