श्री राणी सती दादी जी चालीसा के साथ आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करें, यह एक पवित्र भजन है जो राणी सती दादी जी के दिव्य सार का सम्मान करता है।
हिंदी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह पूजनीय मंत्र आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य कृपा के लिए आशीर्वाद मांगता है। आइए श्री राणी सती दादी जी चालीसा की गहन भक्ति का पता लगाएं
श्री राणी सती दादी चालीसा हिंदी में
दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन,
दुष्यंत भाव सुधार,
रानी सती सु विमल यश,
बरनाउ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै,
भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करुणामई,
सुख सम्पति संसार॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी।
जग विख्यात सभी मन मानी ॥
नमो नमो संकट कू हरनी।
मनवांछित पूर्ण सब करनी ॥
नमो नमो जय जय जगदम्बा।
भक्तन काज न होयबंडा ॥
नमो नमो जय जय जगतारिणी।
सेवक जन के काज सुधारिणी ॥ 4
दिव्य रूप सिर चूनर सोहे ।
जगमगात कुण्डल मन मोहे ॥
मांग सिंदूर सुखार टीकी ।
गजमुक्ता नथ सुन्दर नीकी ॥
गल वैजन्ती माल विराजे ।
सोलहों साज बदन पे साजे ॥
धन्य भाग गुरसामलजी को ।
महम दोकवा जन्म सती को ॥ 8
तनधनदास पति वर पाये ।
आनंद मंगल होत सवाये ॥
गढ़ीराम पुत्र वधु होके ।
वंश पवित्र किया कुल दोके ॥
पति देव रणमोय जुझारे ।
सति रूप हो शत्रु संहारे ॥
पति संग ले सद् गति पाई ।
सुर मन हर्ष सुमन बरसाई ॥ 12
धन्य भाग उस राणा जी को ।
सुफल हुवा कर दरस सती का ॥
विक्रम तेरह सौ बावन कौन ।
मंगसिर बदी नौमी मंगल कौन ॥
नगर झून्झूनू प्रगति माता ।
जग विख्यात सुमंगल दाता॥
दूर देश के यात्री आवै ।
धुप दीप नैवैध्य चढावे ॥ 16
ऊँचा ऊँचाते है आनंद से ।
पूजा तन मन धन श्रीफल से ॥
जाट जङुला रात जगावे ।
बांसल गोत्री सभी मनावे ॥
पूजन पाठ द्विज करें ।
वेद ध्वनि मुख से उच्चरते ॥
नाना भाँति भाँति पडा ।
विप्र जनो को न्यूत जिमाना ॥ 20
श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते ।
सेवक मनवांछित फल अर्जित ॥
जय जय कार करे नर नारी ।
श्री राणी सतीजी की बलिहारी ॥
द्वार कोट नित नौबत बाजे ।
होत सिंगार साज अति साजे ॥
रत्न सिंहासन झलके नीको ।
पलपल छिनछिन ध्यान सती को ॥ 24
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला ।
भारता मेला रंग रंगीला ॥
भक्त सूजन की सकल भीङ है ।
दर्शन के हित नहिं छीङ है ॥
अटल भुवन ज्योति तिहारी में ।
तेज पुंज जग मग उजियारी ॥
आदि शक्ति मे मिली ज्योति है ।
देश देश में भवन भौति है ॥ 28
नाना विधि से पूजा करें ।
निश दिन ध्यान तिहारो धर्ते ॥
कष्ट निवारिणी दुःख: नासिनी ।
करुणामयी झुंझुनु वासिनी ॥
प्रथम सती नारायणी नाम ।
द्वादश और हुई इस धाम ॥
तिहूँ लोक मे कीरतिछाई ।
रानी सतीजी की फिरी दुहाई ॥ 32
प्रातः सायं आरती उतारें ।
नौबत घंटा ध्वनि टंकारे ॥
राग छत्तीसों बाजा बाजे ।
तेरहु मंड सुन्दर अति साजे ॥
त्राहि त्राहि मै शरण आपकी ।
पुरी मन की आस दास की ॥
मुखको एक भरोसाो तेरो ।
आन सुधारो मैया कारज मेरो ॥ 36
पूजा जप तप नेम न जानू ।
निर्मल महिमा नित्य बखानू ॥
भक्तन की आपत्ति हर लाइन ।
पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी ॥ 40
पढ़े चालीसा जो शतबारा ।
होय सिद्ध मन माहि विचारा ॥
तिबरिया ले शरण तिहारी।
