अथ चौरासी सिद्ध चालीसा (अथ चौरासी सिद्ध चालीसा - गोरखनाथ मठ) हिंदी और अंग्रेजी में

अथ चौरासी सिद्ध चालीसा के साथ आध्यात्मिक यात्रा पर चलें, यह गोरखनाथ मठ का एक पूजनीय भजन है, जिसमें चौरासी सिद्धों की स्तुति की गई है।

हिंदी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह पवित्र मंत्र आध्यात्मिक ज्ञान और उत्कृष्टता के लिए आशीर्वाद का आह्वान करता है। आइए अथ चौरासी सिद्ध चालीसा के दिव्य सार का पता लगाएं।

अथ चौरासी सिद्ध चालीसा हिंदी में

दोहा -
श्री गुरु गणनायक सिमर,
शारदा का आधार ।

कहूँ सुयश श्रीनाथ का,
निज मति के अनुसार ।

श्री गुरु गोरक्षनाथ के चरणों में आदेश ।
योग प्रताप को ,
जाने सकल नरेश ।

चौपाई
जय श्रीनाथ निरंजन स्वामी,
घट घट के तुम अन्तर्यामी ।

दीन दया के सागर,
सप्तद्वीप नवखण्ड उजागर ।

आदि पुरुष अद्वैत निरंजन,
निर्विकल्प निर्भय दुःख भंजन ।

अजर अमर अविचल अविनाशी,
ऋद्धि सिद्धि चरण की दासी ।

बाल यति ज्ञानी सुखकारी,
श्री गुरुनाथ परम हितकारी ।

रूप अनेक जगत में धारे,
भगत जनों के संकट तारे ।

सुमिरण चौरंगी जब कीन्हा,
बहुत प्रसन्न अमर पद दीन्हा ।

सिद्धों के सिरताज मनावो,
नव नाथों के नाथ कहावो ।

पार नाम के लिए भव जाल,
माइटेफ़्रेट ।

आदि नाथ मत्स्येन्द्र पीर,
घोरम नाथ धुन्धली वीर ।

कपिल मुनि चर्पट कंडेरी,
नीम नाथ पारस चंगेरी ।

परशुराम जमदग्नि नन्दन,
रावण मार राम रघुनन्दन ।

कंसादिक असुरन दलहारी,
वासुदेव अर्जुन धनुधारी ।

अचलेश्वर लक्ष्मण बलबीर,
बलदाई हलधर यदुवीर ।

सारंग नाथ पीर सरसाई,
तुङ्घ्गनाथ बद्री बलदाई ।

भूतनाथ धारीपा गोरा,
बटुकनाथ भैरो बल जोरा ।

वामदेव गौतम गंगाई,
गंगनाथ घोरी चलायाई ।

रतन नाथ रण जीतन हारा,
यवन जीत काबुल कंधारा ।

नाग नाथ नाहर रमताई,
बनखंडी सागर नंदाई ।

बंकनाथ कंठड़ सिद्ध रावल,
कानीपा निरीपा चन्द्रावल ।

गोपीचन्द भर्तृहरि भूप,
साधे योग लखे निज रूप ।

खेचर भूचर बाल गुंडाई,
धर्म नाथ कपाली कनकाई ।

सिद्धनाथ सोमेश्वर चण्डी,
भुसकै सुन्दर बहुदण्डी ।

अजयपाल शुकदेव व्यास,
नासकेतु नारद सुख रास ।

सनत्कुमार भरत निन्द्रा नहीं,
सनकादिक शरद सुर इन्द्र ।

भंवरनाथ आदि सिद्ध बाला,
युवान नाथ माणिक मतवाला ।

सिद्ध गरीब चंचल चंद्राई,
नीमनाथ अगर अमराई ।

त्रियारी त्र्यम्बक दुःख भंजन,
मंजुनाथ सेवक मन रंजन ।

भावनाथ भरम भयहारी,
उदयनाथ मंगल सुखकारी ।

सिद्ध जालन्धर म लीन पावे,
जाकी गति मति लखी न जावे ।

ओघड़देव कुबेर भंडारी,
सहजै सिद्धनाथ केदारी ।

कोटि अनन्त योगेश्वर राजा,
वज़न भोग योग के काजा ।

