नवरात्रि के पावन पर्व पर नौ देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है, जिनमें से चौथी देवी कूष्मांडा हैं। कूष्मांडा देवी को 'सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली' कहा जाता है। इनकी उपासना करने से भक्त को रोग, शोक और संकट से मुक्ति मिलती है। कूष्मांडा देवी का कवच एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो देवी की कृपा प्राप्त करने और जीवन में शांति और समृद्धि लाने का एक प्रभावशाली माध्यम है। इस कवच का नियमित पाठ करने से मानसिक, शारीरिक और आत्मिक बल में वृद्धि होती है।
कूष्मांडा देवी को उनके मुस्कुराहट के कारण 'कूष्मांडा' नाम दिया गया है, जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति का कारण बनी। यह कवच हमारे जीवन की हर बुराई और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। कूष्माण्डा देवी का कवच न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि यह हमारे भीतर सकारात्मकता और आत्मविश्वास भी जगाता है। आइए, हम इस दिव्य कवच की महिमा को जानेंगे और इसके पाठ के सबक को समझेंगे।
कूष्माण्डा देवी कवच
हंसराय में शिर पातु
कूष्माण्डे भवनाशिनीम् ।
परेशानी उठाइये,
हसरुश्च ललाटकम् ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे,
वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी
इन्द्राणि दक्षिणे मम ।
दिग्विद्वीक्षु सर्वत्रेव
कूँ बीजं सर्वदावतु ॥
निष्कर्ष
कूष्माण्डा देवी कवच: आस्था और सुरक्षा का संगम
कूष्मांडा देवी का कवच एक ऐसा शक्तिशाली साधन है जो हमारे जीवन की हर बुराई और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। इसका नियमित पाठ न केवल हमारी आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि हमारे मन को भी शांत और स्थिर बनाता है। जब हम इस कवच का श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करते हैं, तो हमें देवी कूष्मांडा की असीम कृपा प्राप्त होती है।
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहां तनाव और परेशानियों के हर कदम पर हमारा इंतजार करता है, कूष्मांडा देवी का कवच हमें मानसिक और आत्मिक बल प्रदान करता है। यह कवच हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और हर समस्या का समाधान पा सकते हैं।
देवी कूष्मांडा की उपासना से हम अपने जीवन में शांति, समृद्धि और सुख की अनुभूति कर सकते हैं। इसलिए, आइए हम सब मिलकर इस दिव्य कवच का पाठ करें और अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर बनाएं।