श्री लक्ष्मी चालीसा, देवी लक्ष्मी को समर्पित एक पूजनीय भजन है, जो उनके दिव्य आशीर्वाद और प्रचुरता का उत्सव मनाता है।
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में गूंजने वाले इस भक्ति मंत्र में देवी की कृपा और समृद्धि का आह्वान किया गया है। आइए श्री लक्ष्मी चालीसा के आध्यात्मिक सार को इसके छंदों के माध्यम से जानें।
श्री लक्ष्मी चालीसा हिंदी में
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा,
करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्ध करि,
परुवहु मेरी आस ॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास,
हाथ जोड़ विनती करुं ।
सब विधि करौ सुवास,
जय जननी जगदम्बिका ॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही ।
ज्ञान बुद्धि विघा दो मोहि ॥
तुम समान नहीं कोई उपकारी ।
सब विधि पूर्वहु आस हमारी ॥
जय जय जगत जननी जगदम्बा ।
सबकी तुम ही हो अवलंबा ॥
तुम ही हो सब घट घट वासी ।
विनती यही हमारी खासी ॥
जगजननी जय सिंधु कुमारी ।
दीनन की तुम हो हितकारी ॥
विनावो नित्य तुमहिं महारानी ।
कृपा करौ जग जननी भवानी ॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।
सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥
कृपा दृष्टि चितव्वो मम ओरी ।
जगजननी विनती सुन मोरी ॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता ।
संकट हरो हमारी माता ॥
क्षीरसिंधु जब विष्णु मथायो ।
चौदह रत्न सिन्धु में पायो ॥ 10
चौदह रत्न में तुम सुखरासी ।
सेवा कियो प्रभु बनी दासी ॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीना ।
रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा ।
लीनहेउ अवधपुरी अवतारा ॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं ।
सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥
पहिचानो तोहि अन्तर्यामी ।
विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी ॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी ।
कहं लौ महिमा कहौं बखानी ॥
मन क्रम वचन करै सेवावाई ।
मन चाहा ऑफिस फल पाई ॥
तजि छल कपट और चतुराई ।
पूजाहिं विविध प्रकार मनलाई ॥
और हाल मैं कहूँ बुझाई ।
जो यह पाठ करै मन लाई ॥
ताको कोई कष्ट नोई ।
मन चाहा पावै फल सोई ॥ 20
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारणि ।
त्रिविध तप भव बंधन हरिणी ॥
जो चालीसा पढै पढै ।
ध्यान लगाकर सुनावै ॥
ताकौ कोई न रोग सतावै ।
पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना ।
अन्ध बधिर कोधी अति दीना ॥
विप्र बोलाय कै पाठ करवाय ।
शंका हृदय में कभी न लावै ॥
पाठ करावै दिन चालीसा ।
ता पर कृपा करें गौरीसा ॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।
कमी न काहू की आवै ॥
बारह मास करै जो पूजा ।
तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही ।
उन सम कोई जग में कहुं नाहीं ॥
बहुविधि क्या मैं करौं बढ़ाई ।
लेय परीक्षा ध्यान करो ॥ 30
करि विश्वास करै व्रत नेमा ।
होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी ।
सब में व्यापित हो गुण खानी ॥
तुमरो तेज प्रबल जग माहीं ।
तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं ॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।
संकट कटि भक्ति मोहि दीजै ॥
भूल चूका करि क्षमा हमारी ।
दर्शन दजै दशा निहारी ॥
पैन दर्शन व्याकुल अधिकारी ।
तुमहि अछत दुःख सहते भारी ॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में ।
सब जानत हो अपने मन में ॥
रूप चतुर्भुज करके धारण ।
कष्ट मोर अब करहु चोट ॥
कुछ प्रकार मैं करौं बढ़ाई ।
ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई ॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुःख हरिणी,
हरो वेगी सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मी,
करो शत्रु को नाश ॥
रामदास धरि ध्यान नित,
विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर,
करहु दया की कोर ॥
श्री लक्ष्मी चालीसा अंग्रेजी में
॥दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा
हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्ध कारी
