शीतला चालीसा, देवी शीतला को समर्पित एक पवित्र भजन है, जो उनकी दिव्य उपचार शक्तियों और आशीर्वाद का जश्न मनाता है।
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में गूंजने वाले इस भक्ति मंत्र में बीमारियों और कष्टों से सुरक्षा के लिए देवी की कृपा का आह्वान किया गया है। आइए शीतला चालीसा के श्लोकों के माध्यम से इसके आध्यात्मिक सार को समझें।
शीतला चालीसा हिंदी में
॥ दोहा॥
जय जय माता शीतला,
तुमहिं धरै जो ध्यान ।
होय विमल शीतल हृदय,
विकसै बुद्धि बल ज्ञान ॥
घट-घट निवासी शीतला,
शीतल प्रभा तुम्हारे ।
शीतल छियां में झुले,
मियाँ पलना दार ॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय श्री शीतला भवानी ।
जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
गृह-गृह शक्ति तेरी राजित ।
पूर्ण शरदचन्द्र समसाजित ॥
विस्फोटक से जलता शरीर ।
शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
मात शीतला तव शुभनामा ।
सबके गाधे आवहीं काम ॥४॥
शोक हरि शंकरी भवानी ।
बाल-प्राणक्षरी सुख दानी ॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै ।
मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
चौसठ योगिन संग में गावैं ।
वीणा ताल मृदंग बजावै ॥
नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं ।
सहज शेष शिव पर ना पावैं ॥८॥
धन्य धन्य धात्री महारानी ।
सुरनर मुनि तब सुयश बखानी ॥
ज्वाला रूप महा बलकारी ।
दैत्य एक भारी विस्फोटक ॥
घर घर प्रविष्ट कोई न रक्षत ।
रोग रूप धरि बालक भक्षत ॥
हाहाकार मचयो जगभारी ।
सक्यो न जब संकट तारी ॥१२॥
तब मनय्या धरि अद्भुत रूपा ।
कर में हेतु मरजनी सूपा ॥
दाबहिं पकड़ि कर लीन्हो ।
मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो ॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा ।
मैय्या नहीं भल मैं कछु कीन्हा ॥
अबनहिं मातु काहुगृह जयहौं ।
जहाँ अपवित्र वही घर रहि हो ॥१६॥
अब भगतन शीतल भय जैहौं ।
प्रकाश भय घोर नसिहौं ॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याणा ।
वचन सत्य भाषे भगवाना ॥
पूजन पाठ मातु जब करी है ।
भय आनन्द सकल दुःख हरि है ॥
पुलिस भय जिहि घर भाई ।
भजै देवी कहँ यही उपाई ॥२०॥
कलश शीतलाका सजावै ।
द्विज से विधिवत पाठ करवाइ ॥
तुम्हे शीतला, जगकी माता ।
तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी ।
नमो नमामि शीतले देवि ॥
नमो सुखकरनी दु:खहरणी ।
नमो- नमो जगतारनि धरणी ॥२४॥
नमो नमो त्रैलोक्य वन्दिनी ।
पीड़ारिद्रक निकंदिनी ॥
श्री शीतला , शेढ़ला, महला ।
रुणाल्लिहृणि मातृ मण्डला ॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी ।
शोभित पंचनाम ईश्वरी ॥
रसभ, खर, बैसाख सुनंदन ।
गर्दभ दुर्वाकन्द निकन्दन ॥२८॥
सुमिरत संग शीतला माई,
जाही सकल सुख दूर पराई ॥
गलका, गलगण्डादि जुहोई ।
ताकर मंत्र न औषधि कोई ॥
एक मातु जी का आराधना ।
और नहीं कोई है साधन ॥
निश्चय मातु शरण जो आवै ।
निर्भय मन चाहा फल पावै ॥३२॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै ।
अंध, दृग निज दृष्टि निहारै ॥
बंध्या नारी पुत्र को पावै ।
जन्म दरिद्र धनि होइ जावै ॥
मातु शीतला के गुण गावत ।
लाखा मूक को छंद बनावत ॥
यामे कोई करै जनि शंका ।
जग मे मैया का ही डंका ॥३६॥
भगत 'कमल' प्रभुदासा ।
तट प्रयाग से पूरब पासा ॥
ग्राम तिवारी पुर मम बासा ।
ककरा गंगातट दुर्वासा ॥
अब देर हो गई मैं तो पुकारत ।
मातृ कृपा कौ बात निहारत ॥
द्वार सब आस लगाओ ।
अब सुधि लेत शीतला माई ॥४०॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा शीतला,
पाठ करे जो कोय ।
सपनें दुःख व्यापे नहीं,
नित सब मंगल होय ॥
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल,
भाल भाल किंतु ।
जग जननी का ये चरित,
