पतिव्रता सती माता अनसुइया की कथा

पतिव्रता सती माता अनसूया की कथा हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और प्रेरणादायी है। माता अनसूया का जीवन सत्यत्व, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। उनके जीवन की कहानी में नारी शक्ति, धैर्य और उनके पतिव्रता धर्म की अद्भुत मिसाल है।

माता अनसूया महर्षि अत्रि की पत्नी थीं, जो स्वयं भी महान तपस्वी और ऋषि थीं। अपने पतिव्रता धर्म और सत्यत्व की परीक्षा लेने के लिए स्वयं त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश- एक दिन उनकी कुटिया में पहुंचे। उनका उद्देश्य अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेना था।

त्रिदेवों ने अनसूया से भिक्षा मांगी, लेकिन एक शर्त रखी कि वह बिना वस्त्र धारण किए उन्हें भिक्षा दें। इस कठिन परिस्थिति में माता अनसूया ने अपनी सती शक्ति से त्रिदेवों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उन्हें वात्सल्य से भिक्षा दी।

इस घटना ने त्रिदेवों को अनसूया के सतीत्व और पतिव्रता धर्म का प्रमाण दिया। अंततः त्रिदेवों ने प्रसन्न होकर अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और माता अनसूया को क्षमा किया। इस प्रकार भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेवों की विशेष कृपा प्राप्त हुई और वे योग, तपस्या और ज्ञान के अद्वितीय गुरु बने।

भगवान दत्तात्रेय जन्म | पतिव्रता सती माता अनसुइया की कथा

भगवान को अपने भक्तों का यश बढ़ाना होता है, इसलिए वे नाना प्रकार की लीलाएँ करते हैं। श्री लक्ष्मी जी, माता सती और देवी सरस्वती जी को उनके पतिव्रत का बड़ा अभिमान था।
तीनों देवियों के अभिमान को नष्ट करने तथा अपनी परम भक्तिनी पतिव्रता धर्मचारिणी अनसूया के मान को बढ़ाने के लिए भगवान ने नारद जी के मन में प्रेरणा की। फलत: वे श्री लक्ष्मी जी के पास पहुँचे, नारद जी को लक्ष्मी जी के मुख-कमल के समान खिलते हुए देखकर।

लक्ष्मी जी ने कहा: आइये, नारद जी! आप तो बहुत दिनों बाद आये। कहिये, क्या हाल है?
नारद जी बोले: माता! क्या बताऊँ, कुछ विवरण नहीं बनता। अब की बार मैं लटकता हुआ चित्रकूट की ओर चला गया। मैं महर्षि अत्रि के आश्रम पर आया हूँ। माता! मैं तो महर्षि की पत्नी अनुसूया जी के दर्शन करके कृतार्थ हो गया। तीनों लोगों में उनकी समान कोई भी पतिव्रता स्त्री नहीं है।

लक्ष्मी जी को नारद जी की बात पर आश्चर्य हुआ।
उन्होंने पूछा: नारद! क्या वह मुझसे भी ज़्यादा पतिव्रता है?
नारद जी ने कहा: माता! आप ही नहीं, तीनों लोगों में कोई भी स्त्री सती अनुसूया की तुलना में किसी भी गिनती में नहीं है।

इसी प्रकार देवर्षि नारद ने माता पार्वती एवं माता सरस्वती के पास जाकर उनके मन में भी सती अनुसूया के प्रति यही भाव जगाया। अन्त में तीनों देवियों ने त्रिदेवों से हठ करके उन्हें सती अनुसूया के सत्यत्व की परीक्षा लेने के लिए आग्रह किया। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुँचे। तीनों देव मुनि वेष में थे। उस समय महर्षि अत्रि अपने आश्रम में नहीं थे। अतिथि के रूप में आये हुए त्रिदेवों का सती अनुसूया ने स्वागत-सत्कार करना चाहा, लेकिन त्रिदेवों ने उसे अस्वीकार कर दिया।

त्रिदेव बन गए शिशु

सती अनुसूया ने उनसे पूछा: मुनियो! मुझसे कौन-सा ऐसा अपराध हो गया, जिसे आप लोग मेरे द्वारा की गई पूजा को ग्रहण नहीं कर रहे हैं?

