हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व है। इनमें से संकटा माता का व्रत भी बहुत प्रसिद्ध है। संकटा माता को संकट हरने वाली देवी माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उन भक्तों के लिए होता है जो अपने जीवन में किसी दुख या समस्या का सामना कर रहे होते हैं।
संकटा माता व्रत का पालन करने से भक्तों की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत की कथा सुनने और सुनने से भक्तों को अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं।
संकटा माता व्रत का आयोजन मुख्यतः मंगलवार के दिन किया जाता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और संकटा माता की पूजा-अर्चना करते हैं।
पूजा के दौरान माता की कथा का वचन भी किया जाता है। इस कथा में संकटा माता के चमत्कारिक और अद्भुत कार्यों का वर्णन होता है जो भक्तों में आस्था और विश्वास को और भी मजबूत बनाता है।
संकटा माता व्रत कथा का महत्व इतना अधिक है कि इसे सुनने से ही सभी संकटों का निवारण हो जाता है। इस व्रत कथा को सुनने से जीवन में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति का वास होता है। यह व्रत सभी उम्र के लोग, ईमानदार महिलाएं, बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ करते हैं।
संकटा माता व्रत कथा
एक बुढ़िया थी, उस बुढ़िया का एक पुत्र था जिसका नाम रामनाथ था। रामनाथ धन कमाने के लिए परदेस चले गए। बुधिया अपने बेटे के विदेश जाने के बाद बहुत चिंतित और दुःखी रहने लगी, क्योंकि की बहू उसे प्रायः नित्य खरी-खोटी सोचती थी इसीलिए बुधिया प्रतिदिन चिंतित और उदास रहती थी और घर के बाहर स्थित कुँए पर उदास रोया करती थी। बुधिया का यह क्रम रोज चलता रहा।
एक दिन सोडियम में से दी गई माँ नामक एक महिला निकली और उसने बुढ़िया से पूछा: प्यारी माँ तुम इस तरह सूखी क्यों रोती हो तब किस बात का कष्ट है तुम मुझे अपना दुःख बताओ मैंतुम्हारा दुःख दूर करने का प्रयास करूंगी।
बुधिया ने उस महिला के सवाल का कोई भी जवाब नहीं दिया और रोती ही रही। दी गई माँ बार-बार एक प्रश्न दोहराई जा रही थी। वह बुढ़िया इस बात से झुंझलाया___उस बुढ़िया ने दी की माँ से कहा: तुम मुझे बार-बार ऐसा क्यों पूछ रही हो क्या सचमुच ही तुम मेरा दुःख जानकर उसे दूर कर दोगी।
बुधिया के बारे में बात सुनते ही माँ ने कहा: मैं निश्चित ही तुम्हारे कष्टों को दूर करने का प्रयास करूंगी।
बुधिया ने दी की मां का ऐसा दावा करते हुए कहा: मेरा बेटा कमाने के लिए परदेस चला गया है। उसके पीछे मेरी बहू मुझे बहुत बुरा भला कहती रहती है। यही मेरे दुःख का कारण है।
बुधिया की बात सुन कर दी की माँ ने कहा: यहाँ के वन में संकटा माता रहती है। तुम अपने दुःखों को उनसे सुनकर कष्टों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करो। माँ बहुत दयालु हैं, दुःखियों के प्रति बहुत सहानुभूति रखती हैं। संतानों को संतान, निर्धनों को धनवान, निर्बलों को बलवान और अभागों को भाग्यवान बनाते हैं। उनकी कृपा से सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अचल हो जाता है, कुंवारी कन्याओं को उनकी इच्छा के अनुसार प्राप्त होता है, रोगी अपने रोग से मुक्त होते हैं, इसके अलावा जो भी मनोकामना हो वह सभी को पूरा करती हैं इसमें कोई भी संदेह नहीं है।
