श्री आदिनाथ चालीसा (श्री आदिनाथ चालीसा) हिंदी और अंग्रेजी में

हिंदू आध्यात्मिकता के समृद्ध ताने-बाने में चालीसा का विशेष स्थान है। ये भजन, आम तौर पर चालीस छंदों से मिलकर बने होते हैं, जिन्हें विभिन्न देवताओं और पूजनीय व्यक्तियों की स्तुति में गाया या सुनाया जाता है।

ऐसी ही एक चालीसा जो भक्तों के साथ गहराई से जुड़ती है, वह है "श्री आदिनाथ चालीसा" (श्री आदिनाथ चालीसा), जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है।

श्री आदिनाथ चालीसा हिंदी में

॥ दोहा॥
शीश नवा अरिहंत को,
सिद्धन को, सिद्धान्त को ।
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम ॥

सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मन्दिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को,
मन मन्दिर में धार ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय आदिनाथ जिन स्वामी ।
तीनकाल तिहूँ जग में नामी ॥

वेष दिगम्बर धार रहे हो ।
कर्मो को तुम मार रहे हो ॥

हो सर्वज्ञ बात सब जानो ।
सारी दुनियां को पहचानो ॥

नगर अयोध्या जो कहलाये ।
राजा नाभिराज बताये ॥४॥

मरुदेवी माता के उदर से ।
चैत वडी नवमी को गायन ॥

तूने जग को ज्ञान शिक्षक ।
कर्मभूमि का बीज उपाया ॥

कल्पवृक्ष जब लगे बिखरने ।
जनता आई दुखड़ा कहे ॥

सबका संशय तुरन्त भगाया ।
सूर्य चन्द्र का ज्ञानस्थापना ॥८॥

खेती करना भी सिखाया ।
न्याय दण्ड आदिक विवरण ॥

तूने राज किया नीति का ।
सबु आपसे जग नेडित ॥

पुत्र आपका भारत बताया ।
चक्रवर्ती जग में कहलाया ॥

बाहुबली जो पुत्रप्रेम ।
भारत से पहले मोक्ष सिधारे ॥१२॥

सुता आपकी दो लड़ाई ।
ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ॥

उन्हें भी विद्या सिखाई ।
अक्षर और गिनती बतलाई ॥

एक दिन राजसभा के अंदर ।
एक अप्सरा नाच रही थी ॥

आयु उसकी बहुत अल्प थी ।
इसलिए आगे नहीं नाच रही थी ॥१६॥

विलय हो गया उसका सत्व ।
झट आया वैराग्य पैरकर ॥

बेटो को झट पास बुलाया गया ।
राज पाट सब में बांटवाया ॥

छोड़ सभी झंझट संसारी ।
वन जाने की करी तैयारी ॥

राव हजारों के साथ सिद्धाए ।
राजपाट तज वन को धाये ॥२०॥

लेकिन जब तून तप किना ।
सबने अपना रास्ता लेना ॥

वेष दिगम्बर तजकर सबने ।
छाल आदि के कपड़े पहने ॥

भूख प्यास से जब घबराये ।
फल आदिक खा भूख मिटाये ॥

तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये ।
जो अब संसारं में दिखलाये ॥२४॥

छै: महीनों तक ध्यान लगाये ।
फिर भजन करने को धये ॥

भोजन विधि जाने नहीं कोय ।
कैसे प्रभु का भोजन होय ​​॥

इसी तरह बस लेटे लेटे ।
छः महीना भोजन बिन गया ॥

नगर हस्तिनापुर में आये ।
राजा सोम श्रेयांस प्रकट ॥२८॥

याद करो पिछला भव आया ।
तुमको फौरन ही पड़धाया ॥

रस अंधा का तून पाया ।
संसार को उपदेश बनाओ ॥

पाठ करे चालीसा दिन ।
नित चालीसा ही बार ॥

चांदखेड़ी में आय के ।
खेवे धूप अपार ॥३२॥

जन्म दरिद्री होय जो ।
होय कुबेर समान ॥

नाम वंश जग में चले ।
नहीं संतान ॥

तप कर केवल ज्ञान पाया ।
मोक्ष गए सब जग हर्षाया ॥

अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर ।
चांदखेड़ी भँवरे के अंदर ॥३६॥

यह अतिशय लड़ाई है ।
कष्ट क्लेश का होय सफाया ॥

मानतुंग पर दया प्रकट हुई ।
जंजीरे सब काट गिराई ॥

राजसभा में मान स्थापित ।
जैन धर्म जग में फैलाया ॥

मुझ पर भी महिमा दिखाओ ।
कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥४०॥

॥ सोरठा ॥
पढ़े करे चालीसा दिन,
नित चालीसा ही बार ।
चांदखेड़ी में आय के,
खेवे धूप अपार ॥

