श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति पौराणिक कथा

भारत की प्राचीन धरोहर में समृद्धि, संस्कृति और धार्मिक आस्था की गहराई छिपी हुई है। ऐसी ही एक अनोखी घटना है श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसकी प्राचीन कथा हमारी धार्मिक उपलब्धियों और पौराणिक इतिहास से गहराई से जुड़ी हुई है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा अनेक पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र स्थल की उत्पत्ति देवताओं और राक्षसों के बीच हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई थी।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रदेव सोम को एक शाप के कारण क्षय रोग से पीड़ित होना पड़ा। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए हेतस्वीर की और भगवान शिव की कृपा से उन्हें रोगमुक्ति प्राप्त हुई। इस स्थान पर शिव ने ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट होकर सोम को आशीर्वाद दिया। तभी से यह स्थान 'सोमनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

सोमनाथ मंदिर की महिमा और धार्मिक महत्व को जानने के लिए इस पौराणिक कथा को जानना अत्यंत आवश्यक है। यह कथा केवल हमारे धर्म और संस्कृति की गहराई को उजागर नहीं करती, बल्कि भगवान शिव के अनन्य भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा

शिव पुराण के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग है। पुराणों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित कथा इस प्रकार है:
जब प्रजापति दक्ष ने अपनी सभी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ कर दिया, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। पत्नी के रूप में दक्ष कन्याओं को प्राप्त कर चन्द्रमा बहुत शोभित हुए और दक्षकन्याएँ भी अपने स्वामी के रूप में चन्द्रमा को प्राप्त कर सभी कन्याएँ भी इस विवाह से प्रसन्न थीं। चन्द्रमा की उन सत्ताइस महिलाओं में रोहिणी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय थीं, क्योंकि वे विशेष रूप से प्यार करती थीं। उनका इतना प्रेम अन्य पुरुषों से नहीं था। चन्द्रमा की अपनी तरफ अवसाद और निराशा को देखकर रोहिणी के अलावा बाकी दक्ष पुत्रियाँ बहुत दुखी हुई। वे सभी अपने पिता दक्ष की शरण में गए और उन्हें अपने कष्टों का वर्णन किया।

अपनी पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के दुःख को सुनकर दक्ष भी बड़े दुःखी हुए। उन्होंने चन्द्रमा से पाने की और शान्तिपूर्वक कहा: कलानिधे! तुमने निर्मल व पवित्र कुल में जन्म लिया है, फिर भी तुम अपनी पत्नी के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हो। तुम्हारी शरण में रहने वाली बंद भी स्त्रियाँ हैं, उनके प्रति तुम्हारे मन में प्रेम कम और अधिक, ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों है? आप किसी को अधिक प्यार करते हो और किसी को कम प्यार देते हो, ऐसा क्यों करते हो? अब तक जो व्यवहार किया गया है, वह ठीक नहीं है, फिर अब आगे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्मीयजनों के साथ बहुमुखी व्यवहार करता है, उसे नर्क में जाना पड़ता है।

इस प्रकार प्रजापति दक्ष ने अपने दामाद चन्द्रमा को प्रेमपूर्वक समर्पित किया और चन्द्रमा में सुधार किया, ऐसी सोच से, प्रजापति दक्ष वापस लौट आएंगे।

इतना सोचकर भी चन्द्रमा ने अपने ससुर प्रजापति दक्ष की बात नहीं मानी। रोहिणी के प्रति अतिशय आशक्ति के कारण उन्होंने अपने कर्तव्य की अवहेलना की तथा अपनी किसी अन्य महिला का कुछ भी ख्याल नहीं रखा और उन सभी से उदास रहे। दुबारा समाचार प्राप्त कर प्रजापति दक्ष बड़े दुःखी हुए। वे अद्भुत चन्द्रमा के पास आकर उन्हें उत्तम नीति के द्वारा देखने लगे। दक्ष ने चन्द्रमा से न्यायोचित प्रार्थना करने की। बार-बार आग्रह करने पर भी चन्द्रमा ने अवहेलनापूर्वक जब दक्ष की बात नहीं मानी, तब उन्होंने चन्द्रमा को शाप दे दिया। दक्ष ने कहा कि मेरे आग्रह करने पर भी तूने मेरी अवज्ञा की है, इसलिए क्षयरोग हो जायेगा।
दक्ष द्वारा शाप देने के साथ ही क्षण भर में चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गया। उनके क्षीण होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। सभी देवगण तथा ऋषिगण भी चिंतित हो गए। दुःखद चन्द्रमा ने अपनी अस्वस्थता तथा उसके कारणों की सूचना इंद्र आदि देवताओं तथा ऋषियों को दी। उसके बाद उनकी सहायता के लिए इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण ब्रह्माजी की शरण में चले गए। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि जो घटना हो गई है, उसे तो उभरना ही है, क्योंकि दक्ष के निश्चित को पलटा नहीं जा सकता। इसके बाद ब्रह्माजी ने उन देवताओं को एक उत्तम उपाय बताया।