रचित भक्ति रस बंटू ॥
॥ इति श्री शीतला चालीसा ॥
शीतला चालीसा अंग्रेजी में
॥दोहा ॥
जय-जय माता शीतला,
तुमहिं धरइ जो ध्याना ।
होया विमल शीतल हृदय,
विकासै बुद्धि बालज्ञान ॥
घाट-घाट बसी शीतला,
शीतल प्रभा तम्हारा ।
शीतल छइयां मैं झूलाई,
मइयाँ पलना डार॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय श्री शीतला भवानी ।
जय जग जननी सकला गुणखानि ॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजिता ।
पुराणं शारदाचन्द्रं समासजिता॥
विस्फोटक से जलता शरीरा ।
शीतल करता हरता सबा पीरा ॥
मातु शीतला तव शुभानामा ।
सबके गाधेन आवहिं काम ॥
शोकहारी शंकरी भवानी ।
बला-प्राणाक्षरी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलशा करराजै ।
मस्तका तेज सूर्य समराजै ॥
चौसठ योगिना संगा मे गावैं ।
विना तला मृदंग बाजवै ॥
नृत्य नाथा भैरो दिखलावैं ।
सहज शेष शिवा पारा न पावैं ॥
धन्या-धन्य धात्री महारानी ।
सुरणारा मुनि तबा सुयशा बखानि ॥
ज्वाला रूपा महा बलकारी ।
दैत्य एक विस्फोटक भारी ॥
घर-घर प्रविष्टता कोई न रक्षता ।
रोग रूपा धारी बलाका भक्षता ॥
हाहाकारा मच्यो जगभारी ।
सक्यो न जबा संकटा तारी ॥
तबा मैया धरि अद्भुत रूपा ।
करमें लिए मारजानी सूपा ॥
विस्फोतकहिं पकड़िन कर लिन्ह्यो ।
मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो ॥
बहुता प्रकारा वहा विनति कीन्हा ।
मैया नहिं भला मैं कछु कीन्हा॥
अबनहिं मातु, कहुगृह जैहौं ।
जहाँ अपवित्र वही घर रहिहौं ॥
भभकता ताना, शीतल ह्वै जैहैं ।
विस्फोटक भयघोरा नासैहैं ॥
श्री शीतलाहिन भजे कल्याणा ।
वचनं सत्य भाषे भगवान् ॥
विस्फोटक भया जीहि गृह भई ।
भजै देवी कहां यहि उपाई ॥
कलशा शीतला का सजावै ।
द्विजा से विधिवता पाठ करवाइ ॥
तुम्हीं शीतला, जागा की माता ।
तुमहिं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी ।
नमो नमामि शीतले देवि ॥
नमो सुखकारणि दुःखहरणि ।
नमो-नमो जगतारनि धरणी ॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी ।
दुःखदरिद्रादिका निकन्दिनी ॥
श्री शीतला, शेढाला, महाला।
॥ॐ ...
हो तुमा दिगम्बर तनुधारी ।
शोभिता पंचनामा आसावरी ॥
रसाभा, खरा बैशाखा सुनन्दना ।
गर्दभ दुर्वाकाण्ड निकन्दना ॥
सुमिरता संग शीतला माई ।
जाहि सकला दुःख दुरा पराई ॥
गलका, गलगण्डादि जुहोई ।
ताकार मंत्र न औषधि कोई ॥
एका मातु जी की आराधना ।
आभा नहीं कोई है साधना॥
निश्चय मातु शरण जो आवै ।
निर्भय मन इच्छिता फल पावै ॥
कोढ़ी, निर्मला काया धरई ।
अन्ध, दृग-निज दृष्टि निहारै ॥
वन्धया नारी पुत्र को पावै ।
जन्म दरिद्र धनि होई जावै ॥
मातु शीतला के गुण गावता ।
लाखा मुका को छंदा बनावता ॥
यामे कोई करै जनि शंका ।
जग में मैया का ही डंका॥
भगत कमल प्रभुदास ।
तत् प्रयाग से पूरबा पासा ॥
ग्राम तिवारी पुर मम बसा ।
काकरा गंगा तात दुर्वासा ॥
आबा विलम्बा मैं तोहि पुकारता ।
मातु कृपा कौ बात निहारता ॥
पद द्वार सबा आसा लगाई ।
अब सुधि लेत शीतला माई॥
॥दोहा ॥
यह चालीसा शीतला,
पाठ करे जो कोय ।
सपने दुख व्यापे नहीं
नित सब मंगल होय॥
बुझे सहस्त्र विक्रमी शुक्ल,
भाल भाल किन्तु ।
जग जननी का यह चरित,
रचित भक्ति रस बिन्तु ॥
॥ इति श्री शीतला चालीसा ॥
शीतला चालीसा में देवी शीतला के प्रति भक्ति और श्रद्धा का सार समाहित है, जो दिव्य उपचार शक्तियों की प्रतीक हैं।
इसके श्लोकों के माध्यम से भक्तजन बीमारियों और कष्टों से सुरक्षा और आशीर्वाद मांगते हैं तथा स्वास्थ्य और कल्याण की ओर प्रेरित होते हैं।
शीतला चालीसा का नियमित पाठ करने से देवी शीतला का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है, जो हमें शारीरिक और आध्यात्मिक उपचार की ओर मार्गदर्शन करती है।
आइए हम शीतला चालीसा के दिव्य उपचार में डूब जाएं और अपने जीवन में सुरक्षा और कल्याण की कामना करें।