सकट चौथ व्रत का हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी के रूप में भी जाना जाने वाला यह व्रत मुख्यतः भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है।
सकट चौथ व्रत कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है, जिसमें राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी तारामती की कहानी को विस्तारपूर्वक बताया गया है। इस कथा के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि सत्य, धर्म और निष्ठा के मार्ग पर चलते हुए कठिनाइयों का सामना करने पर भी भगवान गणेश की कृपा से सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में न्याय, धर्म और सत्य का पालन होता था। लेकिन एक दिन उन्हें एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ा।
उनके पुत्र रोहिताश्व को एक गंभीर रोग ने जकड़ लिया, जिसे कोई भी वैद्य या चिकित्सक ठीक नहीं कर पा रहा था। राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी ने अपनी संतान के स्वास्थ्य के लिए विभिन्न उपाय किए, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ।
तभी एक ऋषि ने उन्हें सकट चौथ व्रत करने का परामर्श दिया। ऋषि ने उन्हें बताया कि इस व्रत को श्रद्धा और विधि-विधान से करने पर भगवान गणेश की कृपा से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। राजा और रानी ने ऋषि के बताए अनुसार सकट चौथ का व्रत किया। उन्होंने पूरे दिन निराहार रहकर भगवान गणेश की पूजा की और रात्री के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया। उनकी इस भक्ति और श्रद्धा से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उनके पुत्र को स्वास्थ्य लाभ हुआ।
सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा - राजा हरिश्चंद्र
कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई।
उस पर पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो जाएगी। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। वह सकट चौथ का दिन था।
काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था।
इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।
निष्कर्ष
सकट चौथ व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति, श्रद्धा और सत्य के मार्ग पर चलते हुए कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है। राजा हरिश्चंद्र और तारामती की कहानी से यह प्रेरणा मिलती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
भगवान गणेश, जो विघ्नहर्ता माने जाते हैं, की पूजा-अर्चना से जीवन के सभी विघ्न और बाधाएं दूर हो जाती हैं।
सकट चौथ व्रत का महत्व इसी में है कि यह हमें अपने जीवन में सत्य, धर्म और निष्ठा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
व्रत की कठोरता और विधि-विधान का पालन करने से व्यक्ति की आत्मशक्ति और संकल्प में वृद्धि होती है। इसके साथ ही, सकट चौथ व्रत कथा हमें यह भी बताती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए, क्योंकि भगवान की कृपा से सभी समस्याओं का समाधान संभव है।
इस प्रकार, सकट चौथ व्रत कथा का पठन और पालन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में भी अनुशासन, संकल्प और श्रद्धा की महत्ता को उजागर करता है। भगवान गणेश की पूजा के माध्यम से हमें जीवन में आने वाले सभी विघ्नों से मुक्ति और शांति प्राप्त होती है।