महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है जो भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास का अमूल्य खजाना है। इस महाकाव्य में अनेक अद्भुत कथाएँ और प्रसंग हैं, जो अपने नैतिक और आध्यात्मिक प्रयासों के लिए प्रसिद्ध हैं। 'कालायवन वध' नामक एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
कालयवन, एक महान और बलशाली योद्धा था, जिसने मथुरा पर आक्रमण किया और श्रीकृष्ण को चुनौती दी। कालयवन की शक्ति और उसके आतंक के कारण मथुरा के लोग प्रभावित थे।
कालयवन का जन्म और उसके जीवन के कई रहस्यों से भरा हुआ था। उनके पिता, गार्ग्य ऋषि, ने यदुवंशियों से अपमान प्रतिशोध की भावना से कालयवन को उत्पन्न किया था।
उन्होंने घोर तपस्या करके भगवान शिव से एक शक्तिशाली पुत्र की प्राप्ति का प्रमाण प्राप्त किया। भगवान शिव के आशीर्वाद से कालयवन का जन्म हुआ और उन्होंने अत्यंत पराक्रमी योद्धा के रूप में ख्याति प्राप्त की।
जब कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण किया, तब श्रीकृष्ण ने एक चालाकी भरी रणनीति अपनाई। उन्होंने कालयवन को द्वारका की ओर आकर्षित किया और वहां से रणभूमि की ओर ले गए, जहां उन्होंने मुचुकुंद का उपयोग किया। मुचुकुन्द, जो स्वयं एक महान योद्धा और तपस्वी थे, एक गहन निद्रा में थे।
श्रीकृष्ण ने मुचुकुंद को जगाया और कालयवन को उनके सामने खड़ा कर दिया। मुचुकुंद की दृष्टि में आने से कालयवन जलकर भस्म हो गया। इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने अपनी प्रस्तुति से काल्यवन का वध किया और मथुरा को सुरक्षित किया।
कालयवन वध कथा
भगवान शिव ने कहा - हे मुनि! हम प्रसन्न हैं, जो मांगना है मांगो।
भगवान शिव ने कहा - तेरा पुत्र संसार में अजेय होगा। कोई अस्त्र-शस्त्र से हत्या नहीं होगी, कोई भी सूर्यवंशी या चंद्रवंशी योद्धा उसे परास्त नहीं कर सकता।
क्षमाशील प्राप्ति के पश्चात ऋषि शेशिरायण एक झरने के पास से जा रहे थे कि उन्होंने एक स्त्री को जल क्रीड़ा करते हुए देखा, जो अप्सरा रम्भा थी। दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए और उनका बेटा कल्यान हुआ। अप्सरा रंभा के पृथ्वी पर समय समाप्ति पर वह अपने पुत्र ऋषि को सौंपकर स्वर्गलोक वापस चली गई।
काल जंग नामक एक क्रूर राजा मलिक देश पर राज करता था। उसे कोई संतान नहीं थी जिसके कारण वह परेशान रहती थी। उनके मंत्री उन्हें आनंदगिरि पर्वत के बाबा के पास ले गए। बाबा ने उन्हें बताया कि वह ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र मांग ले।
ऋषि शेशिरायण ने बाबा की कृपा पर पुत्र को काल जंग को दे दिया। ऋषि शेशिरायण का मन पुन: भक्ति में लग गया। इस प्रकार कालयवन यवन देश का राजा बना। उसके समान वीर कोई न था। एक बार उसने नारदजी से पूछा कि वह किससे युद्ध करे, जो उसके समान वीर हो। नारदजी ने उसे श्रीकृष्ण का नाम बताया।
भगवान श्री राम के कुल के राजा ने जरासंध यह निश्चय किया है कि वे कृष्ण कोछलने के लिए कल्याण से मित्रता करें। कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण के लिए सब कुछ तैयारियां कर ली। दूसरी ओर जरासंध भी सेना लेकर निकल गया।
कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया। उसने मथुरा नरेश कृष्ण के नाम संदेश भेजा और कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया। श्रीकृष्ण ने उत्तर में संदेश भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो, सेना को व्यर्थ लड़ाएँ। कालयवन ने स्वीकार कर लिया।
