सकट चौथ का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना के लिए किया जाता है।
सकट चौथ व्रत की कथा में एक साहूकार और उसकी पत्नी की कहानी पूरी जाती है, जो इस व्रत के महत्व और इसकी पूजा विधि को स्पष्ट करती है। इस कथा के माध्यम से हम जान सकते हैं कि किस प्रकार एक साधारण परिवार अपने संकल्प और श्रद्धा के बल पर भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करता है।
प्राचीन काल में एक साहूकार और उसकी पत्नी सुखपूर्वक जीवन यापन करते थे। उनका जीवन सुखद था, परन्तु उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतानों की प्राप्ति के लिए कई उपाय किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। एक दिन किसी साधु ने साहूकारनी को सकट चौथ का व्रत रखने की सलाह दी।
उन्होंने बताया कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और संतान को सुख का आशीर्वाद देते हैं।
साहूकारनी ने श्रद्धा और विश्वास के साथ सकट चौथ का व्रत रखा। उन्होंने निर्जला उपवास किया और भगवान गणेश की पूजा की। इस कठिन तपस्या से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उन्हें एक सुंदर पुत्र का आशीर्वाद मिला। इस प्रकार, सकट चौथ के व्रत की महिमा पूरे नगर में फैल गई और अन्य लोग भी इस व्रत को करने लगे।
सकट चौथ व्रत कथा: एक साहूकार और साहूकारनी
एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह धर्म पुण्य को नहीं मानते थे। इसके कारण उनका कोई बच्चा नहीं था। एक दिन साहूकारनी पडोसी के घर में रहा। उस दिन सकट चौथ थी, वहां पड़ोसन सकट चौथ की पूजा करके कहानी सुनी जा रही थी।
साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा: तुम क्या कर रही हो?
जब पड़ोसन बोली कि आज चौथा व्रत है, इसलिए कहानी सुन रही हूँ।
तब साहूकारनी बोली: चौथ के व्रत करने से क्या होता है?
तब पड़ोसन बोली: इसे करने से अन्न, धन, सुहाग, पुत्र सब मिलता है।
तब साहूकारनी ने कहा: यदि मेरा गर्भ रह जाए तो में सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत करुँगी।
श्री गणेश भगवान की कृपया से साहूकारनी के गर्भ में रहा। तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाए, तो में दोगुना सेर तिलकुट करुँगी। कुछ दिन बाद उसका लड़का हो गया, तो वह बोली कि हे चौथी भगवान! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा, तो सवा पांच सेर का तिलकुट करुँगी।
कुछ साल बाद उसके बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने चला गया। लेकिन उस साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। इस कारण से चौथ देव क्रोधित हो गए और उन्होंने फेरो से अपने पुत्र को पीपल के पेड़ पर चढ़ा दिया। सभी वर को खोजने लगे पर वो नहीं मिला, हटाये सारे लोग अपने-अपने घर को लौट गये। इधर जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था, वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजने के लिए जंगल में डूब जाती।
तभी रास्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आई: ओ मेरी अर्धब्याही!
यह बात सुनकर जब लड़की घर आई, उसके बाद वह धीरे-धीरे सूख कर काँटा होने लगी।
एक दिन लड़की की माँ ने कहा: मैं अच्छा खिलती हूँ, अच्छा पहनती हूँ, फिर भी तू सूखती जा रही है? ऐसा क्यों?
तब लड़की अपनी माँ से बोली कि वह जब भी दूब लेने जंगल जाती है, तो पीपल के पेड़ से एक आदमी कहती है कि ओ मेरी अर्धब्याही।
उसने मेहँदी लगा रखी है और सेहरा भी बाँध रखा है। जब उसकी माँ ने पीपल के पेड़ के पास जाकर देखा, तो यह उसकी जमाई ही है।
तब उसकी माँ ने जमाई से कहा: यहाँ क्यों बैठे हैं? मेरी बेटी तो अर्धब्याही कर दी और अब क्या लोगे?
साहूकारनी का बेटा बोला: मेरी माँ ने चौथ का तिलकुट बोला था लेकिन नहीं किया, इस लिए चौथ माता ने नाराज होकर यहाँ बैठा दिया।
यह सुनकर उस लड़की की माँ साहूकारनी के घर गई और उसने पूछा कि तूने सकट चौथ का कुछ बोला है क्या?
तब साहूकारनी बोली: तिलकुट बोला था। उसके बाद साहूकारनी बोली मेरा बेटा घर आजाये, तो दोहरे मन का तिलकुट करुँगी।
इससे श्री गणेश भगवान प्रसन्न हो गए और अपने पुत्र को फेरों में लेकर बैठ गए। बेटे का विवाह धूम-धाम से हो गया। जब साहूकारनी के बेटे एवं बहू घर आए तब साहूकारनी ने पचास मन तिलकुट किया और बोली हे चौथी देव! आप के आशीर्वाद से मेरे बेटे-बहू घर आये हैं, इसलिए हमेशा तिलकुट करके व्रत करें। इसके बाद सभी नगरवासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारम्भ किया।
हे सकट चौथ! जिस तरह साहूकारनी को बेटा-बहू से मिलवाया, वैसे ही हम सबको मिलवाना। इस कथा को सुनने वालों का भला करना।
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सकट चौथ व्रत की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चे मन और श्रद्धा से की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती। साहूकार और साहूकारनी की कहानी हमारे जीवन में विश्वास और धैर्य की महत्ता को उजागर करती है। इस व्रत का पालन करने वाले भक्तों को भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके सभी संकट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
इस व्रत की कथा हमें यह भी सिखाती है कि व्रत के समय में धैर्य रखना और भगवान में अटूट विश्वास बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। सकट चौथ का व्रत करने वाले व्यक्ति को यह विश्वास होना चाहिए कि भगवान गणेश अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे और जीवन में खुशहाली लाएंगे।
आज के दिन भी सकट चौथ का व्रत उसी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना भी है, जो हमारे मन और आत्मा को शुद्ध करता है। भगवान गणेश के प्रति हमारी आस्था और प्रेम को यह व्रत और भी गहरा करता है।
इस प्रकार, सकट चौथ की व्रत कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन को सकारात्मकता और प्रेरणा से भरती है। साहूकार और साहूकारनी की इस कथा से हम यह सीखते हैं कि श्रद्धा और विश्वास से किया गया कोई भी कार्य सफल होता है और भगवान की कृपा से सभी कष्टों का निवारण होता है।