श्री हरि स्तोत्रम् हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की स्तुति का एक प्रमुख और पवित्र ग्रंथ है। यह स्तोत्र श्री हरि, अर्थात् भगवान विष्णु के गुणों, महिमा और उनकी दिव्य शक्तियों का वर्णन करता है।
विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में मान्यता दी गई है। उनकी पूजा और आराधना में श्री हरि स्तोत्रम् का विशेष स्थान है।
भगवान विष्णु को सनातन धर्म में त्रिदेवों में से एक माना जाता है, जिन्हें सृष्टि की स्थिति और पालन का कार्य सौंपा गया है। त्रिदेवों में ब्रह्मा सृष्टि के निर्माता, विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता, और शिव सृष्टि के संहारक के रूप में पूजे जाते हैं।
भगवान विष्णु के दस अवतार, जिन्हें दशावतार कहा जाता है, इस बात के प्रमाण हैं कि जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब भगवान विष्णु ने अवतार लेकर धर्म की पुनः स्थापना की है।
श्री हरि स्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति के मन में शांति, संतोष और आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है। यह स्तोत्र भक्तों को विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से सभी प्रकार की बाधाओं और समस्याओं का समाधान होता है, और व्यक्ति को समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
श्री हरि स्तोत्रम्
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं
शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
नभोनीलकायं दुरावारमायं
सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥1
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं
जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं
हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥2
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं
जलान्तर्विहारं धराभारहारं
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं
ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥3
जराजन्महीनं परानन्दपीनं
समाधानलीनं सदैवानवीनं
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥4
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं
विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं
निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥5
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं
जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं
सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥6
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं
महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥7
रमावामभागं तलानग्रनागं
कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं
गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥8
फलश्रुति
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं
पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं
जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥
निष्कर्ष
श्री हरि स्तोत्रम् का महत्व केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि इसके नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति की जीवन की कठिनाइयाँ समाप्त होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
विष्णु की स्तुति करते समय हम उनके गुणों और लीलाओं का स्मरण करते हैं, जिससे हमारे भीतर भक्ति और श्रद्धा की भावना प्रबल होती है।
भगवान विष्णु के दस अवतार हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हमें हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और अधर्म का विरोध करना चाहिए।
श्री हरि स्तोत्रम् का नियमित पाठ व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि उसे जीवन में धैर्य, संयम और सकारात्मकता के गुणों से भी भरता है।
इसके अतिरिक्त, श्री हरि स्तोत्रम् हमें यह भी सिखाता है कि भगवान की कृपा से ही जीवन में सच्ची शांति और संतोष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र एक साधना का मार्ग है, जो हमें आत्मा की गहराइयों में ले जाकर भगवान के साथ एकात्मा का अनुभव कराता है।
इसे पढ़ने और समझने से हमें यह ज्ञात होता है कि विष्णु की महिमा अनंत है और उनकी कृपा से ही हम जीवन की सभी कठिनाइयों को पार कर सकते हैं।
अतः, श्री हरि स्तोत्रम् एक ऐसा दिव्य मंत्र है जो हमें भगवान विष्णु की कृपा, उनकी महिमा और उनके प्रति भक्ति का मार्ग दिखाता है।
यह हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से हम भगवान की अनुकंपा प्राप्त कर सकते हैं और जीवन के सभी कष्टों से मुक्त हो सकते हैं। इस स्तोत्र का पाठ हमारे जीवन में आध्यात्मिक जागरण और आत्मिक शांति का संचार करता है।