पापमोचनी एकादशी व्रत कथा(पापमोचनी एकादशी व्रत कथा)

प्रत्येक धर्म की धारणाओं में विकास और शुद्धि का अत्यधिक महत्व होता है। इसी मान्यता के साथ, हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को मान्यता दी गई है, जो पाप को धोने और आत्मिक शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।

पापमोचनी एकादशी एक ऐसा उत्सव है जो पापों से मुक्ति प्रदान करता है और उन्हें आत्मिक शुद्धि का अनुभव कराता है। इसे 'पापों की मोचन वाला' एकादशी भी कहा जाता है।

पापमोचनी एकादशी का महत्व प्राचीन वैदिक और पौराणिक रहस्यों में छिपा है। इस दिन व्रतकर्ता भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनकी कथा सुनी जाती है, जिससे पाप का नाश होता है और आत्मा की शुद्धि होती है। यह उत्सव हमें पापों से मुक्ति की राह पर आगे बढ़ने का संदेश देता है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा: हे मधुसूदन! आपने फाल्गुन मास के शुक्र पक्ष की एकादशी आमलकी एकादशी के बारे में विस्तार से बताया। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का क्या नाम है? तथा उसका तरीका क्या है? कृपा करके आप मेरी बढ़ती हुई जिज्ञासा को शांत करें।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे अर्जुन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक बार की बात है, पृथ्वीपति राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से यही प्रश्न किया था, जो तुमने मुझसे किया है। इसलिए जो कुछ भी ऋषि लोमश ने राजा मान्धाता को बताया, वही मैं उससे कह रहा हूँ।

राजा मान्धाता ने धर्म के गुह्यतम रहस्यों के ज्ञाता महर्षि लोमश से पूछा: हे ऋषिश्रेष्ठ! मनुष्य के पापों का मोचन किस प्रकार सम्भव है? कृपा कर कोई ऐसा सरल उपाय बताएं, जिससे सभी को सहज ही पाप से मुक्ति मिल जाए।

पापमोचनी : ... व्रत कथा!
महर्षि लोमश ने कहा: हे नृपति! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचिनी एकादशी है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं अतः इस व्रत की कथा सुनता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनता हूँ।

प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक एक श्लोक था। वे अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार करती थीं। वहाँ सदैव वसन्त का ऋतु रहता था, अर्थात उस स्थान पर सदा नाना प्रकार के पुष्प खिले रहते थे। कभी गन्धर्व कन्‍याएँ विहार करती थीं, कभी देवेन्द्र अन्य देवताओं के साथ क्रीड़ा करती थीं।

उसी वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे । वे शिवभक्त थे। एक दिन मंजुघोषा नामक एक अप्सरा ने उन्हें मोहित कर उनकी सुंदरता का लाभ उठाने की चेष्टा की, इसलिए वह कुछ दूरियों पर बैठ वीणा बजाकर मधुर स्वर में गाने लगी।

उसी समय शिव भक्त महर्षि मेधावी को कामदेव भी जीतने का प्रयास करने लगे। कामदेव ने उस सुन्दर अप्सरा के भ्रु का धनुष बनाया। कटुक्ष को उसकी प्रत्यंचा बनाई और उसके नेत्रों को मञ्जुघोषा अप्सरा का सेनापति बनाया। इस तरह कामदेव अपने शत्रुभक्त को जीतने को तैयार हुआ।

उस समय महर्षि मेधावी भी काफी प्रसन्न थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दण्ड धारण कर रखा था। वे दूसरे कामदेव के समान दिख रहे थे। उस मुनि को देखकर कामदेव के वश में हुई मञ्जुघोषा ने धीरे-धीरे मधुर वाणी से वीणा पर गायन शुरू किया तो महर्षि मेधावी भी मञ्जुघोषणा के मधुर गीतों पर तथा उनकी सुन्दरता पर मोहित हो गए। वह अप्सरा मेधावी मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर उनसे आलिङ्गन करने लगी।

महर्षि मेधावी अपनी सौन्दर्यता पर मोहित होकर शिव रहस्य को भूल गए और काम के वशीभूत होकर उनके साथ रमण करने लगे।

काम के वशीभूत होने के कारण मुनि को उस समय दिन-रात का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा और काफी समय तक वे रमण करते रहे। तदुपरान्त मञ्जुघोषा उस मुनि से बोली: हे ऋषिवर! अब मुझे बहुत समय हो गया है, इसलिए स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए।

अप्सरा की बात सुनकर ऋषि ने कहा: हे मोहिनी! सन्ध्या को तो आयी हो, प्रातःकाल होने पर चली जाना।

ऋषि के ऐसे वचनों को सुनकर अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी। इसी प्रकार दोनों ने साथ-साथ बहुत समय बिताया।

मञ्जुघोषा ने एक दिन ऋषि से कहा: हे विप्र! अब तुम मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दोगे।

मुनि ने इस बार भी वही कहा: हे रूपसी! अभी ज्यादा समय ख़त्म नहीं हुआ है, कुछ समय और ठहरो।

मुनि की बात सुन अप्सरा ने कहा: हे ऋषिवर! आपकी रात तो बहुत लम्बी है। आप स्वयं ही सोचते हैं कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया। अब और ज्यादा समय तक ठहरना क्या उचित है?

