श्री गोरक्ष चालीसा (श्री गोरक्ष चालीसा - गोरखनाथ मठ) हिंदी और अंग्रेजी में

भगवान गोरक्ष के दिव्य गुणों की प्रशंसा करने वाले गोरखनाथ मठ के एक प्रतिष्ठित भजन श्री गोरक्ष चालीसा के साथ आध्यात्मिक यात्रा पर निकलें।

हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में छंदों के साथ, यह पवित्र मंत्र आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक शांति के लिए आशीर्वाद मांगता है।

आइये श्री गोरक्ष चालीसा के गहन सार को जानें।

श्री गोरक्ष चालीसा हिंदी में

दोहा-
गणपति गिरिजा पुत्र को,
सिमरुँ बारम्बर ।
हाथ जोड़ विनती करूँ,
शरद नाम आधार । ।

चौपाई-
जय जय जय गोरख अविनाशी,
कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ।
जय जय जय गोरख गुणज्ञानी,
इच्छा रूप योगी । ।
अलख निरंजन तुम्हरो नामा,
सदा करो भक्तन हित काम ।
नाम तुम्हारा जो कोई गावे,
जन्म जन्म के दुःख नशेवे ।
जो कोई गोरक्ष नाम सुनावे,
भूत पिशाच निकट नहीं आवे ।
ज्ञान तुम्हारे योग से पावे,
रूप तुम्हार लख्या ना जावे ।
निराकार तुम हो निरावाणी,
महिमा तुम्हारी वेद बखानी ।
घट घट के तुम अन्तर्यामी,
सिद्ध चौरासी करें प्रणामी ।
भस्म अंग गले नाद विराजे,
जटा सीस अति सुन्दर साजे ।

तुम बिन देव और नहीं दूजा,
देव मुनि जन करते पूजा ।
चिदानंद सन्तन हितकारी,
मंगल करे मंगल हारी ।
पूर्ण ब्रह्म सकल घट वासी,
गोरक्षनाथ सकल प्रकाशी ।
गोरक्ष गोरक्ष जो कोई ध्यावे,
ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ।
शंकर रूप धर डमरू बाजे,
कानन कुंडल सुन्दर साजे ।
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा,
असुर मार भक्तन रखवारा ।
अति विशाल है रूप तुम्हारा,
सुर नर मुनि जन पावं न पारा ।
दीन बन्धु दीनन हितकारी,
हरो पाप हम शरण तुम्हारे ।
योग युक्ति में हो प्रकाश,
सदा करो सन्तन तन वासा ।
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा,
सिद्धि उत्पन्न अरु योग प्रचारा ।
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले,
मार मार वारी के कीले ।
चल चल चल गोरक्ष विकराला,
दुश्मन मान करो बेहाल ।
जय जय जय गोरक्ष अविनासी,
अपने जन की हरो चौरासी ।
अचल अगम हैं गोरक्ष योगी,
सिद्धि देवो हरो रस भोगी ।
काटो मार्ग यम की तुम आई,
तुम पन्ना मेरा कौन सहाय ।
अजर अमर है तुम्हरो देहा,
सनकादिक सब जोहाहिं नेहा ।
कोटि न रवि सम तेज तुम्हारा,
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।
योगी लखें तेरे माया,
पर ब्रह्म से ध्यान किया ।
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे,
अष्ट सिद्धि नव निधि घर पावे ।
शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा,
पापी दुष्ट आदम को तारा ।
अगम अगोचर निर्भय नाथा,
सदा रहो सन्तन के साथा ।
शंकर रूप अवतार तुम्हारा,
गोपीचन्द भर्तृहरि को तारा ।
सुन लीजो गुरु अरज हमारी,
कृपा सिंधु योगी ब्रह्मचारी ।
पूर्ण आस दास की कीजे,
सेवक जान ज्ञान को दीजे ।
पतित पावन अधम अधारा,
तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ।
अलख निरंजन नाम तुम्हारा,
आगम पंथ जिन योग प्रचारा ।
जय जय जय गोरक्ष भगवान,
सदा करो भक्तन कल्याणा ।
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी,
सेवा करें सिद्ध चौरासी ।
जो पढ़हि गोरक्ष चालीसा,
होय सिद्धसाक्षी जगदीशा ।
बारह पाठ पढ़ें नित्य जोई,
मनोकामना पूर्ण होई ।
और श्रद्धा से रोट चढ़ावे,
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे ।

दोहा -
सुने सुनावे प्रेमवश,
पूजे अपने हाथ
मन इच्छा सब कामना,
पूरे गोरक्षनाथ ।
अगम अगोचर नाथ तुम,
परब्रह्म अवतार ।
कानन कुंडल सिर जटा,
अंग विभूति अपार ।
सिद्ध पुरुष योगेश्वरों,
दो मुखो उपदेश ।
हर समय सेवा करूँ,
प्रातः सायं आदेश ।
स्रोत: gorakhnathmandir.in