क्षमा करो सब्भूल हमारी ॥
॥ दोहा ॥
दुःख दुःख विपदा हरण,
जन जीवन आधार ।
बड़ी बात सुधारियो,
सब अपराध बिसार ॥
॥ माता श्री राणी सतीजी की जय ॥
श्री राणी सती दादी जी चालीसा अंग्रेजी में
॥दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषित भाव सुधार,
राणीसति सुविमल यश, बरनउ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मे, भ्रम रह्यो संसार,
शरण गहि करुणामयी, सुख सम्पत्ति संचार॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मन्नी।
नमो नमो संकटकुं हरनी, मन वंचित पूरा सब करनी॥
नमो नमो जय जय जगदम्बे, भक्तन काज न होय विलम्बे।
नमो नमो जय जय जगतारिणी, सेवक जनन के काज सुधारिणी॥
दिव्य रूप सिर चुन्दर सोहे, जगमगात कुण्डल मन मोहे।
मांग सिन्दूर सुखजल टिक्की, गज मुक्ता नाथ सुन्दर निकी॥
गले बैजंती माल बिराजे, सोलह साज बदन पे साजे।
धन्य भाग गुरसमल जी को, महं दोक्वा जनम सती को॥
तनधन दास पतिवर पाए, आनंद मंगल होत सवे।
जालीराम पुत्र वधू होके, वंश पवित्र किया कुल दोके॥
पति देव रण मय झुंझारे, सती रूप हो शत्रु संघारे।
पति संग ले सद्गति पाई, सुर मन हरष सुमन बरसाई॥
धन्य धन्य उस रणजी को, सफल हुआ कर दरस सती को।
विक्रम तेरह सो बावनकु, मंगसिर बड़ी नाओमी मंगल कु॥
नगर झुंझुनूं प्रगति माता, जग विख्यात सुमंगल दाता।
दूर देश के यात्री आवे, धूप दीप नवैद्य चढ़ावे॥
उचाड़ उचाड़ ते हैं आनंद से, पूजा तन मन धन श्रीफल से।
जात जदुला रात जगावे, बांसल गोटी सभी मनावे॥
पूजन पथ पाठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चारित।
नाना भांति भांति पकवाना, विप्र जानो को न्युत जिमाना॥
श्रद्धा भक्ति सहित हर्षते, सेवक मन वंचित फल पाते।
जय जय कर करे नर नारी, श्री राणीसती की बलिहारी॥
द्वार कोट नित नौबत बाजे, गरम श्रृंगार साज अति साजे।
रत्न सिंहासन झलके निको, पल पल चिन चिन ध्यान सती को॥
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला।
भक्त सुजानकी सकड़ भेद है, दर्शनके हित नहिं छिड़ है॥
अटल भुवन में ज्योति तिहारी, तेज पुंज जग मयिं उजारी।
आदि शक्ति में मिली ज्योति है, देश देश में भवन भती है॥
नाना विधि सो पूजा करते, निष् दिन ध्यान तिहारा धरते।
कष्ट निवारणि दुःख नाशिनी, करुणामयी झुंझुनूं वासिनी॥
प्रथम सती नारायणी नाम, द्वादस और हुई इसी धाम।
तिहुँ लोक में कीर्ति चाहै, श्री राणी सती की फिरि दुहाई॥
सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घंटा ध्वनि टनारे।
राग छत्तीसों बाजा बाजे, तेरहूं मंद सुन्दर अति साजे॥
त्राहि त्राहि में शरण आपकी, बेचारे मन की आस दास की।
मुझको एक भरोसाो तेरो, आन सुधारो कारज मेरो॥
पूजा जप तप नेम न जानु, निर्मल महिमा नित्य बखानु।
भक्तन की आपति हर लेनि, पुत्र पौत्र सम्पति वर देनि॥
पढ़े यह चालीसा जो शत बारा, होय सिद्धि मन माहि बिचारा।
सगला भक्त शरण ली थारी, क्षमा करो सब चूक हमारी॥
॥दोहा ॥
दुःख आपदा तावपद हरण, जगजीवन अधर।
बिगड़ी बात सुधारिये, सब अपराध बिसार॥
श्री रानी सती दादी जी चालीसा एक पवित्र भजन है जो रानी सती दादी जी के दिव्य सार की वंदना करता है। हिंदी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक उत्थान को आमंत्रित करता है।
आइये हम श्री राणी सती दादी जी चालीसा के भक्तिमय उत्साह में डूब जाएं तथा दिव्य कृपा और आध्यात्मिक ज्ञान का अनुभव करें।