Devutthana Ekadashi Vrat Katha 2(देवोत्थान / प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा 2) in Hindi

देवोत्थान एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण का प्रतीक है और इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।

इस दिन भक्त व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत कथा सुनते हैं। देवोत्थान एकादशी का महत्व और इससे जुड़ी कथाओं का वर्णन करना हमारे धर्मग्रंथों में विशेष स्थान रखता है।

इस ब्लॉग में हम देवोत्थान एकादशी व्रत कथा 2 का विस्तृत वर्णन करेंगे। यह कथा हमें भगवान विष्णु के प्रति अपनी आस्था को और भी मजबूत बनाने में मदद करती है और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों की याद दिलाती है।

इस व्रत कथा को सुनने और व्रत रखने से भक्तों को जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए, इस पवित्र अवसर पर हम सभी इस कथा के माध्यम से भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाएं।

देवोत्थान / प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा 2

एक राजा था, उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया।

उसने पूछा: हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहाँ क्यों बैठी हो?

तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले: मैं निराश्रिता हूँ। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं है, किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था।
राजा बोला: तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।

सुंदरी बोली: मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा।

राजा उसके रूप पर मोहित था, अतः उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए तथा परोस कर राजा से खाने के लिए कहा।
यह देखकर राजा बोला: रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा।

तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली: या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी।
राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली: महाराज! धर्म न छोड़ें, बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा, पर धर्म नहीं मिलेगा।

इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। माँ की आंखों में आंसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो माँ ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी।
तब वह बोला: मैं सिर देने के लिए तैयार हूँ। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी।

राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई: राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए।
भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोला: आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें।

निष्कर्ष:

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा 2 का श्रवण और पालन हमारे जीवन में धार्मिकता और आस्था को और भी सुदृढ़ बनाता है। इस कथा के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि भगवान विष्णु की कृपा से हमारे जीवन में कितनी सकारात्मक ऊर्जा और बदलाव आ सकते हैं। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि और मानसिक शांति का मार्ग भी है।

भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत के पालन से हम अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं का सामना धैर्य और साहस के साथ कर सकते हैं। देवोत्थान एकादशी का पर्व हमें सिखाता है कि भक्तिमार्ग पर चलते हुए हम अपने जीवन को कैसे सुंदर और सार्थक बना सकते हैं।

आइए, इस पवित्र अवसर पर हम सभी मिलकर भगवान विष्णु की आराधना करें, व्रत कथा का श्रवण करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल और सुखमय बनाएं। जय श्री हरि!

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