मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा(मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा) हिंदी में

भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। ये न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी होते हैं। प्रमुख महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी।

यह व्रत भगवान गणेश की उपासना के लिए समर्पित है, जो विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत को करने से भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।

यह व्रत कथा का पाठ और श्रवण भक्तों को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। कथा के माध्यम से भगवान गणेश की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा में भगवान गणेश की लीलाओं और उनके अद्भुत चमत्कारों का उल्लेख होता है, जिससे भक्तों के मन में श्रद्धा और विश्वास भी दृढ़ हो जाता है।

मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अघन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन गणेश की पूजा किस अनुष्ठान से करनी चाहिए?
गणेश जी ने उत्तर दिया कि हे हिमालयानंदी! अघन में पूर्वोक्त रीति से गजानन नाम गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद अर्घ्य देना चाहिए। पूरे दिन व्रत रखने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शक्कर मिलाकर हवन करें तो वह अपने शत्रु को वशीभूत कर सकता है। इस संबंध में हम एक प्राचीन इतिहास सुनते हैं।

प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे। वे राजा आखेत प्रिय थे। एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का आखेट में वध कर दिया। उस ब्राह्मण के अंधे माँ-बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्रशोक में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारा भी पुत्रशोक में मरण होगा। इससे राजा को बहुत चिंता हुई। वे पुत्रेष्टि यज्ञ करते हैं। फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया। भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतारित हुई।

पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को चले गए, जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षसों व राक्षसों का वध किया। इससे क्रोधित रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव के साथ मैत्री की स्थापना की। तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। ढूंढते-ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा। इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहाँ पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ है।

संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं। वहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपहरण कर लिया गया है। हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां है?

उनकी बात सुनकर संपाती ने कहा कि आप सब रामचंद्र के सेवक होने के रिश्तेदार हमारे मित्र हो। जानकी जी का जो हरण किया है और वह जिस स्थान पर है, वह मुझे ज्ञात है। सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपना प्राण गंवा चुका है। यहां से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहां अशोक के वृक्ष के नीचे सीता जी बैठी हुई हैं। रावण द्वारा अपह्रत सीता जी अभी भी मुझे प्रकट दे रही हैं। मैं आपसे सत्य कह रहा हूं कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली हैं। आधार उन्हें वहां जाना चाहिए। केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र दीर्घायु कर सकते हैं। अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं है।

संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूँ? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूँ?

हनुमान जी की बात सुनकर संपति ने उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर जाएंगे। संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया। हे देवी, इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को कल्पित कर गए। इस लोक में इसके सामान सुखदाई कोई दूसरा व्रत नहीं है।

श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि महाराज युधिष्ठर, आप भी यह व्रत कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षणभर में अपने शत्रुओं को सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी बनेंगे। भगवान कृष्ण का वचन सुनकर युधिष्ठर ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने शत्रुओं को राज्य के अधिकारी बन गए।

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मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह हमें जीवन में धैर्य, संयम और श्रद्धा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। इस व्रत को सच्चे मन से करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाली सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।

भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। इस व्रत कथा का प्रकाशन और पालन हमें हमारे आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने में सहायक सिद्ध होता है।

मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत और उसकी कथा हमारे भीतर ईश्वरीय आस्था को और भी प्रगाढ़ करती है। यह व्रत हमारे जीवन को नई दिशा और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

इसलिए, हर भक्त को इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए और भगवान गणेश की कृपा से अपने जीवन को सफल और सुखमय बनाना चाहिए।

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