योग युक्ति करके भरपूर,
मोह माया से हो गए दूर ।

योग युक्ति कर कुन्ति माई,
पैदा किये पांचों बलदाई ।

धर्म अवतार युधिष्ठिर देवा,
अर्जुन भीम नकुल सहदेवा ।

योग युक्ति पार्थ हिय धारा,
दुर्योधन दल सहित संहारा ।

योग युक्ति पंचाली जानी,
दुःशासन से यह प्राण थानी ।

पावूँ रक्त न जब लग टेरा,
खुला रहे यह सीस मेरा ।

योग युक्ति सीता राम,
दशकंधर से गिरा उच्चारी ।

पापी तेरा वंश मिटाऊँ,
स्वर्ण लंक विध्वंसक कराऊँ ।

श्री रामचन्द्र को यश सुनाऊँ,
तो मैं सीता सती कहती हूँ ।

योग युक्ति अनुसूया कीनों,
त्रिभुवन नाथ साथ रस भीनों ।

देवदत्त अवधूत निरंजन,
प्रगट भये आप जग वन्दन ।

योग युक्ति मानवता कीन्ही,
उत्तम गति पुत्र को दीनी ।

योग युक्ति की बँधल माता,
गंगा जाने जगत विख्यातू ।

योग युक्ति मीरा ने पाई,
गढ़ चित्तौड़ में फिरी दुहाई ।

योग युक्ति अहिल्या जाना,
तीन लोक में चली कहानी ।

सावित्री सरस्वती भवानी,
पारबती शंकर सनमनी ।

सिंह भवानी मनसा माई,
भद्र कालिका सहजा बाई ।

कामरू देश कामक्षा योगन,
दक्षिण में तुलजा रस भोगन ।

उत्तर देश शारदा रानी,
पूरब में पाटन जग मानी ।

पश्चिम में हिंगलाज विराजे,
भैरव नाद शंखध्वनि बाजे ।

नव कोटिक दुर्गा महारानी,
रूप अनेक वेद नहिं जाने ।

काल रूप धर दैत्य संहारे,
रक्त बीज रण खेत पछारे ।

मैं योगन जग उत्पन्न करती,
पालन ​​करती संहृति करती ।

जाति सती की रक्षा करनी,
मार दुष्ट दल खप्पर भरनी ।

मैं श्रीनाथ निरंजन दासी,
जिनको ध्यावे सिद्ध चौरासी ।

योग युक्ति विराचे ब्रह्माण्डा,
योग युक्ति नए खंड ।

योग युक्ति तप तपें महेशा,
योग युक्ति धर धरे हैं शेषा ।

योग युक्ति विष्णु तन धरे,
योग युक्ति असुरन दल मारे ।

योग युक्ति गजानन जाने,
आदि देव तिरलोकी माने ।

योग युक्ति करके बलवान,
योग युक्ति करके बुद्धिमान ।

योग युक्ति कर पावे राज,
योग युक्ति कर सुधरे काज ।

योग युक्ति योगीश्वर जाने,
जनकादिक सनकादिक माने ।

योग युक्ति मुक्ती का द्वारा,
योग युक्ति रोलिंग नहिं निस्तारा ।

योग युक्ति जाके मन भावे,
ताकी महिमा कहि न जावे ।

जो नर सिध्दांत चालीसा,
आदर करें देव तेंतीसा ।

साधक पाठ पढ़ें नित जोई,
मनोकामना पूर्ण होई ।

धूप दीप नैवेद्य मिठाई,
रोट लंगोट को भोग लगाएं ।

दोहा -
रतन अमोलक जगत में,
योग युक्ति है मीत ।

नर से नारायण बने,
अटल योग की रीत ।

योग विहंगम पंथ को,
आदि नाथ शिव कीन्ह ।

शिष्य प्रशिष्य परम्परा,
सब मनुष्य को दीन्ह ।

प्रातः काल स्नान कर,
सिद्ध चालीसा ज्ञान ।

पढ़िए सुनिए नर पावही,
उत्तम पद निर्वाण ।
