ओम जय महावीर प्रभु आरती एक श्रद्धापूर्ण भजन है जो भगवान महावीर, श्रद्धेय आध्यात्मिक गुरु और जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर को समर्पित है।
गहरी भक्ति और ईमानदारी के साथ गाई जाने वाली यह आरती भगवान महावीर के गुणों और दिव्य विशेषताओं का गुणगान करती है तथा ज्ञान, त्याग और अहिंसा के मार्ग पर बल देती है।
इस आरती के श्लोकों का जाप करते हुए भक्तगण आध्यात्मिक मुक्ति और आंतरिक शांति के लिए भगवान महावीर का आशीर्वाद मांगते हैं।
आइये हम ओम जय महावीर प्रभु आरती के पवित्र छंदों का गहन अध्ययन करें, तथा इसके गहन महत्व तथा इससे उत्पन्न होने वाली शाश्वत भक्ति का अन्वेषण करें।
आरती: ॐ जय महावीर प्रभु हिंदी में
ॐ जय महावीर प्रभु,
स्वामी जय महावीर प्रभु ।
कुंडलपुर अवतारी,
चांदनपुर अवतारी,
त्रिशलान्नन्द विभु ॥
सिद्धार्थ गृह निर्माण,
वैभव भारी था ।
बाल ब्रह्मचारी व्रत,
पाल्यो तप धारी ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
आत्म ज्ञान विरागी,
सम दृष्टि धारी ।
माया मोह विनाशक,
ज्ञान ज्योति जारी ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जग में पढ़ी अहिंसा,
आप ही विस्तारयो ।
हिंसा पाप मिटा कर,
सुधर्म परिचारियो ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
अमर चंद को सपना,
तू प्रभु दीना ।
मंदिर तीन शेखर का,
निर्मित है कीना ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जयपुर नृप भी तेरे,
अतिशय के सेवी ।
एक ग्राम तिन्ह दीनो,
सेवा हित यह भी ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जल में भिन्न कमल जो,
घर में बाल यति ।
राज पाठ सब त्यागे,
ममता मोह हती ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
भूमंडल चांदनपुर,
मंदिर मध्य लसे ।
शान्त जिनेश्वर मूरत,
दर्शन पाप लसे ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जो कोई तेरे दर पर,
इच्छा कर आवे ।
धन सुत्त सब कुछ पावे,
संकट मिट जावे ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
निषदिन प्रभु मंदिर में,
जगमग ज्योत जरे ।
हम सेवा चरणों में,
आनन्द मुँदफूल ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभु...॥
ॐ जय महावीर प्रभु,
स्वामी जय महावीर प्रभु ।
कुंडलपुर अवतारी,
चांदनपुर अवतारी,
त्रिशलान्नन्द विभु ॥
ओम जय महावीर प्रभु की आरती अंग्रेजी में
ओम जय महावीर प्रभु,
स्वामी जय महावीर प्रभु ।
कुंडलपुर अवतारी,
चंदनपुर अवतारी,
त्रिशला-नन्द विभु॥
सिद्धार्थ घर जनमे,
वैभव था भारी ।
बाल-ब्रह्मचारी व्रत,
पाल्यो तप धारी ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
आत्म ज्ञान विरागी,
सम दृष्टि धारी ।
माया-मोह विनाशक,
ज्ञान ज्योति जारी॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जग में पथ अहिंसा,
आप ही विस्तारियो ।
हिंसा पाप मिताकर,
सुधरं परिचार्यो ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
अमर चंद को सपना,
तुमने प्रभु दीना ।
मंदिर तीन शिखर का,
निर्मित है कीना ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जयपुर नृप भी तेरे,
अतिशय के सेवी ।
एक ग्राम तिन्ह दिनो,
सेवा हित यह भी॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जल मैं भीन कमल जो,
घर मैं बाल यति ।
राज पथ सब त्यागे,
ममता मोह हति ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
भूमण्डल चंदनपुर,
मंदिर मांढी लसे ।
शान्त जिनिश्वर मूरत,
दर्शन पाप लसे ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
जो कोई तेरे दर पर,
इच्छा कर आवे ।
धन सुत सब कुछ पावे,
संकट मिट जावे ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
निशदिन प्रभु मंदिर में,
जगमुग ज्योति जले ।
हम सेवक चरणों में,
आनंद मौंड भरेन ॥
॥ ॐ जय महावीर प्रभु...॥
ओम जय महावीर प्रभु,
स्वामी जय महावीर प्रभु ।
कुंडलपुर अवतारी,
चंदनपुर अवतारी,
त्रिशला-नन्द विभु॥
निष्कर्ष:
अंत में, ओम जय महावीर प्रभु आरती आध्यात्मिक ज्ञान और करुणा के प्रतीक भगवान महावीर के प्रति भक्ति और श्रद्धा की एक मार्मिक अभिव्यक्ति है।
इसके मधुर छंदों और हार्दिक प्रार्थनाओं के माध्यम से भक्त भगवान महावीर के दिव्य सार से जुड़ते हैं तथा अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन और प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
जैसे ही आरती समाप्त होती है, भक्त शांति, कृतज्ञता और भक्ति की भावना से भर जाते हैं, यह जानते हुए कि भगवान महावीर की दयालु उपस्थिति हमेशा उनके मार्ग को रोशन करेगी और उन्हें परम मुक्ति की ओर ले जाएगी। जय महावीर स्वामी!