भैया दूज, जिसे भाई दूज भी कहा जाता है, भारतीय त्योहारों की एक महत्वपूर्ण परंपरा है जो भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है। इस त्यौहार का आयोजन बेटियों के दो दिन बाद किया जाता है, और यह भाई-बहन के बीच प्रेम, सम्मान और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में इस पर्व का विशेष महत्व बताया गया है। भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्ते को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और भैया दूज इसी रिश्ते को पूरा करने का पर्व है।
भैया दूज की पौराणिक कथा कई रूप में प्रचलित है, लेकिन सबसे लोकप्रिय कथा यमराज और उनकी बहन यमुनाजी की है। कहा जाता है कि एक बार यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने उनके घर आए थे। यमुनाजी ने अपने भाई का बड़े प्यार और सत्कार से स्वागत किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया।
इस अवसर पर यमराज ने अपनी बहन को क्षमा कर दिया कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करेगा और उससे तिलक करवाएगा, उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इस प्रकार, यह पर्व भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के साथ मनाया जाता है।
भैया दूज लोक कथा
इधर भाई जब बहिन के घर जा रहा था तो उसे रास्ते में साँप मिला। साँप उसे डसने को हुआ।
भाई बोला: तुम मुझे क्यू दस रहे हो?
सांप बोला: मैं तेरा काल हूँ। और मुझे तुमको डसना है।
भाई बोला: मेरी बहन मेरा इंतज़ार कर रही है। मैं जब तिलक करा के वापस लौटूंगी, तब तुम मुझे दस्स ले लूंगी।
सांप ने कहा: भला आज तक कोई अपनी मौत के लिए लौट के आया है, जो तुम आओगे।
भाई ने कहा: अगर तू यकीन नहीं है तो तू मेरे झोले में बैठ जा| जब मैं अपनी बहिन के तिलक कर लू तब तू मुझे दस्स लेना। सांप ने ऐसा ही किया।
भाई बहिन के घर पहुँच गया। बहुत बड़े खुश हुए।
भाई बोला: बहिन, जल्दी से खाना दे, बड़ी भूख लगी है।
बहिन क्या करे। न तो दूध कि रसोई तैयार, न ही घी में चावल तैयार।
भाई ने पूछा: बहिन इतनी देर क्यों लग रही है? तू क्या रहा है?
तब बहिन ने बताया कि ऐसे-ऐसे किया है।
भाई बोला: पगली! कहीं-कहीं घी में भी चावल होते हैं, या दूध से कोई रसोई लीपे होती है। गोबर से रसोई लीप, दूध में चावल।
बहिन ने ऐसा ही किया। खाना खा के भाई को बहुत ज़ोरदार नींद आने लगी। बहुत में बहिन के बच्चे आ गये। बोले-माँ मामा हमारे लिए क्या लेके हो?
भाई बोला: में तो कुछ नहीं लाया।
बच्चे ने वह झोला ले लिया जिसमें सांप था। जेसी ने ही उसे खोला, उसमें से हीरे का हार निकला।
बहिन ने कहा: भैया तूने बताया नहीं कि तू मेरे लिए इतना सुंदर हार ले हो।
भाई बोला: बहना तुझे पसंद है तो तू लेले, मुझे हार का क्या करना।
अगले दिन भाई बोला: अब मुझे जाना है, मेरे लिए खाना रख दे| बहिन ने उसके लिए लड्डू बना कर एक डब्बे में रख के दे दिया।
भाई कुछ दूर जाकर, थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। इधर बहिन के जब बच्चों को जब भूख लगी तो माँ से कहा कि खाना दे दो।
माँ ने कहा: खाना अभी बनने में देर है। तो बच्चे बोले कि मामा को जो रखा है वही दे दो। तो वह बोली कि लड्डू बनाने के लिए बाजरा पीसा था, वही बचा पड़ा है चक्की में, जाकर खा लो। बच्चों ने देखा कि चक्की में तो साँप की हथड़ियाँ पड़ी हैं।
यही बात माँ को बताई तो वह बावड़ी सी हो कर भाई के पीछे भागी। रास्ते भर लोगों से पूछती कि किसी ने मेरी गली बटोई देखी, किसी ने मेरा बावड़ा सा भाई देखा। तब एक ने बताया कि कोई पेड़ के नीचे लेटा तो है, देख ले वही तो नहीं। भागी भागी पेड़ के नीचे पहुची। अपने भाई को नींद से उठा लिया। भैया भैया कहीं तूने मेरे लड्डू तो नहीं खाए!!