स्रोत: gorakhnathmandir.in

अथ चौरासी सिद्ध चालीसा अंग्रेजी में

दोहा -
श्री गुरु गणनायक सिमर,
शारदा का आधार ।

कहूँ सुयश श्रीनाथ का,
निज मति के अनुसार ।

श्री गुरु गोरक्षनाथ के चरणों में आदेश ।
जिनके योग प्रताप को,
जेन सकल नरेश ।

चौपाई
जय श्रीनाथ निरंजन स्वामी,
घट घट के तुम अंतर्यामी ।

दीन दयालु दया के सागर,
सप्तद्वीप नवखंड उजागर ।

आदि पुरुष अद्वैत निरंजन,
निर्विकल्प निर्भय दुःख भंजन ।

अजर अमर अविचल अविनाशी,
ऋद्धि सिद्धि चरणों की दासी ।

बाल यति ज्ञानी सुखकारी,
श्री गुरुनाथ परम हितकारी ।

रूप अनेक जगत में धरे,
भगत जनों के संकट तारे ।

सुमिरन चौरंगी जब किन्हा,
हुए प्रसन्न अमर पद दीन्हा ।

सिद्धों के सिरताज मनावो,
नव नाथों के नाथ कहावो ।

जिनका नाम लिए भव जाल,
अवगमन माइटे तत्काल ।

आदि नाथ मत्स्येन्द्र पीर,
घोरम नाथ धुँधली वीर ।

कपिल मुनि चरपट कंडेरी,
नीम नाथ पारस चंगेरी ।

परशुराम जमदग्नि नंदन,
रावण मार राम रघुनन्दन ।

कंसादिक असुरन दलाहारी,
वासुदेव अर्जुन धनुधारी ।

अचलेश्वर लक्ष्मण बल वीर,
बलदाई हलधर यदुवीर ।

सारंग नाथ पीर सरसई,
तुंगनाथ बद्री बलदाई ।

भूतनाथ धारीपा गोरा,
बटुकनाथ भैरो बल जोरा ।

वामदेव गौतम गंगई,
गंगानाथ घोरी समझाई ।

रतन नाथ रण जीतन हारा,
यवन जीत काबुल कंधार ।

नाग नाथ नाहर रमाताई,
बनखंडी सागर नंदाई ।

बंकानाथ कंथड़ सिद्ध रावल,
कनिपा निरिपा चंद्रावल ।

गोपीचंद भर्तृहरि भूप,
साधे योग लाखे निज रूप ।

खेचर भूचर बल गुंडई,
धर्म नाथ कपाली कनकई ।

सिद्धनाथ सोमेश्वर चंडी,
भुसकै सुन्दर बहुदण्डी ।

अजयपाल शुकदेव व्यास,
नासकेतु नारद सुख रस ।

सनत्कुमार भरत नहिं निन्द्रा,
सनकादिक शरद सुर इन्द्र ।

भंवरनाथ आदि सिद्ध वाला,
ज्यवन नाथ माणिक मतवाला ।

सिद्ध गरीब चंचल चांदराई,
नीमनाथ अगर अमराई ।

त्रिपुरारि त्र्यम्बक दुःख भंजन,
मंजूनाथ सेवक मन रंजन ।

भवनाथ भरम भयहारी,
उदयनाथ मंगल सुखारी ।

सिद्ध जालंधर मूंगी पावे,
जाकी गति मति लखि न जावे ।

ओघडदेव कुबेर भंडारी,
सहजी सिद्धनाथ केदारी ।

कोटि अनंत योगेश्वर राजा,
छोडे भोग योग के काजा ।

योग युक्ति करके भरपूर,
मोह माया से हो गए दूर ।

योग युक्ति कर कुन्ती माई,
पैड़ा किये पांचों बलदाई ।

धर्म अवतार युधिष्ठिर देव,
अर्जुन भीम नकुल सहदेव ।

योग युक्ति पार्थ हिय धरा,
दुर्योधन दल सहित संहार ।

योग युक्ति पांचाली जानी,
दुःशासन से यह प्राण थानी ।

पांव खून ना जब लग तेरा,
खुला रहे यह सीस मेरा ।

योग युक्ति सीता उद्धारि,
दशकंधर से गिरा उच्चरी ।

पापी तेरा वंश मिटाऊँ,
स्वर्ण लंका विध्वंस कराऊं ।