दी गई माँ से ऐसी विलाप करने वाली बात को सुनकर बुढ़िया संकटा माता के पास गई और उनके चरणों पर गिरकर विलाप करने लगी।
संकटा माता ने बड़े ही दयालु हो कर बुधिया से पूछा: बुधिया तुम किस कारण इतने दुःख से बार-बार रोती रहती हो।
बुधिया ने कहा: हे माता! आप तो सब कुछ करते हो आप से तो कुछ भी छिपा नहीं है, आप मेरे दुःख को दूर करने का आश्वासन दें तो मैं अपनी दुःखद गाथा आपको सुनाऊँ।
बुधिया की बात सुनकर संकटा माता ने कहा: मुझे पहले अपना दुःख बता दुःखियों का दुःख दूर करना ही मेरा काम है।
संकटा माता के ऐसा कहने पर बुधिया ने कहा: हे माता मेरा लड़का परदेस चला गया है, उसके घर में ना रहने से मेरी बहू मुझे बहुत तरह की परियाँ करती है। उसकी बातें मुझसे सहन नहीं होती। इसी कारण मैं बार-बार परेशान रहती हूँ।
बुधिया की इस दर्द भरी कथा को सुनकर संकटा माता ने कहा: तुम घर जाकर मेरे लिए मन्नत मांग कर मेरी पूजा करो इससे तुम्हारा लड़का कुशल घर वापस आ जाएगा मेरी पूजा के दिन सुहागन स्त्रियों को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराना ऐसा करने से तुम्हारा लड़का निश्चित ही तुम्हारे पास आ जाएगा।
संकटा माता के अनुसार उस बुधिया ने मनोती मांग कर पूजा की और सुहागिन स्त्रियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया, लेकिन विचित्र बात यह हुई कि जब बुधिया ने स्त्रियों के लिए लड्डू बनाना शुरू किया तो उसने सात की जगह आठ लड्डू बन गए। इस बात से बुधिया बहुत ही असमंजस में पड़ गई ऐसा होने का क्या कारण है कि कहीं मेरे गिनने में तो गलती नहीं हो रही। या आपके आठ लड्डू बनने का कोई अन्य कारण है।
उसी समय संकटा माता एक वृद्ध स्त्री के रूप में बुधिया के सामने प्रकट हुई और बुधिया से पूछा: बुधिया आज आपके यहां कोई उत्सव क्यों है?
यह सुनकर बुधिया बोली: आज मैंने संकटा माता की पूजा की है और सुहागिन स्त्रियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया है, लेकिन जब गिन कर सात लड्डू बनाती हूँ तो वे लड्डू आपके ही आठ बन जाते हैं, मैं इसी बात से चिंता में पड़ गई हूँ।
बुधिया की बात सुनकर संकटा माता ने कहा: क्या तुमने किसी बुधिया को भी आमंत्रित किया है।
बुधिया कहने लगी: ऐसा मैंने नहीं किया लेकिन तुम कौन हो।
संकटा माता ने कहा: मैं बुढ़िया हूँ मुझे ही आमंत्रित कर लो।
ऐसा सुनकर बुधिया ने उस बुधिया रूपधारी संकटा माता को भोजन के लिए आमंत्रित किया । इसके बाद बुधिया के घर पर सभी आमंत्रित सुहागने आए और बुधिया ने सभी लड्डू तथा अन्य मिठाई आदि का भोजन परोसा।
इससे संकटा माता उस बुधिया पर बहुत प्रसन्न हुई और माता की कृपा से उस बुधिया के बेटे के मन में अपनी माता और पत्नी से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई और वह अपने घर के लिए चल दिया। कुछ दिन बीतने के बाद वह बुढ़िया संकटा माता की पूजा कर सुहागिनों को भोजन करा रही थी कि किसी ने उसके लड़के के आने की सूचना दी लेकिन बुढ़िया अपने काम में लगी रही उसने कहा: लड़के को बैठा दो मैं सुहागिनों को जीमा कर अभी आती हूँ ।