श्री गोरक्ष चालीसा अंग्रेजी में

दोहा-
गणपति गिरिजा पुत्र को,
सिमरून बारम्बर ।
हाथ जोड़ विनती करूं,
शारद नाम अधर ॥

चौपाई-
जय जय जय गोरख अविनाशी,
कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ।
जय जय जय गोरख गुणज्ञानी,
इच्छा रूप योगी वरदानि॥
अलख निरंजन तुम्हारा नाम,
सदा करो भक्तन हित काम ।
नाम तुम्हारा जो कोई दिया,
जन्म जन्म के दुःख नशे ।
जो कोई गोरक्ष नाम सुनावे,
भूत पिशाच निकट नहीं आवे ।
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे,
रूप तुम्हार लक्ष्या न जावे ।
निराकार तुम हो निर्वाणी,
महिमा तुम्हारी वेद बखानी ।
घट घट के तुम अंतर्यामी,
सिद्ध चौरासी करें प्रणामी ।
भस्म अंग गले नाद विराजे,
जटा सीस अति सुन्दर साजे ।

तुम बिन देव और नहीं दूजा,
देव मुनि जन कराटे पूजा ।
चिदानंद संतन हितकारी,
मंगल करे अमंगल हारी ।
पूरण ब्रह्म सकल घाट वासी,
गोरक्षनाथ सकल प्रकाशी ।
गोरक्ष गोरक्ष जो कोई ध्यावे,
ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ।
शंकर रूप धर डमरू बाजे,
कानन कुण्डल सुन्दर साजे ।
नित्यानंद है नाम तुम्हारा,
असुर मार भक्तन राखावारा ।
अति विशाल है रूप तुम्हारा,
सुर नर मुनि जन पवन न पारा ।
दीन बंधु दीनन हितकारी,
हरो पाप हम शरण तुम्हारी ।

योग युक्ति में हो प्रकाशा,
सदा करो संतान तन वासा ।
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा,
सिद्धि बढे अरु योग प्रचारा ।
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले,
मार मार वैरी के किले ।
चल चल चल गोरक्ष विकराला,
दुश्मन मान करो बेहाला ।
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी,
अपने जन की हरो चौरासी ।
अचल अगम हैं गोरक्ष योगी,
सिद्धि देवो हरो रस भोगी ।
काटो मारग यम की तुम आई,
तुम बिन मेरा कौन सा है ।
अजर अमर है तुम्हारो देहा,
सनकादिक सब जोहहिं नेहा ।
कोटि ना रवि सम तेज तुम्हारा,
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।
योगी लखेन तुम्हारी माया,
पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ।
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे,
अष्ट सिद्धि नव निधि घर पावे ।
शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा,
पापी दुष्ट अधम को तारा ।
अगम अगोचर निर्भय नाथा,
सदा रहो संतान के साथ ।
शंकर रूप अवतार तुम्हारा,
गोपीचन्द भर्तृहरि को तारा ।
सुन लिजो गुरु अरज हमारी,
कृपा सिंधु योगी ब्रह्मचारी ।
पूर्ण आस दास कीजे,
सेवक जान ज्ञान को दीजे ।
पतित पावन अधम अधरा,
तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ।
अलख निरंजन नाम तुम्हारा,
आगम पंथ जिन योग प्रचारा ।
जय जय जय गोरक्ष भगवान,
सदा करो भक्तन कल्याणा ।
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी,
सेवा करें सिद्ध चौरासी ।
जो पढहि गोरक्ष चालीसा,
होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ।
बारह पथ पढ़े निति जोई,
मनोकामना पूरन होई ।
और श्रद्धा से रोट चढ़ावे,
हाथ जोड़ कर ध्यान लगावे ।

दोहा -
सुने सुनावे प्रेमवश,
पूजे अपने हाथ
मन इच्छा सब कामना,
पूरे गोरक्षनाथ ।
अगम अगोचर नाथ तुम,
परब्रह्म अवतार ।
कानन कुंडल सर जटा,
अंग विभूति अपार ।
सिद्ध पुरुष योगेश्वरों,
मुझको उपदेश दो ।
हर समय सेवा करूँ,
सुबह शाम आदेश ।

श्री गोरक्ष चालीसा एक दिव्य भजन है जो गोरखनाथ मठ से निकला भगवान गोरक्ष के गुणों का सम्मान करता है। हिंदी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह आध्यात्मिक जागृति और आंतरिक शांति का आह्वान करता है।

आइये हम श्री गोरक्ष चालीसा के पवित्र तरंगों में डूब जाएं तथा दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक उत्थान का अनुभव करें।

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