Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 18(कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 18)

कार्तिक मास हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मास धार्मिक उत्सवों, व्रतों, और पूजा-पाठ के लिए प्रसिद्ध है। विशेष रूप से इस मास में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है।

"कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 18" इस मास की महिमा और धार्मिक कथा को दर्शाता है। इस अध्याय में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, व्रतों, और पूजा-पाठ के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के उपायों का वर्णन किया गया है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि किस प्रकार श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया एक छोटा सा प्रयास भी भगवान की कृपा प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।

इस अध्याय में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और उनकी लीलाओं का वर्णन किया गया है, जिससे भक्तों को जीवन में धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

कार्तिक मास में तुलसी पूजा का विशेष महत्व होता है, और इस अध्याय में तुलसी विवाह की कथा का भी वर्णन है, जो भगवान विष्णु और देवी तुलसी के अद्वितीय संबंध को दर्शाता है। तुलसी विवाह को प्रतीकात्मक रूप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के विवाह के रूप में भी माना जाता है, जिससे परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।

इस अध्याय में बताया गया है कि कार्तिक मास में स्नान, दान, और व्रत का विशेष महत्व है। विशेष रूप से, गंगा स्नान और दीपदान की महिमा का उल्लेख किया गया है, जिससे भक्त अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। इस मास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल अत्यधिक शुभ होता है और यह जीवन में शांति, संतोष, और समृद्धि लाता है।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 18

लिखता हूँ मॉ पुराण की, सीधी सच्ची बात ।
अठारहवां अध्याय कार्तिक, मुक्ति का वरदात ॥
अब रौद्र रूप महाप्रभु शंकर नन्दी पर चढ़कर युद्धभूमि में आये। उनको आया देख कर उनके पराजित गण फिर लौट आये और सिंहनाद करते हुए आयुद्धों से दैत्यों पर प्रहार करने लगे। भीषण रूपधारी रूद्र को देख दैत्य भागने लगे तब जलन्धर हजारों बाण छोड़ता हुआ शंकर की ओर दौडा़। उसके शुम्भ निशुम्भ आदि वीर भी शंकर जी की ओर दौड़े। इतने में शंकर जी ने जलन्धर के सब बाण जालों को काट अपने अन्य बाणों की आंधी से दैत्यों को अपने फरसे से मार डाला।

खड़गोरमा नामक दैत्य को अपने फरसे से मार डाला और बलाहक का भी सिर काट दिया। घस्मर भी मारा गया और शिवगण चिशि ने प्रचण्ड नामक दैत्य का सिर काट डाला। किसी को शिवजी के बैल ने मारा और कई उनके बाणों द्वारा मारे गये। यह देख जलन्धर अपने शुम्भादिक दैत्यों को धिक्कारने और भयभीतों को धैर्य देने लगा। पर किसी प्रकार भी उसके भय ग्रस्त दैत्य युद्ध को न आते थे जब दैत्य सेना पलायन आरंभ कर दिया, तब महा क्रुद्ध जलन्धर ने शिवजी को ललकारा और सत्तर बाण मारकर शिवजी को दग्ध कर दिया।

शिवजी उसके बाणों को काटते रहे। यहां तक कि उन्होंने जलन्धर की ध्वजा, छत्र और धनुष को काट दिया। फिर सात बाण से उसके शरीर में भी तीव्र आघात पहुंचाया। धनुष के कट जाने से जलन्धर ने गदा उठायी। शिवजी ने उसकी गदा के टुकड़े कर दिये तब उसने समझा कि शंकर मुझसे अधिक बलवान हैं। अतएव उसने गन्धर्व माया उत्पन्न कर दी अनेक गन्धर्व अप्सराओं के गण पैदा हो गये, वीणा और मृदंग आदि बाजों के साथ नृत्य व गान होने लगा। इससे अपने गणों सहित रूद्र भी मोहित हो एकाग्र हो गये। उन्होंने युद्ध बंद कर दिया।

फिर तो काम मोहित जलन्धर बडी़ शीघ्रता से शंकर का रूप धारण कर वृषभ पर बैठकर पार्वती के पास पहुंचा उधर जब पार्वती ने अपने पति को आते देखा, तो अपनी सखियों का साथ छोड़ दिया और आगे आयी। उन्हें देख कामातुर जलन्धर का वीर्यपात हो गया और उसके पवन से वह जड़ भी हो गया। गौरी ने उसे दानव समझा वह अन्तर्धान हो उत्तर की मानस पर चली गयीं तब पार्वती ने विष्णु जी को बुलाकर दैत्यधन का वह कृत्य कहा और यह प्रश्न किया कि क्या आप इससे अवगत हैं।

भगवान विष्णु ने उत्तर दिया – आपकी कृपा से मुझे सब ज्ञात है। हे माता! आप जो भी आज्ञा करेंगी, मै उसका पालन करूंगा।

जगतमाता ने विष्णु जी से कहा – उस दैत्य ने जो मार्ग खोला है उसका अनुसरण उचित है, मै तुम्हें आज्ञा देती हूं कि उसकी पत्नी का पतिव्रत भ्रष्ट करो, वह दैत्य तभी मरेगा।

पार्वती जी की आज्ञा पाते ही विष्णु जी उसको शिरोधार्य कर छल करने के लिए जलन्धर के नगर की ओर गये।

निष्कर्ष

कार्तिक मास माहात्म्य कथा का अठारहवां अध्याय हमारे जीवन में धर्म और अध्यात्म का महत्व बताता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि किस प्रकार नियमित पूजा, व्रत, और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से हम अपने जीवन को पवित्र और सार्थक बना सकते हैं। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धा, भक्ति, और समर्पण की आवश्यकता होती है, और यह कथा हमें उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

इस मास में तुलसी पूजा, दीपदान, और गंगा स्नान जैसे अनुष्ठानों का महत्व अत्यधिक है। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि इन धार्मिक कार्यों के माध्यम से हम अपने पापों का नाश कर सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। कार्तिक मास का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि यह हमें जीवन में अनुशासन, संयम, और संयमित आचरण का पालन करने की भी प्रेरणा देता है।

अंत में, "कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 18" हमें यह सिखाता है कि धर्म और अध्यात्मिकता का पालन केवल बाहरी अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे आंतरिक आचरण और विचारों का भी परिशोधन करता है।

इस कथा को आत्मसात करके हम अपने जीवन में शांति, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। यह अध्याय न केवल धार्मिक ज्ञान का स्रोत है, बल्कि यह हमारे जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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