अप्सरा की बात सुन मुनि को समय का बोध हुआ और वह गंभीरतापूर्वक विचार करने लगी। जब उन्हें समय का ज्ञान हुआ कि उन्हें रमण करते सत्तावन (57) वर्ष बीत चुके हैं तो उस अप्सरा को वह काल का रूप धारण करने लगे।

इतने अधिक समय तक भोग-विलास में व्यर्थ चले जाने पर उन्हें बड़ा क्रोध आया। अब वह भयंकर क्रोध में जलते हुए उस तप नाश करने वाली अप्सरा की तरफ भृकुटी तनकर देखने लगे। क्रोध से उनके आधार काँपने लगे और इन्द्रियाँ बेकाबू होने लगती हैं।

क्रोध से थरथराते स्वर में मुनि ने उस अप्सरा से कहा: मेरे तप को नष्ट करने वाली बुराई! तू महापापिन और बहुत ही दुराचारिणी है, तुझ पर धिक्कार है। अब तू मेरे श्राप से पिशाचिनी बन जा।

मुनि के क्रोधयुक्त श्राप से वह अप्सरा पिशाचिनी बन गयी। यह देखकर वह व्यथित बोली: हे ऋषिवर! अब मुझ पर क्रोध त्यागकर प्रसन्न होइए और कृपा करके बताइए कि इस शाप का निवारण किस प्रकार होगा? विद्वानों ने कहा है, संतों की संगत अच्छा फल देने वाली होती है और आपके साथ तो मेरे बहुत वर्ष बीत गए हैं, अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाएं, अन्यथा लोग कहेंगे कि एक पुण्य आत्मा के साथ रहने पर मञ्जुघोषा को पिशाचिनी बनना पड़ा।

मञ्जुघोषा की बात सुनकर मुनि को अपने क्रोध पर अत्यन्त ग्लानि हुई और साथ ही अपनी अपकीर्ति का भय भी हुआ, इसलिए मञ्जुघोषा से मुनि ने कहा: तूने मेरा बड़ा बुरा किया है, लेकिन फिर भी मैं तुझे इस श्राप से मुक्ति का उपाय बताता हूँ। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम पापमोचिनी है। उस एकादशी का उपवास करने से तेरी पिशाचिनी की देह से मुक्ति हो जाएगी।

ऐसा ही एक उदाहरण मुनि ने उसे व्रत का सब विधान बताया। फिर वे अपने पिता च्यवन ऋषि के पास चले गए।

च्यवन ऋषि ने अपने बेटे मेधावी को देखकर कहा: हे बेटे! ऐसा क्या किया है तूने कि तेरे सभी तप नष्ट हो गए हैं? जिससे तुम्हारी समस्त तेज मालिन हो गई है?

मेधावी मुनि ने लज्जा से अपना सिर झुकाकर कहा: पिताश्री! मैंने एक अप्सरा से रमण करके बहुत बड़ा पाप किया है। इसी पाप के कारण सम्भवतः मेरा सारा तेज और मेरे तप नष्ट हो गए हैं। कृपा करके आप इस पाप से छूटने के उपाय बताइये।

ऋषि ने कहा: हे पुत्र! तुम चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी का विधि एवं भक्तिपूर्वक उपवास करो, इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।

अपने पिता च्यवन ऋषि के वचनों को सुनें मेधावी मुनि ने पापमोचिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। उसके प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गए।

मञ्जुघोषा अप्सरा भी पापमोचिनी एकादशी का उपवास करने से पिशाचिनी की देह से छूट गई और पुनः अपना सुन्दर रूप धारण करके स्वर्गलोक चली गई।

लोमश मुनि ने कहा: हे राजन! इस पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण व पाठ से एक हजार गौदान करने का फल प्राप्त होता है। इस उपवास को करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले, मद्यपान करने वाले, अगम्या गमन करने वाले आदि भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष:

पापमोचनी एकादशी एक ऐसा उत्सव है जो हमें धार्मिकता, शुद्धि और साधना की ओर प्रेरित करता है। इस दिन व्रत रखने से हमारा मन और आत्मा शुद्ध होता है और हम पाप से मुक्ति प्राप्त करते हैं। इस अनुष्ठान से हमें अपने जीवन में चरित्र और धार्मिकता की दिशा में आगे बढ़ने का संदेश मिलता है।
इस पावन दिन पर हमें भगवान की भक्ति का पालन करना चाहिए और पापों से मुक्ति की प्रार्थना करनी चाहिए। इस पापमोचनी एकादशी के उत्सव में हमें नेतृत्व, साहस और ध्यान की आवश्यकता होती है ताकि हम अपने जीवन को समृद्ध और संतुलित बना सकें।
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