नर्मदेश्वर शिवलिंग बनने की पौराणिक कथा

नर्मदेश्वर शिवलिंग बनाने की पौराणिक कथा हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध कथा है, जो भगवान शिव के एक विशेष लिंग के स्वरूप को दर्शाती है।

इस कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान शिव ने धरती पर अपनी एक प्रतिरूप की अपरिहार्यता को स्थापित करने का निर्देश दिया था। इसके बाद, एक महान कथावाचक शिव भक्त ने नर्मदा नदी के किनारे एक शिवलिंग की रचना की, जिसे उन्होंने अपनी प्रेरणा और प्रेम से बनाया था।

इस अनोखे शिवलिंग की पूजा ने नर्मदा के किनारे एक पवित्र स्थान का निर्माण किया और उसे 'नर्मदेश्वर' शिवलिंग के रूप में जाना जाता है।

नर्मदेश्वर शिवलिंग बने की पौराणिक कथा

भगवान शिव की पूजा के लिए शिवलिंग की पूजा करने का प्रस्ताव है, शिवलिंग के भी विभिन्न प्रकार हैं जैसे - स्वयंभू शिवलिंग, नर्मदेश्वर शिवलिंग, जनेऊधारी शिवलिंग, पारद शिवलिंग, सोने और चांदी के शिवलिंग। इनमें से नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा को सर्वोत्तम फलदायी माना गया है। नर्मदेश्वर शिवलिंग कैसे बनते हैं और कहाँ मिलते हैं, इस सवाल के जवाब के लिए यह पौराणिक कथा बिल्कुल उपयुक्त है।
नर्मदा का प्रत्येक पत्थर शिवलिंग:
पौराणिक काल में एक बार नर्मदा जी ने अत्यंत कठोर तपस्या करके भगवान परमपिता ब्रह्मा को प्रसन्न किया था। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर नर्मदाजी से अपमानित हनुमान को कहा।
नर्मदाजी ने परमपिता ब्रह्मा जी से कहा - हे भगवान! यदि आप मेरी आस्था से अभिभूत हैं और मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगा जी के समान होने का अनुग्रह प्राप्त होगा।

नर्मदा जी की बात सुनकर ब्रह्मा जी बोले - यदि कोई अन्य देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले अथवा कोई अन्य पुरुष भगवान श्रीहरि विष्णु के समान हो जाए। तथापि कोई दूसरी नारी पार्वती जी की बराबरी कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है।

ब्रह्म वाक्य सुनकर नर्मदा जी काशी चलीं और वहां पुष्पपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तपस्या करने लगीं। भगवान शिव नर्मदा जी पर बहुत प्रसन्न हुए और उनकी कथाएँ प्रकट करते हुए उन्हें निर्दोष बताया।

नर्मदा जी ने भगवान शिव से कहा - हे भगवान्! मुझे आपके चरणों की भक्ति चाहिए।
नर्मदा जी की इच्छा जानकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और बोले - हे नर्मदे! तुम्हारे तट पर सभी पत्थर हैं, वे सब शिवलिंग रूप में हो जायेंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पाप का नाश करती हैं। आपके दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण हो जाएगा।

जब जिस नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की गई है, वह भविष्य में पुण्य और मोक्ष को प्रदान करने वाला होगा और इसलिए भगवान शिव उसी लिंग में विलीन हो गए होंगे। इसलिए ऐसा माना जाता है कि नर्मदा का हर शंकर शिव है।

❀ ऐसे ही प्राकृतिक और स्वयंभू शिवलिंगों में प्रसिद्ध नर्मदेश्वर पवित्र नर्मदा नदी के किनारे जाने वाला एक विशेष गुणों वाला पाषाण ही नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है।
❀ नर्मदेश्वर शिव का ही एक रूप माना जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह प्राकृतिक रूप से ही निर्मित है।
❀ नर्मदेश्वर शिवलिंग भारत के मध्यप्रदेश एवं गुजरात राज्यों में नर्मदा नदी के तट पर ही पाए जाते हैं। नर्मदा भारत अन्य नदियों से विपरीत पूर्व से पश्चिम की ओर उल्टी दिशा में बहता है।
❀ किसी भी अन्य पाषाण निर्मित शिवलिंग की अपेक्षा नर्मदेश्वर शिवलिंग में कहीं अधिक ऊर्जा समाहित रहती है।
❀ नर्मदा नदी से निकले शिवलिंग को सबसे सीधा स्थापित किया जा सकता है, इसकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है।

निष्कर्ष:

नर्मदेश्वर शिवलिंग बनाने की पौराणिक कथा हमें धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से शिव की महिमा और शक्ति का अनुभव कराती है।

इस कथा के माध्यम से हम शिव के अत्यंत प्रिय और पावन अवतार के रूप में नर्मदा नदी की महत्वपूर्णता को समझते हैं। यह कथा हमें शिव के अद्वितीय रूप और भक्ति के महत्व को समझाती है, और हमें यह सुझाव है कि प्रेम और श्रद्धा से बनाए गए शिवलिंग की पूजा से हम अपने जीवन को समृद्ध और धार्मिक बना सकते हैं।

नर्मदेश्वर शिवलिंग बनाने की कथा धार्मिकता और संगीत का एक सुंदर अनुभव प्रदान करती है और हमें शिव की भक्ति में लीन होने का अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

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