Dwadash Jyotirlinga Stotram(द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम्)

भारत, ऋषियों, मुनियों और देवी-देवताओं की भूमि है। यहां हर कोने में श्रद्धा, भक्ति और आस्था के अनगिनत प्रतीक मिलते हैं। हिंदू धर्म में भगवान शिव को महादेव, त्रिनेत्रधारी और संहारकर्ता के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव के अनगिनत रूपों और नामों में से द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग विशेष स्थान रखते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् एक पवित्र पाठ है जिसमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिङ्गों का महात्म्य और उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है।

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् का पाठ करने से भक्तजन भगवान शिव की अनुकम्पा प्राप्त करते हैं और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम और घृष्णेश्वर शामिल हैं। प्रत्येक ज्योतिर्लिङ्ग का अपना एक विशिष्ट महत्व और पौराणिक कथा है, जो उन्हें अन्य लिङ्गों से अलग बनाती है।

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान शिव की भक्ति में लीन करता है और उनके आशीर्वाद से जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देता है। इस स्तोत्र के माध्यम से हम भगवान शिव के उन सभी रूपों को याद करते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

 

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् 

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥1

श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥2

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥3

कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥4

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥5

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥6

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥7

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥8

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥9

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥10

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥11

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥12

ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥13
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

समापन

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् न केवल भगवान शिव के प्रति असीम भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्था का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस स्तोत्र के माध्यम से हम भगवान शिव की महिमा और उनकी कृपा का अनुभव करते हैं।

यह हमें सिखाता है कि ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण से जीवन में कोई भी कठिनाई असंभव नहीं होती। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों के दर्शन और उनके स्तुति से हमें जीवन में सही मार्गदर्शन और असीम शांति मिलती है।

इस प्रकार, द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् का पाठ हमारे जीवन को शुद्ध, पवित्र और समृद्ध बनाता है। यह हमें अपने आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है और हमें हमारे परम लक्ष्य, मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। भगवान शिव की कृपा से, हमें इस पवित्र स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए और उनके अनंत आशीर्वाद का अनुभव करना चाहिए।

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