शीतला अष्टमी / बसौड़ा व्रत कथा हिंदी में

भारतीय संस्कृति में व्रतों का महत्व अत्यंत उच्च है। इन व्रतों का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से होता है, बल्कि यह सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है।

शीतला अष्टमी, जिसे बसौड़ा व्रत भी कहा जाता है, एक ऐसा ही पर्व है जो भारतीय जनता के लिए महत्वपूर्ण है। यह व्रत मां शीतला की पूजा और उनकी कथा के माध्यम से मनाया जाता है।

शीतला अष्टमी(बसौड़ा) व्रत कथा

एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखें कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, मुझे कौन मानता है। यही शीतला माता धरती पर राजस्थान के डूंगरी गांव में आई और देखा कि इस गांव में मेरा मंदिर नहीं है, और न ही मेरी पूजा होती है।

माता शीतला गांव की चट्टानों में घूम रही थीं, तभी किसी ने एक मकान के ऊपर से चावल की गुफा पानी (मांड) नीचे फेंका । वह उपरता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में फोफोले/छाले पड़ गए। शीतला माता के सम्पूर्ण शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गाँव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की सहायता नहीं की। वहीं उनके घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढ़ी माई तो बहुत जल गई है। इसका सम्पूर्ण शरीर में तपन है। इसका पूरे शरीर में फोफोले पड़ गए है। यह तपन सहन नहीं कर पा रही है।

तब उस कुम्हारन ने कहा हे माँ! तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी बह रहा हूँ। कुम्हारन ने उस बूढ़ी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ! मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा ले। जब बूढ़ी माई ने ज्वार के तने की राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब उस कुम्हारन ने कहा - आ माँ बैठजा तेरे सिर के बाल बहुत प्यारे हैं, ला मैं तेरी चोटी गूँथती हूँ।
और कुम्हारन माई की चोटी गूठने हेतु कांगी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन की नज़र उस बूढ़ी माई के सिर के पीछे पड़ी, तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी है।


यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर दौड़ती रही और तब मैंने कहा - रुकी हुई बेटी तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नहीं हूँ। मैं शीतला देवी हूँ तो मैं इस घरती पर देख रही थी कि मुझे कौन मानता है। मेरी पूजा कौन करता है। ऐसी माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषणों से सजे सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये हुए अपने असली हीरे में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन विचार लगी कि अब मैं गरीब इन माता को कहाँ विधर्मी।
तब माता बोली - हे बेटी! तुम किस सोच में पड़ गई।
तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में दर्द बहते हुए कहा - हे माँ! मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिकी हुई है। मैं आपको कहता हूं. मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन ही।

तब शीतला माता प्रसन्न हुईं और उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गवर पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू लगाकर दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया।
और उस कुम्हारन से कहा - हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूँ, अब तू जो भी मुझ से प्रसन्न माँग लो।

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा - हे माता मेरी इच्छा है कि अब आप इसी डूंगरी गांव में स्थापित होकर दफन करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया। ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के बाद की सप्तमी को भक्ति-भाव से पूजा करे, अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही और बासी ठंडा भोजन चढ़ाए उसके घर की दरिद्रता को दूर करना एवं आपकी पूजा करने वाली महिला का अखंड सुहाग रखना, उसका भगवान सदैव भरा रहे। साथ ही जो पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहाँ बाल ना कटवाये धोबी को कपड़ा धोने ना दें और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नारियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोलीं तथास्तु! हे बेटी! जो तूने ज्ञापन किये हैं मैं सब खींचती हूँ। हे बेटी! तुम अर्शिवाद देती हो कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। उसी दिन से डूंगरी गांव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गांव का नाम शील की डूंगरी हो गया

शील की डूंगरी भारत का एक प्रमुख मंदिर है। शीतला सप्तमी के दिन यहाँ बहुत विशाल मेला लगता है।
शीतला माता की जय!

समापन:

शीतला अष्टमी या बसौड़ा व्रत भारतीय समाज में महिलाओं के बीच प्रमुख होता है, लेकिन इस पर्व को सभी को मिलाकर मनाना चाहिए।

इस अवसर पर, हमें मां शीतला की कथा को सुनकर उनकी आराधना करने का संकल्प लेना चाहिए। यह पर्व हमें स्पष्ट संदेश देता है कि धर्म और समाज के निर्माण में नारी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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