हिंदू धर्म में बृहस्पति देव गुरु ग्रह के देवता हैं, जो ज्ञान, बुद्धि, धर्म, धन, यश, शिक्षा और समृद्धि के प्रतीक हैं। उनकी आरती गुरुत्वाकर्षण का महत्वपूर्ण साधन है जो भक्तों को आध्यात्मिक उद्धार और सफलता की ओर मार्गदर्शन करती है।
श्री बृहस्पति देव की आरती
जय बृहस्पति देवा,
ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
तुम पूर्ण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,
सब पटक हर्ता ।
सकल मनोरथ कृत्ति,
कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु तब प्रकाशित करें,
आकर द्घारस्ताद ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,
भक्तिन हितकारी ।
पाप दोष सब हरता,
भव बंधन हरि ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ कृत्ति,
सब संशय हारो ।
विषय विकारओ,
संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द नंजकर,
सो जुड़े पावे ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥
महत्व: श्री बृहस्पति देव जी की आरती का पाठ करने से भक्तों की पुष्टि होती है और वे आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होते हैं। इसके अलावा, इस आरती के पाठ से संतोष, सुख, धन, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
समापन: श्री बृहस्पति देव जी की आरती भक्तों को आध्यात्मिक उज्जवलता और सफलता की ओर मार्गदर्शन करती है। इस पाठ को करने से विविध प्रयासों के साथ ही भक्तों को गुरुवर के आशीर्वाद का अनुभव होता है। यह आरती भक्तों को शुभ और संतोषमय जीवन की कामना करती है।