राजा मुचुकुंद की कथा भारतीय संस्कृति के अनमोल धार्मिक ग्रंथों में एक प्रमुख कथा है, जो उनके धार्मिक आदर्शों और वीरता को प्रशंसित करती है। यह कथा महाभारत, विष्णु पुराण और भगवत पुराण जैसे प्रमुख पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। राजा मुचुकुंद का जन्म राजा मंदाता के पुत्र के रूप में हुआ था, जो धार्मिक और नैतिक गुणों के प्रतीक थे।
इस कथा में, राजा मुचुकुंद की प्रेरणादायक कहानी उनके भगवान विष्णु के प्रति निष्ठा और समर्पण को प्रकट करती है। उन्होंने अपने जीवन को धार्मिक उत्कृष्टता की ओर ले जाने का संकल्प किया और भगवान की कृपा के लिए प्रार्थना की।
उनकी ध्यानधारणा और साधना की महत्वपूर्णता उनके जीवन के प्रत्येक पल में प्रकट होती है। इस कथा के माध्यम से हमें धार्मिक आदर्शों के महत्व का संदेश मिलता है और हम उनके उत्कृष्ट उदाहरणों से प्रेरित होते हैं।
राजा मुचुकुन्द की कथा
भगवान शंकर के वरदान को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण रण क्षेत्र छोड़कर भागे। तभी कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। कृष्ण को भागता देख कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से करीब सवासौ किमी दूर तक आकर श्यामाश्चल पर्वत की गुफा में आ गये जहाँ मुचुकुन्द महाराज जी सो रहे थे।
कृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मुचुकुन्द जी के ऊपर डाल दी और खुद एक चट्टान के पीछे छिप गये। कालयवन भी पीछा करते करते उसी गुफा मे आ गया। दंभ मे भरे कालयवन ने सो रहे मुचुकुन्द जी को कृष्ण समझकर ललकारा। मुचुकुन्द जी जागे और उनकी नेत्र की ज्वाला से कालयवन वहीं भस्म हो गया।
भगवान कृष्ण ने मुचुकुन्द जी को विष्णुरूप के दर्शन दिये। मुचुकुन्द जी दर्शनों से अभिभूत होकर बोले - हे भगवान! तापत्रय से अभिभूत होकर सर्वदा इस संसार चक्र में भ्रमण करते हुए मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं को मेरी सहायता की आवश्कता हुई। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नही हुई। अब मै आपका ही अभिलाषी हूँ, श्री कृष्ण के आदेश से महाराज मुचुकुन्द जी ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया।
यज्ञ की पूर्णाहुति ऋषि पंचमी के दिन हुई। यज्ञ में सभी देवी-दवताओ व तीर्थों को बुलाया गया। इसी दिन भगवान कृष्ण से आज्ञा लेकर महाराज मुचुकुन्द गंधमादन पर्वत पर तपस्या के लिए प्रस्थान कर गये। वह यज्ञ स्थल आज पवित्र सरोवर के रूप में हमें इस पौराणिक कथा का बखान कर रहा है।
सभी तीर्थो का नेह जुड़ जाने के कारण धौलपुर में स्थित तीर्थराज मुचुकुन्द तीर्थों का भांजा भी कहा जाता है। हर वर्ष ऋषि पंचमी व बलदेव छठ को जहाँ लक्खी मेला लगता है। मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। शादियों की मौरछड़ी व कलंगी का विसर्जन भी जहाँ करते है। माना जाता है कि जहाँ स्नान करने से चर्म रोग सम्बन्धी समस्त पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है।