सोमवार व्रत कथा: एक परिचय
सोमवार का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित किया जाता है।
यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाता है, लेकिन पुरुष भी इसे धारण कर सकते हैं। सोमवार व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति करना है। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति बनी रहती है, साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सोमवार व्रत की कथा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती की महिमा का वर्णन है। इस कथा को सुनने से व्यक्ति के मन में श्रद्धा और विश्वास बढ़ता है और वह अपने जीवन के कठिन समय में भी सकारात्मकता बनाए रख सकता है।
सोमवार व्रत कथा
किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उनका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे। इतना सब कुछ होने के बाद भी वह व्यापारी बहुत दुःखी था, क्योंकि उसका कोई बेटा नहीं था। जिस कारण उनकी मृत्यु के पश्चात व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता उन्हें हमेशा सताती रहती थी।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्याकुल प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की व्रत-पूजा करता था और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक जलाता था। उनकी भक्ति देखकर माँ पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया।
भगवान शिव बोले: इस संसार में सभी अपने कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। जो प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।
शिवजी द्वारा माता पार्वती के बावजूद मना करने के बावजूद वे उस व्यापारी की मनोकामना पूरी करने के लिए शिवजी से बार-बार अनुरोध करती रहीं। अंततः माता के आग्रह पर भगवान भोलेनाथ को देखकर उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का प्रायश्चित करना पड़ा।
क्षमा देने के पश्चात भोलेनाथ माँ पार्वती से बोले: आपके आग्रह पर मैंने पुत्र प्राप्ति का क्षमा तो दे दिया परन्तु यह पुत्र 16 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के स्वप्न में आए और उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बताई।
भगवान के स्वामी से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का विधिवत व्रत करता रहता है। कुछ महीनों के बाद उसके घर में एक अति सुन्दर बालक ने जन्म लिया, और घर में खुशियाँ ही खुशियाँ भर गई।
बहुत शुभ अवसर से पुत्र जन्म का उत्सव मनाया गया, परन्तु व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई, क्योंकि उसे पुत्र की अल्पायु के रहस्य का पता था। जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे अपनी माँ के साथ पढ़ने के लिए वाराणसी भेज दिया। लड़का अपनी माँ के साथ शिक्षा प्राप्त हेतु चल दिया। मार्ग में जहाँ भी मामा-भांजे विश्राम हेतु रुके, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते।
लम्बी यात्रा के बाद मामा-भांजे एक नगर में पहुंचे। उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह हुआ था, जिस कारण पूरे नगर को समृद्ध किया गया था। एक निश्चित समय पर बारात आई थी लेकिन उस समय का पिता अपने बेटे की एक आंख से काना होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे डर था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाह से इनकार न कर दे।
इससे उसकी बदनामी भी होगी। जब वर के पिता ने व्यापारी के बेटे को देखा तो उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दुल्हन बनी राजकुमारी से शादी करा दूँ। विवाह के बाद अपने धन देकर विदा करोगे और राजकुमारी को अपने नगर ले जाओगे।
वर के पिता ने लड़के के मामा से इस सम्बन्ध में बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। लड़के को पॉलिएस्टर का वस्त्र पहनकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया।
राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। शादी के बाद लड़का जब राजकुमारी से साथ लौट रहा था तो वह सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिखा: राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी पढ़ने के लिए जा रहा हूँ और अब उसी नवयुवक की पत्नी बनना चाहे, वह काना है।
जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा को जब ये सब बातें पता चलीं, तो उसने राजकुमारी को महल में ही रख लिया।
ऊपर वाला लड़का अपनी मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया और गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया। यज्ञ के समापन पर ब्राह्मणों को भोजन कराया गया और खूब अन्न, वस्त्र दान किया गया। रात को वह अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के निवास के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेडू उड़ गए। सूर्योदय पर माँ मृत भांजे को देखकर रोना-पीटना लगा। आस-पास के लोग भी एकत्रित होकर दुःख प्रकट करने लगे।
लड़के के मामा के रोने, विलाप करने के स्वर से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वतीजी ने भी सुना।
माता पार्वती ने भगवान से कहा: प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट को सर्वथा दूर करें।
भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अदृश्य रूप में जाकर देखा तो भोलेनाथ, माता पार्वती से बोले: यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का स्वामी दिया था। इसकी आयु पूरी हो गई है।
माँ पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित रहने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित उठ बैठा।
शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने शहर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुँचे, जहाँ उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया गया। आसपास से गुजरे नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा और उसने तुरंत ही उस लड़के और उसकी माँ को पहचान लिया।
यज्ञ के अंत पर राजा मामा और लड़के को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र आदि अनेक राजकुमारी के साथ विदा कर दिया।
इधर सांताक्रूज निवासी व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने वादा किया था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे, लेकिन जैसे ही उन्होंने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुईं। वह अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर चली गई।
अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा: हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। पुत्र की लम्बी आयु जन्मोत्सव बहुत प्रसन्न हुआ।
शिव भक्त होने और सोमवार का व्रत करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, इसी प्रकार जो भक्त सोमवार का विधिवत व्रत करते हैं और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
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सोमवार व्रत और उसकी कथा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत न केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में शांति और समृद्धि लाता है, बल्कि आत्मा को शुद्ध करता है और ईश्वर के प्रति भक्ति भाव को बढ़ाता है।
यह व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक सरल और प्रभावी माध्यम है। सोमवार व्रत की महिमा और उसके उपहार से मिलने वाले फलों का वर्णन हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से ही ईश्वर की अनुग्रहा प्राप्त की जा सकती है।