जन्म दरिद्र होय जो,
होय कुबेर समान ।
नाम वंश जग में चले,
नहीं संतान ॥

श्री आदिनाथ चालीसा अंग्रेजी में

॥दोहा ॥
शीश नव अरिहंत को,
सिद्धन को, करूँ प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम ॥

सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मंदिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को,
मन मंदिर में धार ॥

॥ चौपाई ॥
जय जय आदिनाथ जिन स्वामी ।
तीनकाल तिहूं जग में नामी ॥

वेश दिगम्बर धर रहे हो।
करमो को तुम मार रहे हो ॥

हो सर्वज्ञ बात सब जानो ।
सारी दुनियाँ को पहचानो ॥

नगर अयोध्या जो कहाले ।
राजा नाभिराज बतलाये ॥ ४॥

मरुदेवी माता के उदर से ।
चैत वदी नवमी को जनमे ॥

तुमने जग को ज्ञान सिखाया ।
कर्मभूमि का बीज उपाय ॥

कल्पवृक्ष जब लगे बिछड़ने ।
जनता आई दुःखदा कहे॥

सब का संशय तभी भागय ।

सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया॥ ८॥

खेती करना भी सिखाय ।
न्याय दण्ड आदिक समझौता ॥

तुमने राज किया नीति का ।
सबक आपस में जग ने सीखा ॥

पुत्र आपका भारत बताया ।
चक्रवर्ती जग में कहलय ॥

बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे ।
भारत से पहिले मोक्ष सिधारे ॥ १२॥

सुता आपकी दो बटलाई ।
ब्राह्मी और सुन्दरी कहालै॥

उनको भी विद्या सिखलाई ।
अक्षर अरु गिनति बतलाई ॥

एक दिन राजसभा के अंदर ।
एक अप्सरा नाच रही थी ॥

आयौ उसकी बहुत अल्प थी ।
इसलिए आगे नहीं नाच रही थी ॥ १६॥

विलय हो गया उसका सतवार ।
झट आया वैराग्य उमड़कर ॥

बेटो को झट पास बुलाया ।
राज पात सबमें बंटवाया ॥

छोड़ सब झंझट संसार ।
वन जने की करि तैयारी॥

राव हजारों साथ सिधाए ।
राज पात तज वन को धाये ॥ 20॥

लेकिन जब तुमने टैप किया ।
सबने अपना रास्ता लीना ॥

वेष दिगम्बर तजकर सबने ।
छाल अदि के कपडे पहने ॥

भूख प्यास से जब घबराये ।
फल आदिक खा भूख मिटाये ॥

तीन सौ त्रसठ धर्म फैलाये ।
जो अब दुनियाँ में दिखलाये ॥ २४॥

छै: माहिने तक ध्यान लगाये ।
फिर भजन करने को धाय॥

भोजन विधि जाने नहीं कोय ।
कैसे प्रभु का भोजन होय ​​॥

इसी तरह बस चलते चलते ।
छः माहिने भोजन बिन बीते ॥

नगर हस्तिनापुर में आये ।
राजा सोम श्रेयांस बताये ॥ २८॥

याद तभी पिछला भाव आया ।
तुमको फौरं हि पद्धया ॥

रस गन्ने का तुमने पाया ।
दुनिया को उपदेश सुनाय ॥

पाठ करे चालीसा दिन ।
नित चालीसा ही बार ॥

चांदखेड़ी में आय के ।
खेवे धूप अपार ॥ ३२॥

जनम दारिद्री होय जो ।
होय कुबेर समान॥

नाम वंश जग में चले ।
जिनके नहीं संतान॥

तप कर केवल ज्ञान पाया ।
मोक्ष गये सब जग हर्षाय॥

अतिशय युक्त तुम्हारा मंदिर ।
चांदाखेड़ी भंवरे के अंदर ॥३६॥

उसका यह अतिशय बटलाया ।
कष्ट क्लेश का होय सपहा॥

मानतुंग पर दया दिखाई ।
जंजीरे सब काट गिराई॥

राजसभा में मान बढाया ।
जैन धर्म जग में फैलाया ॥

मुझ पर भी महिमा दिखाओ ।
कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥ ४०॥

॥ सोरठा ॥
पथ करे चालीसा दिन,
नित चालीसा ही बार ।
चांदखेड़ी में आये के,
खेवे धूप अपार ॥

जनम दारिद्री होय जो,
होय कुबेर समान ।
नाम वंश जग में चले,
जिनके नहीं संतान॥

निष्कर्ष:

श्री आदिनाथ चालीसा हिंदू धर्म में भगवान आदिनाथ को समर्पित एक पूजनीय भजन है, जो सत्य और धार्मिकता का प्रतीक है।

इस चालीसा के माध्यम से भक्त भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं, जो सुख और मुक्ति के शाश्वत दाता हैं। यह आध्यात्मिक उत्थान और ईश्वर की भक्ति के साधन के रूप में कार्य करता है।

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