लड़के की बहू ने पति के आने का समाचार सुना और उसी क्षण पति के स्वागत के लिए तुरंत घर की ओर चल दी। लड़के ने अपनी पत्नी को देखकर मन में सोचा: कि मेरी स्त्री मेरे प्रति कितना प्रेम रखती है जो खबर खोज ही मुझसे मिलने आई है लेकिन मेरी माँ को मुझ पर जरा भी प्रेम नहीं है मेरे आने की खबर भी खोज ही रही है मेरी माँ मुझसे मिलने नहीं आई ।
जब पूजा का काम समाप्त हो गया तो सभी सुहागिने भोजन करके अपने-अपने घर लौट आईं। बुधिया अपने बेटे से मिलने के लिए उसके पास पहुंची। माँ के आने पर लड़के ने पूछा: माँ अब तक कहाँ थी।
माँ ने कहा: बेटा मैंने तुम्हारे राष्ट्र के लिए संकटा माता से मनोयोग रखा था उसी को पूरा करने के लिए सुहागने जीमा रही थी।
संकटा माता की कृपा से उसके मन अपनी पत्नी से हट गया उसने माँ से कहा: माँ या तो मैं यहाँ रहूँगा या यह रहूँगी।
बुधिया ने कहा: बेटा मैंने बड़ी कठिन तपस्या से पाया है इसलिए उसे छोड़ नहीं सकती इसलिए चाहे बहू का त्याग भी करना पड़े मैं कर सकती हूँ।
उस लड़के ने अपनी लड़की को घर से निकाल दिया घर से निकल कर बाहर आई तो बहुत दुःखी मन से एक पीपल के पेड़ के नीचे चिल्लाती हुई लगी। एक राजा उधर से जा रहा था उसे रोता देखकर राजा रुका और पूछा: तुम क्यों रो रही हो।
तब उसने अपनी सारी व्यथा राजा को कह सुनाया। राजा ने कहा: आज से तुम मेरा धर्म बहिन हो इसलिए रो मत मैं तुम्हारे सभी कष्टों को दूर करने का प्रयास करूंगा।
यह राजा उस स्त्री को अपने महल में लेकर आया। महल जाकर राजा ने रानी को सारी कथा सुनाई और रानी ने कहा: देखो आज से मेरा यह धर्म बह रहा है इसी महल में रहेगी और इसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए।
राजा के यहां प्रारंभिक कुछ दिन बाद धर्म से प्रेरित होकर रामनाथ की स्त्री ने भी संकटा माता का व्रत आरंभ किया और संकटा माता के निमित्त सुहागिनों को भोजन कराने के लिए आमंत्रित किया उसने रानी को भी आमंत्रित किया जब सभी सुहागिने लड्डू खाने लगीं तो रानी ने कहा: मुझे तो रबड़ी, मलाई और स्वादिष्ट मिष्ठान ही हजम होते हैं, यह पत्थर समान लड्डू कैसे हजम होंगे।
ऐसी अवहेलना पूरी बातें टिप रानी ने लड्डू खाने से मना कर दिया। कुछ समय बाद संकटा माता की कृपा से रामनाथ अपनी पत्नी को खोजते हुए राजा के महल में आए और वहां अपनी पत्नी को संकटा माता की पूजा करते हुए देखा तो संकटा माता ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और अपनी पत्नी से कहा: प्रिय मेरे अपराध को क्षमा करें करो।
पत्नी ने कहा: नाथ यह सब प्रारब्ध से ही होता है इसमें आपका कोई दोष नहीं है। आप मेरे ईश्वररूप हो। मेरे ही अपराध को क्षमा करें।