भाई बोला: ये ले तेरे लड्डू, नहीं खाए माने। ले दे के लड्डू ही तो दिए थे, वह भी पीछे-पीछे आ गया।
बहिन बोली: नहीं भाई, तू झूठ बोल रहा है, जरूर तूने खाया है| अब तो मैं तेरे साथ चलूंगी।
भाई बोला: तू न मान रही है तो चल फिर।
चलते चलते बहिन को मीठा लगता है, वह भाई को बकवास है कि मुझे पानी पीना है।
भाई बोला: अब मैं यहाँ तेरे लिए पानी कहाँ से लाऊँ, देख ! दूर कहीं चील उड़ती हुई हैं,चली जा वहाँ शायद तुम पानी मिल जाए।
जब बहिन वहाँ थी, और पानी पी कर जब लौट रही थी तो रास्ते में देखा कि एक जगह ज़मीन में 6 शिलाए गढ़ी हैं, और एक बिना गढ़े रखी हुई थी। उसने एक बुधिया से पूछा कि ये शिलाएँ कैसी हैं।
उस बुधिया ने बताया कि: एक बुधिया है। उसके सात बेटे थे। 6 बेटा तो शादी के मंडप में ही मर चुका है, तो उसका नाम कि ये शिलाएँ ज़मीन में गढ़ी हैं, अभी सातवे कि शादी होनी बाकी है। जब उसकी शादी होगी तो वह भी मंडप में ही मर जाएगी, तब यह सातवीं सिला भी ज़मीन में गड़ जाएगी।
यह सुनकर बहिन समझ में आ गया कि ये सिलाएँ किसी और की तरह उसके भाइयों के नाम की हैं। उसने उस बुधिया से अपने सातवे भाई को बचाने का उपाय पूछा। बुधिया ने उससे कहा कि वह अपने सातवे भाई को केस बचा सकती है। सब जान कर वह वहां से अपने बॉल खुले कर के पागलों की तरह अपने भाई को गालियां देती हुई चली।
भाई के पास आकर बोलने लगी: तू तो जलेगा, कुटेगा, मरेगा।
भाई उसके ऐसे व्यवहार को देखकर चौंक गया पर उसे कुछ समझ नहीं आया। इसी तरह भाई बहिन माँ के घर पहुँच गए। थोड़े समय के बाद भाई के लिए सगाई आने लगी। उसकी शादी तय हो गई।
जब भाई को सहारा पहनने लगे तो वह बोली: इसे क्यू सहारा बांधेगा, सहारा तो मैं पहनूँगी। ये तो जलेगा, मरेगा।
सब लोगों ने दुखी होकर सहरा बहिन को दे दिया। बहिन ने देखा कि कलंगी में उस जगह सांप का बच्चा था। बहिन ने उसे निकाल के फैंक दिया।
अब जब भाई घोड़ी पतली लगा तो बहिन फिर बोली: ये घोड़ी पर क्यू चढ़ेगा, घोड़ी पर तो मैं गिरूंगी, ये तो जलेगा, मरेगा, इसकी लाश को चील कौवे खाएंगे। सब लोग बहुत परेशान। सब ने उसे घोड़ी पर भी गिराया।
अब जब बारात चलने को हुई तब बहिन बोली: ये क्यू दरवाजे से निकलेगा, ये तो पीछे के रास्ते से होगा, दरवाजे से तो मैं निकलूंगी। जब वह दरवाजे के नीचे से जा रही थी तो दरवाजा अचानक गिरने लगा। बहिन ने एक ईंट उठा कर अपनी चुनरी में रख ली, दरवाजा वही कि वही रुक गया। सब लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ।
रास्ते में एक जगह बारात रुकी तो भाई को पीपल के पेड़ों के नीचे खड़ा कर दिया।
बहिन ने कहा: ये क्यूं छाव में खड़ा होगा, ये तो धूप में खड़ा होगा| छाँव में तो मैं खड़ी होऊँगी।
जैसे ही वह पेड़ के नीचे खड़ी हुई, पेड़ गिरने लगा। बहिन ने एक पत्ता तोड़ कर अपनी चुनरी में रख लिया, पेड़ वही कि वही रुक गया। अब तो सबको विश्वास हो गया कि ये बावली कोई जादू टोना सीख रही है, जो बार-बार अपने भाई की रक्षा कर रही है। ऐसे करते करते फेरों का समय आ गया।
