Ram Ke Rajtilak Me Nimantran Se Chhute Bhagwan Chitragupt(भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण से छूटे भगवान चित्रगुप्त )

भगवान राम के राजतिलक की महत्ता भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अवसर केवल अयोध्या के राजा के राज्याभिषेक का नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना का प्रतीक भी है। भगवान राम, जो मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं, का राज्याभिषेक समस्त आर्यावर्त में एक महान पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर अयोध्या नगरी दिव्य आभा से चमक उठती है और हर दिशा में हर्ष और उल्लास का माहौल होता है। हालांकि, इस महान अवसर पर एक महत्वपूर्ण देवता, भगवान चित्रगुप्त का निमंत्रण छूट जाने की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है।

भगवान चित्रगुप्त, जो कर्मों के लेखा-जोखा रखने वाले देवता हैं, की महत्ता हिन्दू धर्मग्रंथों में अद्वितीय है। वे यमराज के सहयोगी और न्याय के प्रतीक माने जाते हैं। हर व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखने का दायित्व चित्रगुप्त जी का होता है। उनकी पूजा विशेष रूप से कायस्थ समाज द्वारा की जाती है, जो उन्हें अपने कुल देवता के रूप में मानते हैं।

जब भगवान राम के राज्याभिषेक का समय आया, तो समस्त देवताओं और प्रमुख व्यक्तित्वों को आमंत्रित किया गया। नगर में चहुं ओर उत्सव का माहौल था, लेकिन जब समारोह का प्रारंभ हुआ, तो ज्ञात हुआ कि भगवान चित्रगुप्त को निमंत्रण नहीं भेजा गया था। यह भूल तत्कालीन प्रबंधन की असावधानी का परिणाम थी, लेकिन इसके निहितार्थ गहरे थे।

भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण से छूटे भगवान चित्रगुप्त

कहते है, जब भगवान राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत थे।

भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं।

ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी-देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा चित्रगुप्त जी नहीं दिखाई दे रहे है, इस पर जब उनकी खोज हुई। खोज में जब चित्रगुप्त जी नहीं मिले तो पता लगा कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त जी को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये।

इधर भगवान चित्रगुप्त सब जान तो चुके थे, और इसे भी नारायण के अवतार प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे। फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया।

सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे, प्राणियों का का लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजना है।

तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमा याचना की। श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।

इसके बाद नारायण रूपी भगवान राम का आदेश मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद) पुन: कलम की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया।

ऐसा माना जाता है, कि तभी से कायस्थ समाज दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं, और यम-द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है।

इस घटना के पश्चात ही, कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ भी कायस्थों को ही है।

इस कहानी से निम्न लिखित सवालों का जबाब देने योग्य होंगे आप...
आखिर ऐसा क्यूँ है की पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कायस्थ दीपावली के पूजन के कलम रख देते है और फिर कलम दवात पूजन के दिन ही उसे उठाते है?

निष्कर्ष

भगवान चित्रगुप्त का निमंत्रण से छूट जाना केवल एक साधारण त्रुटि नहीं, बल्कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों की गहरी सीख देने वाली घटना बन गई। जब यह बात सामने आई कि चित्रगुप्त जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया था, तो भगवान राम ने इस त्रुटि को बहुत गंभीरता से लिया। उन्होंने तत्काल चित्रगुप्त जी को आमंत्रित करने का आदेश दिया और उनके बिना इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को अधूरा मानते हुए प्रतीक्षा की।

इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में किसी भी महत्वपूर्ण कार्य या उत्सव में किसी को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए, विशेषकर उन व्यक्तियों या शक्तियों को जो नैतिकता और न्याय का प्रतिनिधित्व करते हैं। चित्रगुप्त जी के बिना भगवान राम के राज्याभिषेक का अपूर्ण माना जाना इस बात का प्रतीक है कि हर कार्य में न्याय और सत्य का पालन आवश्यक है।

भगवान राम ने इस अवसर पर यह भी सिखाया कि किसी भी भूल को स्वीकार करना और उसे सुधारना ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है। उन्होंने चित्रगुप्त जी के प्रति आदर और सम्मान प्रकट कर यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी भूमिका में हो, महत्वपूर्ण है और उसकी भूमिका का सम्मान किया जाना चाहिए।

अतः, भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण से छूटे भगवान चित्रगुप्त की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो हर व्यक्ति और शक्ति का सम्मान करे, न्याय और नैतिकता के मूल्यों का पालन करे, और गलतियों को सुधारने का साहस रखे। इस घटना की स्मृति हमें हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि जीवन के हर पहलू में संतुलन और समावेश का महत्व कितना बड़ा है।

Back to blog