श्री दुर्गा चालीसा (दुर्गा चालीसा) हिंदी और अंग्रेजी में

श्री दुर्गा चालीसा, देवी दुर्गा को समर्पित एक पूजनीय भजन है, जो उनकी दिव्य कृपा और शक्ति का जश्न मनाता है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों में गूंजने वाले छंदों के साथ, यह भक्ति मंत्र भयंकर देवता के आशीर्वाद और सुरक्षा का आह्वान करता है। आइए इसके छंदों के माध्यम से श्री दुर्गा चालीसा के आध्यात्मिक सार का पता लगाएं।

दुर्गा चालीसा हिंदी में

नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरणी ॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फले उजियारी ॥

शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥

रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दर्श करत जन अति सुख पावे ॥ 4

तुम संसार शक्ति लायी कीना ।
पालन ​​हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

प्रलयकाल सब नाशन हरि ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥

शिव योगी तुम्हारे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु हे नित ध्यावेन ॥ 8

रूप सरस्वती तुम धारा को ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबरा ॥

धरियो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई तोड़कर खम्बा ॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पथायो ॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ 12

क्षीरसिंधु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

हिंगलाज में तुम्हारी भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥

मातंगी अरु धूमावती माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारणि ॥ 16

केहरी वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
उठत शत्रु हिय शूला ॥

नगरकोट में तुम विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार महि अकुलानी ॥

रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ : ...

अमरपुरी अरु बसव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥

ज्वाला में है ज्योति तेरी ।
धन्य सदा पूजें नर्नारी ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥

ध्यावे अतः जो नर मन लाए ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ 1. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 1 ...

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम॥

शंकर आचार्य तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ 3. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 19. 19. 20 ...

शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

हे प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दै शक्ति नहिं कीन विलम्ब ॥

मोको मातु कष्ट अति बरगो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥

आशा तृष्णा कृतज्ञता सतावें ।
मोह मदादिक सब नाशवें ॥ 3. 3. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 19. 19. 20 ...

शत्रु नाश कीजय महारानी ।
सुमिरौं इकचित् तु भवानी ॥

करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥

जब लगी जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ 40

देवीदास शरण निज जान ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥

श्री दुर्गा चालीसा अंग्रेजी में

॥ चौपाई ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करणी। नमो नमो अम्बे दुःख हरणी॥

निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहुँ लोका फैली उजियारी॥

शशि ललाता मुख महाविशाला। नेत्र लाला भृकुटि विकराला॥

रूपा मातु को अधिका सुहावे। दरशा करता जन अति सुख पावे॥

तुमा संसार शक्ति लाया कीना। पालन ​​हेतु अन्ना धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हरि। तुमा गौरी शिव शंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हारे गुण दिये। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नीता ध्यावे॥

रूपा सरस्वती को तुमा धरा। दे सुबुद्धि ऋषि-मुनीना उबारा॥

धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगटा भयं फडाकरा खम्बा॥

रक्षा करा प्रहलाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पथयो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहिं। श्री नारायण अंग समाहिं॥

क्षीरसिंधु में करता विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमिता न जाता बखानी॥

मातंगी अरु धूमावती माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भला भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहना सोहा भवानी। लांगुरा वीरा चलत अगवानी॥

करा में खप्परा खड्ग विराजै। जाको देखा काला दारा भजे॥

सोहै अस्त्र आभा त्रिशूला। जाते उत्थाता शत्रु हिया शूला॥

नागर कोटि में तुम्हीं विराजता। तिहुँलोका में डंका बजाता॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुमा मारे। रक्तबीज शंखना संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि आगा भरा महि अकुलानी॥

रूपा कराला कालिका धारा। सेना सहिता तुम तिहि संहारा॥

परि गधा संताना परा जाबा जाबा। भयि सहाय मातु तुमा तबा तबा॥

अमरपुरी अरु बसव लोका। तबा महिमा सबा रहे अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नारा नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यशा गावै। दुःख दरिद्र निकट नहिं आवे॥

ध्यावे तुम्हें जो नारा मन लाई। जनम मरणा ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुरा मुनि कहाता पुकारी। योग न हो बिना शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारजा तप कीनो। काम अरु क्रोध जीती सब लीनो॥

निषिदीना ध्यान धरो शंकर को। कहु काला नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूपा को मरमा ना पायो। शक्ति गई तब मन पछितयो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्बे भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दायी शक्ति नहिं कीना विलम्बा॥

मोको मातु कष्टा अति घेरो। तुमा बिना कौना हारै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपात सतावे। मोहा मदादिका सब विनाशै॥

शत्रु नाशा कीजै महारानी। सुमिरौं इकाचिता तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥

जाबा लागी जियौं दया फला पौन। तुम्हारो यशा मैं सदा सोनाऊं॥

दुर्गा चालीसा जो नीता गावै। सब सुख भोग परमपदा पावै॥

देविदास शरण निज जानि। करहु कृपा जगदम्बे भवानी॥

श्री दुर्गा चालीसा शक्ति और पूर्णता की प्रतीक देवी दुर्गा के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।

इसके छंदों के माध्यम से भक्तगण दिव्य मां से आशीर्वाद, शक्ति और सुरक्षा की कामना करते हैं, जिससे उन्हें सार्वभौमिक शक्ति का उपयोग करने में सहायता मिलती है।

श्री दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ देवी का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करता है, तथा हमें आध्यात्मिक पूर्णता और दिव्य संबंध की ओर ले जाता है।

आइए हम श्री दुर्गा चालीसा की दिव्य शक्ति में डूब जाएं और अपने जीवन में शक्ति और सुरक्षा प्राप्त करें।

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