अक्रूरजी और बलरामजी ने कृष्ण को इसके लिए मना लिया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कालयवन को शिव द्वारा दिए गए क्षमा के बारे में बताया और यह भी कहा कि उन्हें कोई भी हरा नहीं सकता। श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि कालयवन राजा मुचुकुंद द्वारा मृत्यु को प्राप्त होगा।
जब कालयवन और कृष्ण में द्वंद्व युद्ध का निर्धारण हो गया, तब कालयवन श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा। श्रीकृष्ण तुरन्त ही दूसरी ओर मुंह करके रणभूमि से भाग गए और कालयवन को पकड़ने के लिए उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगे।
तेनानुयातः कृष्णोऽपि प्रविवेश महागुहाम् ।
यत्र शेते महावीर्यो मुचुकुन्दो नरेश्वरः ॥
भवार्थ-कालमन से पीछा किए गए श्री कृष्णचंद्र उस महा घाघरा में घुस गए जिसमें महावीर्य राजा मुचुकुन्द सो रहे थे।
श्रीकृष्ण लीला करते हुए भाग रहे थे, कालयवन पग-पग पर ही जाना था कि अब पकड़ा, तब पकड़ा। इस प्रकार भगवान बहुत दूर एक पहाड़ की गुफा में घुस गए। उनके पीछे कल्यवान भी घुसा। वहाँ उसने एक दूसरे को ही मनुष्य को सोते हुए देखा।
उसे देखकर कल्यवन ने सोचा, मुझसे बचने के लिए श्रीकृष्ण इस तरह भेष छुप गए हैं, और ललकार कर कहने लगा - देखो तो सही, मुझे मूर्ख बनाये साधु बाबा रहा है।
उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उस सोए हुए व्यक्ति को एक लात मारी।
वह पुरुष बहुत दिनों से सोया हुआ था। पैर की ठोकने लायक से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आँखें खोलीं। इधर-उधर देखने पर ही कल्यवन खड़ा हुआ दिखाई दिया। वह पुरुष इस प्रकार ठुकेखें जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था।
उसकी दृष्टि ही कालयवन के शरीर में आग लग गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया। कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले, वे इक्ष्वाकुवंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुंद थे। इस तरह कल्यवन का अंत हो गया।
: ...
कालयवन वध कथा से अनेक नैतिक और आध्यात्मिक संदेश मिलते हैं। सबसे प्रमुख संदेश यह है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है, हालाँकि वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो।
कालयवन, जिसने अपनी शक्ति और बल के घमंड में आकर मथुरा पर आक्रमण किया, अंततः उसके अहंकार के कारण ही नष्ट हो गया। श्रीकृष्ण ने अपने अद्वितीय दास कौशल से यह सिद्ध किया है कि बुद्धि और धैर्य से बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना किया जा सकता है।
श्रीकृष्ण के कालजयी वध में की गई योजना से यह भी सीख मिलती है कि कभी-कभी प्रत्यक्ष युद्ध से बचाकर, दर्शन से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने बिना रक्तपात के कालायवन का अंत कर दिया और मथुरा के लोगों को एक बड़ी विपत्ति से मुक्त कर दिया।
मुचुकुंद का इस कथा में योगदान भी महत्वपूर्ण है। उनकी तपस्या और बलिदान का परिणाम यह हुआ कि कालयवन जैसे दुष्ट का अंत हुआ। यह कथा भी यही कहती है कि सच्चे तपस्वियों की शक्ति कितनी प्रभावशाली हो सकती है, और उनका आशीर्वाद और तप का प्रभाव कभी व्यर्थ नहीं जाता।
इस प्रकार, कालयवन वध कथा एक महत्वपूर्ण शिक्षाप्रद कथा है जो महाभारत की अन्य कथाओं की तरह ही हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों और चरित्र के सर्वोच्च आदर्शों से अवगत कराती है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि अधर्म का अंत निश्चित है और सत्य और धर्म की सदा विजय होती है।