Akshaya Tritiya Katha(अक्षय तृतीया कथा)

अक्षय तृतीया, हिन्दू धर्म में एक प्रमुख पर्व है जो सन्नाटकी पक्ष के तृतीय तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष को पद्मिनी नक्षत्र में आता है।

यह एक ऐतिहासिक महत्व रखता है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक आयामों को समाहित किया जाता है। अक्षय तृतीया को धन, समृद्धि, खुशियों, और सौभाग्य के लिए एक शुभ मुहूर्त माना जाता है।

इस पर्व की महत्वपूर्ण कथा है। एक प्राचीन कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त धर्मराज यमराज को वर्षा के लिए अपनी अजनबी पत्नी लक्ष्मी को दिया था।

यह दिन भी महाराज युधिष्ठिर ने सोने के पात्रों को अपने हाथों से शुद्ध किया था। इसके अलावा, मान्यता है कि इस दिन पर चंद्रमा और सूर्य अपने नक्षत्रों में उतरते हैं, जो समृद्धि और सफलता के सूचक होते हैं।

अक्षय तृतीया कथा

अक्षय तृतीया की एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। वह बहुत ही गरीब था। वह हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए चिंतित रहता था। उसके परिवार में कई सदस्य थे। धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था उसका सदाचार तथा देव एवं ब्राह्मणों के प्रति उसकी श्रद्धा अत्यधिक प्रसिद्ध थी।

अक्षय तृतीया व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने अक्षय तृतीया पर्व के आने पर सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की।

यह सब दान देखकर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की। उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा। फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया। उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया।

अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के उपरांत भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे अगले जन्म में कुशावती का राजा हुए

मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान-पुण्य व पूजन के कारण वह अपने अगले जन्म में बहुत धनी एवं प्रतापी राजा बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे।

अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ, वह प्रतापी राजा महान एवं वैभवशाली होने के बावजूद भी धर्म मार्ग से कभी विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए थे।

जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष:

अक्षय तृतीया की कथा सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व का प्रतीक है। यह एक ऐसा पर्व है जो समृद्धि, सौभाग्य, और धन की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। इसके माध्यम से, हमें सीख मिलती है कि धर्म और सत्य का पालन करने से ही हम असीम सफलता को प्राप्त कर सकते हैं।

यह पर्व हमें समय की महत्ता और समृद्धि के साथ सही दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस अद्वितीय पर्व को मनाकर हम अपने जीवन में समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, और धार्मिक और नैतिक मूल्यों का सम्मान करते हैं।

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