भारतीय सनातन संस्कृति में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। इस मास को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है। कार्तिक मास महात्म्य कथा के माध्यम से हमें इस माह की महिमा और इसकी धार्मिक परम्परा की गहराई से जानकारी प्राप्त होती है।
अध्याय 26 इस कथा का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें भगवान विष्णु की कृपा, उनकी लीला और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन किया गया है।
इस अध्याय में वर्णित कथाएं न केवल हमें आध्यात्मिक ऊर्जा से भरती हैं, बल्कि हमें अपने जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी देती हैं। कार्तिक मास में किया गया साधना, व्रत और दान हमें पाप से मुक्त कर मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर करता है।
कार्तिक मास महात्म्य कथा: अध्याय 26
दोनों प्रभु अपने पूर्वजन्म की कथा कहने लगे- हे द्विजश्रेष्ठ! आपका प्रश्न सबसे बड़ा श्रेष्ठ है। आज हम आपको भगवान विष्णु को शीघ्र प्रसन्न करने के उपाय बताते हैं। हम इतिहास सहित प्राचीन वृत्तान्त सुनाते हैं, विस्तृत सुनो।
ब्राह्मण! पहले कांचीपुरी में चोल नामक एक चक्रवर्ती राजा हो गए थे। सभी देशों के अधीन रहने वाले लोगों ने अपने नाम पर चोल नाम से विचार किया। राजा चोल जब इस भूमण्डल का शासन करते थे, उस समय उनके राज्य में कोई भी मनुष्य दरिद्र, दुःखी, पाप में मन रखने वाला या रोगी नहीं था।
एक समय की बात है, राजा चोल अनन्तशयन नामक तीर्थ जहाँ गये में जगदीश्वर भगवान विष्णु ने योगनिद्रा की शरण लेकर शयन किया था। वहाँ भगवान विष्णु के दिव्य विग्रह के राजा ने विधिपूर्वक पूजा की। दिव्य मणि, मुक्ताफल तथा सुवर्ण के बने हुए सुन्दर पुष्पों से पूजन कर के साष्टांग प्रणाम किया।
प्रणाम कर के ज्यों ही बैठे उसी समय उनकी दृष्टि भगवान के पास आते हुए एक ब्राह्मण पर पड़ा जो कि कांची नगरी के निवासी थे। उनका नाम विष्णुदास था।
उन्होंने भगवान की पूजा के लिए अपने हाथ में तुलसीदल और जल रखा था। निकट आने पर उन ब्राह्मण ने विष्णुसूक्त का पाठ करते हुए देवाधिदेव भगवान को स्नान कराया और तुलसी की मंजरी तथा पुष्प से उनकी विधिवत पूजा की। राजा चोल ने जो पहले रत्नों से भगवान की पूजा की थी, वह सब तुलसी की पूजा से ढक गई।
यह देखकर राजा कुपित बोले- विष्णुदास! मैंने मनियों तथा सुवर्ण से भगवान की जो पूजा की थी वह कितनी शोभा पा रही थी, तुमने तुलसीदल चढ़ाकर उसे ढाल दिया। देखो, ऐसा क्यों किया? मुझे तो ऐसा जान पड़ा है कि तुम दरिद्र और गंवार हो। भगवान विष्णु की भक्ति को कोई नहीं जानता।
राजा की यह बात सुनकर द्विजश्रेष्ठ विष्णुदास ने कहा- राजन! आपको भक्ति का कुछ भी पता नहीं है, केवल राजलक्ष्मी के कारण आप घमंड कर रहे हैं। बताइये तो आज से पहले आपने कितने वैष्णव व्रतों का पालन किया है?
तब नृपश्रेष्ठ चोल ने हंसते हुए कहा- तुम तो दरिद्र और निर्धन हो तुम्हारे भगवान विष्णु में भक्ति ही कितनी है? तूने भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करने वाला कोई भी यज्ञ और दान आदि नहीं किया और न ही पहले कभी कोई देवमन्दिर ही बनवाया है। इतने पर भी अपनी भक्ति का इतना गर्व है। अच्छा तो ये सभी ब्राह्मण मेरी बात सुन लें। क्या मैं भगवान विष्णु के दर्शन पहले करता हूँ या यह ब्राह्मण है? इस बात को आप सब लोग देखें तो हम दोनों में से किसकी भक्ति कैसी है, यह सब लोग स्वत: ही जान लेंगे। ऐसा ही एक दृश्य राजा अपने राजभवन को लेकर चला गया।
वहाँ वे महर्षि मुद्गल को आचार्य सम्प्रदाय वैष्णव यज्ञ प्रारम्भ किया गया। जहाँ सदैव भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाले शास्त्रोक्त नियमों में तत्पर विष्णुदास भी व्रत का पालन करते हुए भगवान विष्णु के मन्दिर में टिक गए।
उन्होंने माघ और कार्तिक के उत्तम व्रत के अनुष्ठान, तुलसी की रक्षा, एकादशी को भी बताया। द्वादशाक्षर मन्त्र का जाप, नृत्य, गीत आदि मंगलमय ज्वैलरी के साथ षोडशोपचार भगवान विष्णु की पूजा आदि नियमों का पालन किया गया।
वे प्रतिदिन चलते, फिरते और सोते, हर समय भगवान विष्णु का स्मरण करते थे। उनकी दृष्टि सर्वत्र सम हो गई थी। वे सभी प्राणी केवल भगवान विष्णु के भीतर ही स्थित थे। इस प्रकार राजा चोल और विष्णुदास दोनों ही भगवान लक्ष्मीपति के आराध्य में संलग्न थे। दोनों ही अपने-अपने व्रत में स्थित थे और दोनों की ही सम्पूर्ण इन्द्रियाँ तथा समस्त कर्म भगवान विष्णु को समर्पित हो चुके थे। इस अवस्था में उन दोनों ने दीर्घकाल व्यतीत किया।
निष्कर्ष:
कार्तिक मास महात्म्य कथा के अध्याय 26 का अध्ययन हमारे लिए एक सुखद अनुभव है। इस अध्याय में भगवान विष्णु की महिमा और उनके दिव्यरूप का वर्णन हमें भक्ति और श्रद्धा से परिपूर्ण करता है। इस पवित्र माह में की गई साधना और उपासना हमें अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
यह कथा हमें सिखाती है कि धर्म, कर्म और भक्ति के मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। कार्तिक मास का यह पवित्र समय हमें अपने भीतर के अंधकार को दूर करके ज्ञान और प्रकाश की ओर ले जाता है।
इस माह की धार्मिक गतिविधियों और अनुष्ठानों में भाग लेकर हम अपने जीवन को सकारात्मकता और शांति से भर सकते हैं। अतः कार्तिक मास महात्म्य कथा का अध्ययन और पालन हमारे जीवन में न केवल आध्यात्मिक विकास बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।