जब दुल्हन आई तो उसने दुल्हन के कान में कहा: अब तक तो माने तेरे पति को बचा लिया, अब तू ही अपने पति को और साथ ही अपने मरे हुए जेठों को बचा सकती है।
फेरों के समय एक नाग आया, वह जैसे ही स्वर्गदूत को डसने को हुआ, दुल्हन ने उसे एक लोटे में भर के ऊपर से प्लेट से बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद नागिन लहर लहर करती आई।
दुल्हन से बोली: तू मेरा पति छोड़।
दुल्हन बोली: पहले तू मेरा पति छोड़।
नागिन ने कहा: ठीक है माने तेरा पति बचा।
दुल्हन: इसे नहीं, पहले तीन बार बोल।
नागिन ने 3 बार बोला, फिर बोली कि अब मेरे पति को छोड़।
दुल्हन बोली: एक मेरे पति से क्या होगा, हसने बोलने के लिए जेठ भी तो होना चाहिए, एक जेठ भी छोड़।
नागिन ने जेठ के भी प्राण दे ।
फिर दुल्हन ने कहा: एक जेठ से लड़ाई हो सकती है तो एक और जेठ। वो विदेश चला गया तो तीसरी जेठ भी छोड़ दिया।
इस तरह एक करके दुल्हन ने अपने 6 जेठ को जीवित करा दिया।
इधर रो रो के बुढ़िया का बुरा हाल था। कि अब तो मेरा सातवां बेटा भी बाकी बेटों की तरह मर जाएगा। गाँव वालों ने उसे बताया कि उसके सात बेटे और बहुते आ रही है।
तो बुढ़िया बोली: गर यह बात सच हो तो मेरी आँखो कि रोशनी वापस आ जाए और मेरे सीने से दूध कि धार बहने लगे। ऐसा ही हुआ। अपने सारे बहुओं को देख कर वह बहुत खुश हुई।
बोली: यह सब तो मेरी बावली का किया गया है। मेरी बेटी कहाँ है?
सब बहिन को दबाने लगे। देखा तो वह भूसे की अलमारी में सो रही थी। जब उसे पता चला कि उसका भाई सही सलामत है तो वह अपने घर चली। उसके पीछे पीछे सारी लक्ष्मी भी जाने लगी।
बुधिया ने कहा: बेटी, पीछे मुड़ के देख! तू सारी लक्ष्मी ले जाएगी तो तेरे भाई भाभी क्या खाएंगे।
तब बहिन ने पीछे मुड़ के देखा और कहा: जो माँ ने अपने हाथों से दिया वह मेरे साथ चल, बाद में बाकी का भाई भाभी के पास रहे। इस तरह एक बहिन ने अपने भाई की रक्षा की।
निष्कर्ष:
भैया दूज का पर्व भारतीय संस्कृति और परिवार की महत्ता को उजागर करता है। यह त्यौहार केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि भाई-बहन के अभिन्न प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं में हमें न केवल इस पर्व का धार्मिक महत्व बताया गया है, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते की गहराई और उनकी सामाजिक भूमिका को भी समझाया गया है।
आज के व्यस्त जीवन में, जहां परिवार के सदस्य एक-दूसरे के साथ कम समय में सीखते हैं, ऐसे त्योहार एक अवसर प्रदान करते हैं जब सभी एक साथ आने वाले पुराने संबंधों को नई ऊर्जा से भर सकते हैं। भैया दूज हमें यह सिखाता है कि चाहे कितना भी समय बीत जाए, भाई-बहन का रिश्ता अटूट रहता है और यह त्योहार इसी तरह के अटूट बंधन की यादगार है।
यमराज और यमुनाजी की कथा हमें यह संदेश देती है कि सच्चा प्यार और स्नेह किसी भी तरह से दुख को पार कर सकता है और हमें जीवन के हर मोड़ पर एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।