श्री गणेशपञ्चरत्नम् एक अद्वितीय स्तोत्र है जिसे महान आचार्य आद्य शंकराचार्य ने रचित किया था। यह स्तोत्र भगवान गणेश को समर्पित है, जो सभी विघ्नों के हरता और समस्त सुख-समृद्धि के दाता माने जाते हैं। "मुदाकारात्तमोदकं" इस स्तोत्र का पहला श्लोक है, जो भगवान गणेश के अनंत गुणों और महिमा का वर्णन करता है। यह श्लोक माता पढ़े से ही अद्भुत शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
इस स्तोत्र के प्रत्येक शब्द में गहन आध्यात्मिकता और भक्ति का समावेश है। "मुदाकारात्तमोदकं" का अर्थ है - "जो अपने हाथ में मोदक (लड्डू) लिए हुए होते हैं और अत्यंत प्रसन्न रहते हैं।" भगवान गणेश की इस रूप में पूजा करने से भक्तों के जीवन में आनंद, सुख और समृद्धि का वास होता है।
श्री गणेशपञ्चरत्नम् न केवल भक्ति और श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, बल्कि यह हमारे मन और आत्मा को शुद्ध करने का साधन भी है। यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि कैसे भगवान गणेश की कृपा से हम अपने जीवन के सभी विघ्नों को दूर कर सकते हैं और एक सुखमय जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।
श्री गणेशपञ्चरत्नम् - मुदकरत्तमोदकं
श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र!
मुदकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावत्संकं विलासिलोरक्षकम् ।
अनायकैनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥
नतेतरातिभिकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधिश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २॥
समस्तलोकशंकरं अवश्यदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरेभवकत्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारीग्रवचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ ४॥
नितांतकान्तदंतकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृण्तनम् ।
हृदन्त्रे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्तत्म् ॥५॥
महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजाल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६॥
निष्कर्ष
श्री गणेशपञ्चरात्नम् का "मुदाकारात्तमोदकं" श्लोक न केवल एक धार्मिक स्तोत्र है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन में शांति, समृद्धि और सुख की प्राप्ति का माध्यम भी है। इस श्लोक का नियमित पाठ हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक जागृति लाता है।
भगवान गणेश की कृपा से, हम सभी प्रकार की बाधाओं और वस्तुओं का सामना करने में सक्षम होते हैं। "मुदाकारात्तमोदकं" श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में कैसे खुश रहना है और हर स्थिति में भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करना है।
यह स्तोत्र हमारे मन और आत्मा को शुद्ध करता है और हमें आध्यात्मिक विकास की दिशा में प्रेरित करता है। इसके नियमित पाठ से न केवल हमारी व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं सुलझती हैं, बल्कि हमारे आस-पास का वातावरण भी पवित्र और शांतिपूर्ण हो जाता है।
अंततः, श्री गणेशपञ्चार्त्नम् का "मुदाकारात्तमोदकं" श्लोक हमें यह संदेश देता है कि भगवान गणेश की भक्ति और श्रद्धा से हम अपने जीवन को सही मार्ग पर ले जा सकते हैं और हर प्रकार के विघ्नों को दूर कर सकते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करते समय, हमें अपनी आस्था और विश्वास को मजबूत रखना चाहिए और भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करना चाहिए।
भगवान गणेश की कृपा से, हम सभी अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त करें।