विजया एकादशी व्रत कथा(विजया एकादशी व्रत कथा)

धर्म और आध्यात्मिकता भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदू धर्म में व्रत और त्यौहारों का महत्व अत्यधिक है और इन्हें धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

विजया एकादशी एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस विशेष दिन का महत्व, इसकी पौराणिक कथा और इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक संदेश को समझने के लिए हम इस लेख में विजया एकादशी व्रत कथा का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

विजया एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे जनार्दन! आपने माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन करते हुए हार्ट्स। अब आप फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसका तरीका क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पाठ से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। जब आप भयंकर शत्रुओं से पराजित होते हैं और पराजय सामने खड़े होते हैं, तो उस विकट स्थिति में विजया नामक शक्ति आपको विजय दिलाने की क्षमता रखती है।

विजया एकादशी व्रत कथा!

एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान का कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत सबसे पुराने तथा नए व्रत को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है

त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी जो विष्णु के अंशावतार थे, जब वे चौदह वर्ष का वनवास हो गए, तब वे श्री लक्ष्मण और सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से श्री रामचन्द्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए गए।

जब वे मरणासन्‍न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृतान्त सुनाकर स्वर्गलोक ले गए। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से दोस्ती हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी लंका में गए सीताजी का पता और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।

श्री रामचन्द्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र के किनारे पहुंचे तब उन्होंने अचानक उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि हम इस समुद्र को किस प्रकार पार करेंगे।

श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप में वकदाल्भ्य नाम के मुनि रहते हैं। वे अनेक ब्रह्मा देखते हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछें। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचन्द्रजी वकदाल्भ्य ऋषि के पास गए और उनके प्रमाण करके बैठ गए।

मुनि ने भी उन्हें मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहां आया हूं और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूं। आप कृपा करें समुद्र पार करने का कोई उपाय नहीं बताया गया । मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।

वकदाल्भ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चित ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी पार कर जाएंगे। इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाएं। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनाजा और ऊपर जौ रखो। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानदि से निवृत्त धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें

तत्पश्चात घड़े के सामने सूखे दिन आनन्दित हों और रात्रि को भी उसी प्रकार आनन्दपूर्वक जागृत करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि आप भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करेंगे तो आपकी विजय निश्चित होगी । श्री रामचन्द्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।

अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोगों में उसकी निश्चित विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

समापन:

विजया एकादशी की कथा और महत्व को समझने के बाद, हम इसे सिद्ध करने का महत्व समझते हैं। इस व्रत का पालन करके हम अपने आप को आध्यात्मिक और मानवता के दृष्टिकोण से समृद्ध बनाते हैं।
इसके अलावा, हमें यह याद दिलाना चाहिए कि धार्मिकता केवल पूजा-अर्चना में ही समाप्त नहीं होती, बल्कि हमें धार्मिक भावना को अपने जीवन के हर क्षेत्र में भड़काना चाहिए। विजया एकादशी का व्रत न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है, बल्कि हमें आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का अनुभव कराता है।
इस व्रत के माध्यम से हम अपनी आत्मा को पवित्र और शुद्ध बनाते हैं, जो हमें जीवन में सफलता और सुख की प्राप्ति में मदद करता है। इसलिए, विजया एकादशी के व्रत का पालन करके हम न केवल अपने आप को धार्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध बनाते हैं, बल्कि हमें अपने आस-पास के समाज के साथ भी एक अग्रणी भूमिका निभाने का मौका मिलता है।
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