परुवहु मेरी आस ॥
॥ सोरठा ॥
याही मोर अरदास,
हाथ जोड़ विनति करुं ।
सब विधि करौ सुवास,
जय जननी जगदम्बिका ।
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोहि ।
ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहीं कोई उपकारी ।
सब विधि पुरवहु आस हमारी ॥
जय जय जगत जननी जगदम्बा ।
सबकी तुम ही हो अवलम्ब॥
तुम ही हो सब घट घट वासी ।
विनति यही हमारी खासी ॥
जगजननी जय सिंधु कुमारी ।
दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनावौं नित्या तुमहिं महारानी ।
कृपा करौ जग जननी भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।
सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥
कृपा दृष्टि चितवावो मम ओरि ।
जग जननी विनति सन मोरी ॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता ।
संकट हरो हमारी माता ॥
क्षीरसिंधु जब विष्णु मथयो ।
चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥
चौदह रत्नों में तुम सुखरासी ।
सेवा कियो प्रभु बानी दासी ॥
जब जब जन्म जहँ प्रभु लीन्हा ।
रूप बदल ताहां सेवा कीन्हा ॥
स्वयन् विष्णु जब नर तनु धरा ।
लिन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहिं ।
सेवा कियो हृदय पुलकाहिं ॥
अपानया तोहि अन्तर्यामि ।
विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी ।
कहां लौ महिमा कहां बखानी ॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई ।
मन इच्छिता वंचित फल पाई ॥
तजि छल कपाट अउर चतुराई ।
पूजहिं विविध भांति मन लाई ॥
और हाल मैं कहां बुझाई ।
जो यह पाठ करै मन लै॥
ताको कोई कष्ट नोई ।
मन इच्छिता पावै फल सोई ॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणी ।
त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥
जो चालीसा पड़े पडावे ।
ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ॥
ताकौ कोई ना रोग सतावै ।
पुत्रा आदि धन सम्पत्ति पावै ॥
पुत्रहिं अरु सम्पत्ति हिना ।
अंध बधीर कोधि अति दीना ॥
विप्र बोलय कै पाठ करवाइ ।
शंका दिल में कभी ना लावै॥
पाठ करवाइ दिन चालीसा ।
ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।
कामी नहिं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा ।
तेहि सम धन्या और नहिं दूजा ॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माहिं ।
उन सम कोई जग में कहूँ नाहिं ॥
बहुविधि क्या माई करौं बड़ाई ।
लेया परीक्षा ध्यान लागै ॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा ।
होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी ।
सबमें व्याप्त हो गुण खानी॥
तुम्हारो तेज प्रबल जग माहिं ।
तुम सम कोउ दयालु कहुँ नाहिं ॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।
संकट काति भक्ति मोहि दीजै ॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी ।
दरसन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी ।
तुमहिं अच्छत दुःख सहते भारी ॥
नहीं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में ।
सब जानत हो अपने मन में ॥
रूप चतुर्भुज करके धरन ।
कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई ।
ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥
॥दोहा ॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणि,
हरो वेगी सब त्रस ।
जयति जयति जय लक्ष्मी,
करो शत्रु को नाश ॥
रामदास धरि ध्यान नित,
विनय करात कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर,
करहु दया की कोर॥
श्री लक्ष्मी चालीसा में देवी लक्ष्मी के प्रति भक्ति और श्रद्धा का सार समाहित है, जो दिव्य प्रचुरता और समृद्धि की प्रतीक हैं।
इसके छंदों के माध्यम से भक्त देवी से आशीर्वाद, धन और आध्यात्मिक प्रचुरता की कामना करते हैं, तथा उन्हें आंतरिक और भौतिक समृद्धि की ओर प्रेरित करते हैं।
श्री लक्ष्मी चालीसा का नियमित पाठ करने से देवी का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है, जो हमें आध्यात्मिक पूर्णता और भौतिक समृद्धि की ओर ले जाती है।
आइए हम श्री लक्ष्मी चालीसा की दिव्य प्रचुरता में डूब जाएं और अपने जीवन में समृद्धि और आशीर्वाद का आह्वान करें।