श्री गायत्री चालीसा, देवी गायत्री को समर्पित एक पूजनीय भजन है, जो उनकी दिव्य ज्योति और आशीर्वाद का उत्सव मनाता है।
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में गूंजने वाले इस भक्ति मंत्र में आध्यात्मिक ज्ञान और बुद्धि के लिए देवी की कृपा का आह्वान किया गया है। आइए श्री गायत्री चालीसा के श्लोकों के माध्यम से इसके आध्यात्मिक सार को समझें।
श्री गायत्री चालीसा हिंदी में
॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननी, मंगल करणी, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूर्ण काम ॥
॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥
अक्षर चौबीस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनुना ॥
हंसारूढ़ सप्त धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होइ ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥
तुम्हारी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तेरे ज्योति निराली ॥
तुम्हारी महिमा पराण पावें ।
जो शरद शत मुख गुण गावें ॥
चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥
महामन्त्र प्रत्येक जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नहींं ॥१२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकाशै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥
सृष्टि बीज जग जननी भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्याणी ॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥
तुम भक्तन की भक्ततुम ।
जन्निहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥
महिमा अपरम्पार तेरे ।
जय जय जय त्रिपदा भय हरि ॥
शुद्ध सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥
तुमहिं जानी कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा ॥
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥
तुम्हारी शक्ति डूबी सब ।
मातातुम सब ठौर समाई ॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे ।
सब गतिवानआपकेप्रेरे ॥
सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक त्राता ॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तेरे पटकी भारी ॥२४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तपार कृपा करें सब कोई ॥
मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥
गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हरि ॥२८ ॥
सन्ति हीन सुसन्तति पावेन ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहीं आवें ॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥
घर वर सुख प्रदान लहैं कुमारी ।
विध रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥
जो सद्गुरु सों देत पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बुढागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥२०॥
ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारे पास आये ।
सो सो मन फौज फल पावें ॥
बल, बुद्धि, विघा, शील स्वभाव ।
धन वैभव यश तेज उछाउ ॥
सकल कृपालु उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥चार॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥
श्री गायत्री चालीसा अंग्रेजी में
॥दोहा ॥
हिं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखंड ॥
जगत जननी, मंगल करणी, गायत्री सुखदाम ।
प्रणवोन् सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरण काम ॥
॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत् जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनि ॥१॥
अक्षर चौबीस परम पुनीता ।
इनमेण बसेन शास्त्र, श्रुति, गीता ॥
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥
हंसारूढ़ सीताम्बर धारी ।
स्वर्णकान्ति शुचि गगन बिहारी॥ ४॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरामति खोई ॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥
तुम्हारी शरण गहै जो कोई ।
तरई सकल संकट सोन सोई॥ ८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दीपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥
तुम्हारी महिमा परां पावें ।
जो शरद शत मुख गुन गावें ॥
चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥
महामंत्र जितने जग माहिं ।
कोउ गायत्री सम नाहिं ॥ १२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकाशै ।
अलस पाप अविघा नासाई ॥
सृष्टि बिज जग जननी भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्याणी ॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम पुत्र पावें सुरता तेते ॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥ १६॥
महिमा अपरंपार तुम्हारी ।
जय जय जय त्रिपदा भय हरि ॥
पूर्णत सकल ज्ञान विज्ञान ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥
तुमहिं जनि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पै कछु रहै न क्लेशा ॥
जानत तुमहिं, तुमहिं है जय ।
परस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥
तुम्हारी शक्ति दीपै सब थाई ।
माता तुम सब ठौर समाई॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रिये ॥
सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालकपोषक नाशक त्राता ॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सं तारे पटकी भारी ॥ २४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई॥
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावेन ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥
गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हरि ॥ २८॥
सन्तति हिन सुसन्तति पावेन ।
सुख सम्पत्ति युत मोद मनावेन ॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवेन ॥
जो साधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा राहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी॥
जो सदगुरु पुत्र दीक्षा पावेन ।
सो साधन को सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लाहैं मनोरथ गृहि विरागी ॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की जानकारी ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥ ३६॥
ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिन्तित, भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारी एवेन ।
सो सो मन वंचित फल पावेन ॥
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभावो ।
धन वैभव यश तेज उच्चौ॥
सकल बढेन उपजे सुख नाना ।
जो यह पथ करै धरि ध्याना ॥ ४०॥
॥दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पथ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥
श्री गायत्री चालीसा में दिव्य ज्ञान और प्रकाश की अवतार देवी गायत्री के प्रति भक्ति और श्रद्धा का सार समाहित है।
इसके छंदों के माध्यम से भक्त देवी से आशीर्वाद और ज्ञान की कामना करते हैं, तथा उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और अंतर्दृष्टि की ओर प्रेरित करते हैं।
श्री गायत्री चालीसा का नियमित पाठ करने से देवी गायत्री का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है, जो हमें आध्यात्मिक जागृति और ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करती है।
आइये हम श्री गायत्री चालीसा के दिव्य प्रकाश में डूब जाएं और अपने जीवन में ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का आह्वान करें।