ब्रह्माजी ने कहा कि चंद्रमा देवताओं के साथ कल्याण कारक शुभ प्रभास क्षेत्र में चले जाएं। वहां पर विधिपूर्वक शुभ मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके प्रतिदिन कठोर तपस्या करें। जब भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो जाएंगे, तो वे उन क्षय रोग से मुक्त कर देंगे। पितामह ब्रह्माजी की आज्ञा को स्वीकार कर देवताओं और ऋषियों के संरक्षण में चन्द्रमा देवमण्डल सहित प्रभास क्षेत्र में पहुँच गए।

वहाँ चन्द्रदेव ने मृत्युंजय भगवान की अर्चना-वन्दना और अनुष्ठान किया। वे मृत्युंजय मंत्र का जप तथा भगवान शिव की उपासना में तल्लीन हो गए। ब्रह्मा की ही आज्ञा के अनुसार, चन्द्रमा ने छह महीने तक निरंतर तपस्या की और वृषभ ध्वज का पूजन किया। दस करोड़ मृत्यंजय मंत्र का जप तथा ध्यान करते हुए चन्द्रमा स्थिरचित्त से निरन्तर खड़े रहे। उनकी तपस्या से भक्त-वत्सल भगवान शंकर प्रसन्न हो गये। उन्होंने चन्द्रमा से कहा: चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो। तुम जिसके लिए यह कठोर तप कर रहे हो, उस अपनी अभिलाषा को बताओ। मैं आपकी इच्छा के अनुसार उत्तम प्रदान करूंगा। चन्द्रमा ने प्रार्थना करते हुए विनयपूर्वक कहा: देवेश्वर! आप मेरे सब अपराधों को क्षमा करें और मेरे शरीर के इस क्षयरोग को दूर कर दें।

भगवान शिव नेतुर्य से प्रसन्न होकर चन्द्रदेव से वर शत्रु के लिए कहा: इस पर चन्द्रदेव ने वर क्रोध किया कि हे भगवान आपने मुझे इस श्राप से मुक्त कर दिया और मेरे सारे अपराध क्षमा कर दिए। इस श्राप को पूर्ण रूप से समाप्त करना भगवान शिव के लिए भी सम्भव नहीं था। इसी मध्य का मार्ग निकाला गया। चन्द्रदेव! तुम्हारी कला प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण होती रहेगी, जबकि दूसरे पक्ष में वह प्रतिदिन निरंतर बढ़ती रहेगी। इस प्रकार आप स्वस्थ और लोक-सम्मान के योग्य हो जाओगे। भगवान शिव की कृपा रूपी प्रसाद प्राप्त कर चन्द्रदेव बहुत प्रसन्न हुए। वे भक्तिभावपूर्वक शंकर की स्तुति की। ऐसी स्थिति में निराकारी शिव उनकी दृढ़ भक्ति को देखकर साकार लिंग के रूप में प्रकट हुए और संसार में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा एक अनूठा उदाहरण है कि किस प्रकार धर्म, आस्था और पौराणिक कथाएं हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि अवलोकन का सामना करने के लिए धैर्य, तप और विश्वास की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है।

सोमनाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय सभ्यता की अनूठी धरोहर भी है। यहां आने वाले अनुयायी अपने मन, मस्तिष्क और आत्मा को शांति और ऊर्जा से परिपूर्ण समझते हैं।

सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा और उसका धार्मिक महत्व हमें यह भी याद दिलाना चाहिए कि भारतीय संस्कृति और धर्म की गहराई से जुड़ी हुई ये कहानियां हमारी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ऐसे स्थानों की सुरक्षा और उनकी महिमा को जीवंत रखना हमारे लिए एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की इस पौराणिक कथा के माध्यम से हमें भगवान शिव की अनुकंपा और आस्था की शक्ति का एहसास होता है, जो हमें जीवन के हर संघर्ष में प्रेरणा और साहस प्रदान करती है।

इस प्रकार, श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और मंदिर का महत्व हम सभी के लिए एक मूल्यवान धरोहर है, जिसे हमें संजो कर रखना चाहिए। यहां की धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक महत्ता हमें भारतीय संस्कृति की समृद्धि और गहराई का अनुभव कराती है।

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