भारतीय संस्कृति में कार्तिक मास का अत्यधिक महत्व है। यह त्यौहारों जैसे कि कांवड़, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के रूप में मनाया जाता है।
इसके अलावा, इस महीने में धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की एक अनूठी श्रृंखला होती है। पुराणों में इस महीने को विशेष स्थान दिया गया है और इसके महात्म्य को विस्तार से बताया गया है। विशेष रूप से, "कार्तिक मास महात्म्य" पुराण की एक महत्वपूर्ण कथा है जिसमें इस पवित्र महीने के महत्व और उसके धार्मिक अनुष्ठान का वर्णन किया गया है।
अध्याय 22 में इस कथा का विशेष उल्लेख है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा, तुलसी की पूजा और अन्य धार्मिक कार्यों का विवरण है। यह अध्याय हमें यह बताने की कोशिश करता है कि कैसे इस मास में दी गई सरल धार्मिक क्रियाओं में भी असीम पुण्य प्रदान किया जा सके।
साथ ही, यह अध्याय हमें कार्तिक मास के दौरान किए गए उपवास, दान और पूजा के महत्व को स्थापित करने में मदद करता है।
कार्तिक मास महात्म्य कथा: अध्याय 22
जब लिख लगा हूँ बात ।
श्री प्रभु प्रेरणा प्राप्त कर,
कलमा आ गया हाथ ॥
जब देवता स्तुति कर मौन हो गए तब शंकर जी ने सब देवताओं से कहा – हे ब्रह्मादिक देवता! जलन्धर तो मेरा ही अंश था। उसे मैंने तुम्हारे लिए नहीं मारा है, यह मेरी पृथ्वी लीला थी, फिर भी आप लोग सत्य कहिए कि इससे आप सुखी हुए या नहीं?
तब ब्रह्मादिक देवताओं के नेत्र हर्ष से खिल गए और उन्होंने शिवजी को प्रणाम कर विष्णु जी का वह सब वृत्तान्त कहा, जो बड़े प्रयत्न से वृन्दा को मोहित किया था तथा उन्होंने अग्नि में प्रवेश कर परमगति को प्राप्त किया था। भगवान ने यह भी कहा कि तभी से वृंदा की सुन्दरता पर मोहित हुए विष्णु उनकी चिता की राख लपेटकर इधर-उधर आकर्षक हैं। लेकिन आप उन्हें समझिए क्योंकि यह सारा चर्च आपका पहला अनुभव है।
भगवान से यह सारा वृत्तांत सुन शंकर जी ने उन्हें अपनी माया समझाई और कहा कि उसी से मोहित विष्णु भी काम के वश में हो गए हैं। परन्तु महादेवी उमा, त्रिदेवों की जननी सबसे परे वह मूल प्रकृति, परम मनोहर और वही गिरिजा भी कहलाती है।
यह सब सुनकर भगवान भगवती के वाक्यों का आधार होते हुए गौरी, लक्ष्मी और सरस्वती को प्रणाम करने लगे। सभी देवताओं ने उन सभी देवियों की प्रार्थना की। वह स्तुति सेतीन देवियाँ प्रकट हो गई। सभी देवताओं ने खुश होकर निवेदन किया, तब उन देवियों ने कुछ बीज देकर कहा - इसे ले जाकर बो दो तो सब कार्य सिद्ध हो जाएंगे। ब्रह्मादिक देवता उन मनुष्यों को लेकर विष्णु जी के पास गये। वृन्दा की चिता-भूमि में डाल दिया। वह धात्री, मालती और तुलसी प्रकट हुई।
विधात्री के बीज से धात्री, लक्ष्मी के बीज से मालती और गौरी के बीज से तुलसी प्रकट हुई। विष्णु जी ने ज्योंही उन स्त्री रूपवाली वनस्पतियों को देखा तो वे उठ बैठे। कामासक्त चित्त से मोहित हो उन्हें याचना करने लगे। धात्री और तुलसी ने उनसे प्रीति की। विष्णु जी सारा दुख भूल देवताओं से नमस्कार करके अपने लोक बैकुंठ में चले गए। वह पहले की तरह सुखी होकर शंकर जी का स्मरण करने लगे। यह आख्यात शिवाजी की भक्ति देने वाला है।
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कार्तिक मास महात्म्य का अध्याय 22 हमें जीवन के आध्यात्मिक और धार्मिक पहलुओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हमें सिखाता है कि धर्म और आस्था के माध्यम से हम अपने जीवन को बेहतर कैसे बना सकते हैं। भगवान विष्णु की आराधना और तुलसी की पूजा का महत्व हमें यह दर्शाता है कि इस महीने आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का समय है।
यह अध्याय यह भी बताता है कि कार्तिक मास में किए गए पुण्य कार्यों का फल कितना महत्वपूर्ण होता है। इससे हमें यह समझ में आता है कि किसी भी कार्य का महत्व केवल उसके बाहरी स्वरूप में नहीं, बल्कि उसकी आंतरिक भावना और श्रद्धा में होता है।
इस प्रकार, कार्तिक मास माहात्म्य का अध्ययन करना और उसे अपने जीवन में लागू करना हमें न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी मजबूत बनाता है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपनी धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं को न केवल संजो सकते हैं बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन में भी स्थान दे सकते हैं।
कार्तिक मास महात्म्य का यह अध्याय न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन जीने की एक कला भी सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि सच्चे मन और श्रद्धा से किए गए कार्य ही सबसे अधिक फलदायी होते हैं। इसलिए, इस पवित्र महीने में हमें आराधना और पूजा द्वारा आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर किया जाता है।