Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 17(कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 17)

कार्तिक मास हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यंत महत्वपूर्ण माह माना जाता है। इस मास की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता बहुत अधिक होती है। "कार्तिक मास माहात्म्य कथा" एक प्राचीन पौराणिक ग्रंथ है, जिसमें कार्तिक मास के व्रत, उपवास, पूजा और दान की महिमा का वर्णन किया गया है।

इस ग्रंथ के सत्रहवें अध्याय में विशेष रूप से उन कर्मों का विवरण दिया गया है, जिनसे मनुष्य अपने पापों से मुक्ति पा सकता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। इस अध्याय में भगवान विष्णु की पूजा, तुलसी पूजन, और दीपदान की महिमा का विस्तार से उल्लेख है। यह अध्याय न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी प्राथमिकता दी गई है।

कार्तिक मास में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है, जिसे अध्याय 17 में विस्तारपूर्वक समझाया गया है। तुलसी, जिसे लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, की पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। तुलसी विवाह के साथ-साथ इस माह में भगवान विष्णु की आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। इस अध्याय में बताया गया है कि कैसे तुलसी पूजन और भगवान विष्णु की भक्ति से मनुष्य अपने जीवन के सभी दुखों से मुक्त हो सकता है और परम सुख की प्राप्ति कर सकता है।

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 17

भक्ति से भरे भाव हे हरि मेरे मन उपजाओ ।
सत्रहवां अध्याय कार्तिक, कृपा दृष्टि कर जाओ ॥
उस समय शिवजी के गण प्रबल थे और उन्होंने जलन्धर के शुम्भ-निशुम्भ और महासुर कालनेमि आदि को पराजित कर दिया। यह देख कर सागर पुत्र जलंधर एक विशाल रथ पर चढ़कर – जिस पर लम्बी पताका लगी हुई थी – युद्धभूमि में आया। इधर जय और शील नामक शंकर जी के गण भी युद्ध में तत्पर होकर गर्जने लगे। इस प्रकार दोनो सेनाओं के हाथी, घोड़े, शंख, भेरी और दोनों ओर के सिंहनाद से धरती त्रस्त हो गयी।

जलंधर ने कुहरे के समान असंख्य बाणों को फेंक कर पृथ्वी से आकाश तक व्याप्त कर दिया और नंदी को पांच, गणेश को पांच, वीरभद्र को एक साथ ही बीस बाण मारकर उनके शरीर को छेद दिया और मेघ के समान गर्जना करने लगा। यह देख कार्तिकेय ने भी दैत्य जलन्धर को अपनी शक्ति उठाकर मारी और घोर गर्जन किया, जिसके आघात से वह मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। परन्तु वह शीघ्र ही उठा पडा़ और क्रोधा विष्ट हो कार्तिकेय पर अपनी गदा से प्रहार करने लगा।

ब्रह्मा जी के वरदान की सफलता के लिए शंकर पुत्र कार्तिकेय पृथ्वी पर सो गये। गणेश जी भी गदा के प्रहार से व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़े। नंदी व्याकुल हो गदा प्रहार से पृथ्वी पर गिर गये। फिर दैत्य ने हाथ में परिध ले शीघ्र ही वीरभद्र को पृथ्वी पर गिरा देख शंकर जी गण चिल्लाते हुए संग्राम भूमि छोड़ बड़े वेग से भाग चले। वे भागे हुए गण शीघ्र ही शिवजी के पास आ गये और व्याकुलता से युद्ध का सब समाचार कह सुनाया। लीलाधारी भगवान ने उन्हें अभय दे सबका सन्तोषवर्द्धन किया।

निष्कर्ष

अध्याय 17 का सार यह है कि कार्तिक मास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल अत्यंत शुभ और कल्याणकारी होता है। तुलसी पूजन, दीपदान, और भगवान विष्णु की आराधना से व्यक्ति को मानसिक शांति और आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। इस अध्याय में वर्णित कथाओं और उपदेशों से स्पष्ट होता है कि धर्म और भक्ति का मार्ग ही जीवन को सार्थक और सफल बनाता है। कार्तिक मास में किए गए दान और पुण्य कर्मों का फल हजारों गुना बढ़ जाता है और इनसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस अध्याय का एक महत्वपूर्ण संदेश यह भी है कि मनुष्य को अपने कर्मों का सदैव ध्यान रखना चाहिए और जीवन में सद्गुणों का पालन करना चाहिए। धार्मिक और नैतिक कर्तव्यों का पालन करने से ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल और धन्य बना सकता है। कार्तिक मास माहात्म्य कथा का यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से किए गए कार्य ही मनुष्य को उसके जीवन के उच्चतम लक्ष्य की ओर ले जाते हैं।

इस प्रकार, "कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 17" न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक शिक्षा भी प्रदान करता है। इसमें वर्णित कथाएं और उपदेश हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और हमारे भीतर सच्ची भक्ति और श्रद्धा का संचार करते हैं। कार्तिक मास की महिमा को समझना और उसे अपने जीवन में अपनाना, व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर ले जाता है और उसे परम आनंद की प्राप्ति कराता है।

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