श्री रामचन्द्र को यश दिलाऊँ,
तो मैं सीता सती कहौ ।

योग युक्ति अनुसूया कीनोन,
त्रिभुवन नाथ सठ रस भीनो ।

देवदत्त अवधूत निरंजन,
प्रगट भये आप जग वंदन ।

योग युक्ति मैनावती कीन्ही,
उत्तम गति पुत्र को दीनी ।

योग युक्ति की बंचल माटू,
गूंगा जाने जगत विख्यातो ।

योग युक्ति मीरा ने पाई,
गढ़ चित्तौड़ में फिरी दुहाई ।

योग युक्ति अहिल्या जानी,
तीन लोक में चली कहानी ।

सावित्री सरस्वती भवानी,
पार्वती शंकर सनमनी ।

सिंह भवानी मनसा माई,
भद्र कालिका सहजा बाई ।

कामरु देश कामाक्षा योगन,
दक्षिण में तुलजा रस भोगन ।

उत्तर देश शारदा रानी,
पूरब में पाटन जग मणि ।

पश्चिम में हिंगलाज विराजे,
भैरव नाद शंखध्वनि बाजे ।

नव कोटिक दुर्गा महारानी,
रूप अनेक वेद नहीं जानी ।

काल रूप धर दैत्य संहारे,
रक्त बीज रैन खेत पछारे ।

मैं योगन जग उत्पति कराति,
पालन ​​कराति संहृति कराति ।

जति सती की रक्षा करणी,
मार दुश्त दाल खप्पर भरनी ।

मैं श्रीनाथ निरंजन दासी,
जिनको ध्यावे सिद्ध चौरासी ।

योग युक्ति विरचे ब्रह्माण्ड,
योग युक्ति थापे नवखण्डा ।

योग युक्ति तप तपेन महेशा,
योग युक्ति धर धरे हैं शेष ।

योग युक्ति विष्णु तन धरे,
योग युक्ति असुरन दल मारे ।

योग युक्ति गजानन जेन,
आदि देव तिरलोकी माने ।

योग युक्ति करके बलवान,
योग युक्ति करके बुद्धिमान ।

योग युक्ति कर पावे राज,
योग युक्ति कर सुधारे काज ।

योग युक्ति योगीश्वर जेन,
जनकादिक सनकादिक माने ।

योग युक्ति मुक्ति का द्वार,
योग युक्ति बिन नहीं निस्तारा ।

योग युक्ति जाके मन भावे,
ताकी महिमा कहीं ना जावे ।

जो नर पढ़े सिद्ध चालीसा,
अदार करेन देव तेनतिसा ।

साधक पथ पढ़े नित जोई,
मनोकामना पूरण होई ।

धूप दीप नैवेद्य मिठाई,
रोट लंगोट को भोग लगाई ।

दोहा -
रतन अमोलक जगत में,
योग युक्ति है मीत ।

नर से नारायण बनें,
अटल योग की रीत ।

योग विहंगम पंथ को,
आदि नाथ शिव कीन्ह ।

शिष्य प्रशिष्य परम्परा,
सब मानव को दीन्ह ।

प्रातः काल स्नान कर,
सिद्ध चालीसा ज्ञान ।

पढेन सुने नर पावहि,
उत्तम पाद निर्वाण ।

अथ चौरासी सिद्ध चालीसा एक पवित्र स्तोत्र है जो गोरखनाथ मठ से निकला हुआ, चौरासी सिद्धों की वंदना करता है।

हिन्दी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह आध्यात्मिक जागृति का आह्वान करता है और दिव्य आशीर्वाद को आमंत्रित करता है।

आइये हम अथ चौरासी सिद्ध चालीसा के दिव्य स्पंदनों में डूब जाएं तथा आध्यात्मिक उत्थान और उत्कर्ष का अनुभव करें।

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