इस प्रकार दोनों ने विधिपूर्वक संकटा माता व्रत कथा सुनी, संकटा माता की पूजा की। पूजा को समाप्त कर सुहागिनों को जिमा कर दोनों पति-पत्नी अपने घर की ओर प्रस्थान के लिए तैयार हुए। जिस समय रामनाथ की स्त्री ने राजा-रानी से कहा था: जब मुझ पर दुःख पड़ा था तो आप लोगों ने धर्म की जगह मुझे आश्रय दिया था। यदि आपको किसी भी तरह की सहायता की आवश्यकता हो तो मेरी कुटिया में निराशा चली आएगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों पति-पत्नी अपने घर चले आए संकटा माता के प्रसाद का निरादर करने के कारण रानी पर भारी संकट आ गया। रामनाथ की बहू के गया ही उनका राजपाट नष्ट हो गया ऐसी ही विपत्ति में पड़कर रानी ने राजा से कहा: ना भूलो वह तुम्हारा धर्म बहन कैसी थी उसके यहां से गया ही सब कुछ नष्ट हो गया।
रानी ने राजा से कहा: जब वह कह गई थी कि जब मेरे पर कष्ट पड़ा था तब मैं तुम्हारे यहां आई और कदाचित तुम्हारे ऊपर कोई भी कष्ट पड़ा तो तुम मेरे घर चले आना इसलिए हम लोगों को उसके यहां ही चलना चाहिए।
ऐसा विचार कर राजा रानी दोनों ही अपनी धर्म बहन के घर गए वहां जाकर रानी ने कहा: बहन तुम जाती ही ऐसा क्या हो गया कि हमारी सारी संपत्ति नष्ट हो गई हम लोग बहुत परेशानी में पड़े हुए हैं।
रानी की बात सुनकर रामनाथ की स्त्री ने कहा: बहन मैं तो कुछ नहीं चलती मेरी तो सब कर्ता-धर्ता संकटा माता है, इसके अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं। इसलिए मेरी राय में तुम संकटा माता से अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करो, तुम मन्नौती से तुम्हारा काम बन जाएगा। सारे बिगड़े काम अपने आप सुधर जायेंगे।
रामनाथ की स्त्री की बातें सुनकर रानी ने श्रद्धा भक्ति से संकटा माता का व्रत किया और सुहागिनों को जीमा कर दुर्भाग्य में हुई अपनी सभी भूलों के लिए संकटा माता से बार-बार क्षमा मांगी।
रानी के ऐसा करने पर ही संकटा माता प्रसन्न हुई और रात में रानी ने स्वप्न में कहा: कि तुम दोनों पति पत्नी अपने महल को चले जाओ, वहां जाकर मेरी पूजा करना और मेरे निमित्त सुहागिनों को ऐसा करने से तुम्हारा हुआ राजपाट उसी तरह वापस मिल जाएगा।
सुबह होते ही रानी ने अपने सपने की बात राजा को बताई रानी की बात सुनते ही राजा उसी क्षण रानी को साथ लेकर अपने महल की ओर चल दिया महल में आने के बाद राजा रानी ने संकटा माता के कहे अनुसार पूर्ण भक्ति भाव से माता संकटा की पूजा की और सुहागिनों को भोजन सौंपने से उनका सारा समय सुधर गया और सारा राजपाट उन्हें वापस मिल गया और वह पहले की तरह राज्य को भोगने लगे।
बोलो संकटा मैया की जय !
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संकटा माता व्रत कथा हिंदू धर्म में अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इस व्रत को करने से भक्तों को मानसिक शांति, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
जीवन में आने वाली समस्याओं और संकटों से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत अत्यंत प्रभावी माना जाता है। संकटा माता की कृपा से हर प्रकार के कष्ट और बाधाओं का निवारण होता है।
इसलिए, जो भी व्यक्ति अपने जीवन में शांति और खुशहाली चाहता है, उसे संकटा माता व्रत कथा का पालन करना चाहिए।
संकटा माता की कथा का श्रवण और व्रत का पालन करने से न केवल भक्तों के संकट दूर होते हैं, बल्कि उन्हें माता का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। यही कारण है कि संकटा माता व्रत कथा की महिमा हर युग में आघात रह रही है और रहेगी।