मुनियों ने कहा: देवी! यदि आप बिना वस्त्र के हमारे अनुयायी करें तो हम आपके यहां भिक्षा ग्रहण करेंगे।
यह सुनकर सती अनुसूया सोच में पड़ गई। उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सारा रहस्य उनकी समझ में आ गया।

वे बोले: मैं आप लोगों का विश्वास जीतूंगी। यदि मैं सच्चा पतिव्रता हूँ और मैंने कभी भी काम-भाव से किसी पर-पुरुष का चिंतन नहीं किया हो तो आप तीनों छ:-छ: माह के बच्चे बन जाएँ।

पतिव्रता माता अनसुइया का इतना कहना था कि त्रिदेव छ:-छ: माह के बालक बन गए। माता अनुसूया ने विवाह करके उन्हें अपने स्तनपान के लिए रखा और उन्हें पालने में बजाने के लिए डाल दिया। इस प्रकार त्रिदेव माता अनुसूया के वात्सल्य प्रेम के बंदी बन गये।

इधर जबत्रि देवियों ने देखा कि हमारे पति तो आये ही नहीं तो वे चिन्तित होगं। अंततः तीन देवियाँ अपने पतियों का पता लगाने के लिए चित्रकूटियाँ। संयोग से वहीं नारद जी से उनकी भेंट हो गई। त्रिदेवियों ने मुझसे अपने पतियों के बारे में पूछा। नारद जी ने कहा कि वे लोग आश्रम में बालकों का खेल खेलते रहते हैं।

दत्तात्रेय जन्म कथा

त्रिदेवियों ने अनुसूया जी से आश्रम में प्रवेश करने की आज्ञा मांगी। अनुसूया जी ने उनसे अपना परिचय पूछा?
त्रिदेवियों ने कहा: माता जी! हम तो आपकी बहुत हैं। आप हमें माफ़ी दें और हमारे पतियों को पैसे लौटाएँ।
अनुसूया जी का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने बालकों पर जल छिड़ककर उन्हें अपना पूर्व रूप प्रदान किया और अन्ततः उन त्रिदेवों की पूजा-स्तुति की।

त्रिदेवों ने प्रसन्न होकर अपने-अपने अंशों से अनुसूया के यहाँ पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। इस प्रकार त्रिदेवों के अंश के रूप में दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

निष्कर्ष:

माता अनसूया की कथा न केवल हिंदू धर्म की धार्मिक पूर्णता में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, बल्कि यह हमें भी सिखाती है कि सच्ची निष्ठा और समर्पण से सभी पहलुओं का सामना किया जा सकता है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सत्यत्व और पतिव्रता धर्म का पालन करने से अद्भुत शक्तियां प्राप्त की जा सकती हैं। माता अनसूया की पवित्रता, साधना और उनके पतिव्रता धर्म ने उन्हें देवताओं के समकक्ष स्थान प्रदान किया।

भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा हमें यह संदेश देती है कि जब नारी शक्ति और उसके धर्म का सम्मान किया जाता है, तो समाज में शांति और समृद्धि का वास होता है। माता अनसूया ने अपने सतीत्व और समर्पण के बल पर न केवल त्रिदेवों को प्रसन्न किया, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को यह संदेश दिया कि नारी की शक्ति और धैर्य अपार है।

आज भी माता अनसूया की कथा सुनने और उनके जीवन से प्रेरणा लेने वालों की संख्या अनगिनत है। हमें यह सिखाती है कि अपने जीवन के आदर्शों और शिक्षाओं का निष्ठापूर्वक पालन करना ही सच्चा धर्म है।

माता अनसूया की कथा, उनके सतत्व और उनके तपस्वी जीवन की गाथा सदियों से प्रेरणा दे रही है और आगे भी रहेगी। उनके जीवन की कहानी हमें यह विश्वास दिलाती है कि सच्ची निष्ठा, समर्पण और धर्म पालन से जीवन में अद्भुत और अलौकिक अनुभव प्राप्त किए जा सकते हैं।

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