Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 23(कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 23)

कार्तिक मास हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। इस मास को धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक पूजनीय माना गया है। कार्तिक मास की महिमा का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में विस्तृत रूप से किया गया है।

विशेष रूप से, कार्तिक मास माहात्म्य कथा की महत्ता को समझने के लिए इसके विभिन्न अध्यायों का अध्ययन करना आवश्यक है। इस कथा के माध्यम से हमें भगवान विष्णु, शिव, देवी लक्ष्मी, और अन्य देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। यह मास दीपावली, तुलसी विवाह, और कई अन्य महत्वपूर्ण त्योहारों के कारण भी प्रसिद्ध है।

अध्याय 23 में कार्तिक मास की विशेष पूजन विधियों, उपवास, और धार्मिक कृत्यों का वर्णन किया गया है। यह अध्याय भक्तों को यह समझाने का प्रयास करता है कि कार्तिक मास के दौरान की जाने वाली पूजा, व्रत, और दान किस प्रकार हमारे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाते हैं। यह अध्याय विशेष रूप से उन लाभों पर प्रकाश डालता है जो भक्तों को इस पवित्र मास में धार्मिक अनुष्ठान करने से प्राप्त होते हैं।

कार्तिक मास के दौरान, विशेष पूजा और व्रत के माध्यम से भक्तों को भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इस मास के दौरान गंगा स्नान, दीपदान, तुलसी पूजा, और अन्य धार्मिक कृत्यों का विशेष महत्त्व है। अध्याय 23 में इन सभी धार्मिक कृत्यों के पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्यों और लाभों को विस्तार से बताया गया है।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 23

नारद जी बोले - हे राजन! यही कारण है कि कार्तिक मास के व्रत उद्यापन में तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी भगवान विष्णु को अधिक प्रीति प्रदान करने वाली मानी गई है।
राजन! जिसके घर में तुलसीवन है वह घर तीर्थ स्वरुप है वहाँ यमराज के दूत नहीं आते। तुलसी का पौधा सदैव सभी पापों का नाश करने वाला तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला है।
जो श्रेष्ठ मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं वे यमराज को नहीं देखते। नर्मदा का दर्शन, गंगा का स्नान और तुलसी वन का संसर्ग - ये तीनों एक समान कहे गये हैं। जो तुलसी की मंजरी से संयुक्त होकर प्राण त्याग करता है वह सैकड़ो पापों से युक्त ही क्यों न हो तो भी यमराज उसकी ओर नहीं देख सकते। तुलसी को छूने से कामिक, वाचिक, मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो मनुष्य तुलसी दल से भगवान का पूजन करते हैं वह पुन: गर्भ में नहीं आते अर्थात जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाते हैं। तुलसी दल में पुष्कर आदि समस्त तीर्थ, गंगा आदि नदियाँ और विष्णु प्रभृति सभी देवता निवास करते हैं।

हे राजन! जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ का चन्दन लगाते हैं उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है और उनके द्वारा किये गये पाप उनके शरीर को छू भी नहीं पाते। जहाँ तुलसी के पौधे की छाया होती है, वहीं पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके मुख में, कान में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है उसके ऊपर यमराज भी दृष्टि नहीं डाल सकते फिर दूतों की तो बात ही क्या है। जो प्रतिदिन आदर पूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है।

इसी प्रकार आंवले का महान वृक्ष सभी पापों का नाश करने वाला है। आँवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गोदान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य कार्तिक में आंवले के वन में भगवान विष्णु की पूजा तथा आँवले की छाया में भोजन करता है उसके भी पाप नष्ट हो जाते हैं। आंवले की छाया में मनुष्य जो भी पुण्य करता है वह कोटि गुना हो जाता है। जो मनुष्य आंवले की छाया के नीचे कार्तिक में ब्राह्मण दम्पत्ति को एक बार भी भोजन देकर स्वयं भोजन करता है वह अन्न दोष से मुक्त हो जाता है। लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को सदैव आंवले से स्नान करना चाहिए। नवमी, अमावस्या, सप्तमी, संक्रान्ति, रविवार, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के दिन आंवले से स्नान नही करना चाहिए।

जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिण्डदान करता है उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य आंवले के फल और तुलसी दल को पानी में मिलाकर स्नान करता है उसे गंगा स्नान का फल मिलता है। जो मनुष्य आंवले के पत्तों और फलों से देवताओं का पूजन करता है उसे स्वर्ण मणि और मोतियों द्वारा पूजन का फल प्राप्त होता है। कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होता है तब सभी तीर्थ, ऋषि, देवता और सभी यज्ञ आंवले के वृक्ष में वास करते हैं। जो मनुष्य द्वादशी तिथि को तुलसी दल और कार्तिक में आंवले की छाया में बैठकर भोजन करता है उसके एक वर्ष तक अन्न-संसर्ग से उत्पन्न हुए पापों का नाश हो जाता है।

जो मनुष्य कार्तिक में आंवले की जड़ में विष्णु जी का पूजन करता है उसे श्री विष्णु क्षेत्रों के पूजन का फल प्राप्त होता है। आंवले और तुलसी की महत्ता का वर्णन करने में श्री ब्रह्मा जी भी समर्थ नहीम है इसलिए धात्री और तुलसी जी की जन्म कथा सुनने से मनुष्य अपने वंश सहित भक्ति को पाता है।

निष्कर्ष

कार्तिक मास माहात्म्य कथा का अध्याय 23 धार्मिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन प्रकाश डालता है। इस अध्याय के माध्यम से हम यह सीखते हैं कि किस प्रकार नियमित पूजा, व्रत, और दान हमें आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों लाभ प्रदान कर सकते हैं। अध्याय 23 के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि कार्तिक मास का सही विधि से पालन करने पर भगवान विष्णु और अन्य देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

अध्याय 23 में वर्णित धार्मिक कृत्यों और अनुष्ठानों का पालन करने से हमें न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है बल्कि हमारे जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है। यह मास अपने आप में एक विशेष अवसर है जिसमें हर व्यक्ति को अपने जीवन को धर्ममय बनाने का अवसर मिलता है। इस अध्याय के माध्यम से भक्तों को यह संदेश मिलता है कि कार्तिक मास के दौरान किए गए धार्मिक अनुष्ठान और व्रत हमें भगवान की कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं।

अंततः, कार्तिक मास माहात्म्य कथा का अध्ययन हमें हमारे जीवन में धार्मिकता, नैतिकता, और अनुशासन के महत्त्व को समझने में मदद करता है। अध्याय 23 विशेष रूप से यह संदेश देता है कि किस प्रकार कार्तिक मास का पालन करके हम अपने जीवन को धर्ममय बना सकते हैं और भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, कार्तिक मास के धार्मिक अनुष्ठानों का पालन हमें हमारे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।

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