हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा का एक विशिष्ट महत्व है। भगवान शिव को त्रिलोकीनाथ, महादेव और भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है। उनकी पूजा के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें से एक प्रमुख और अत्यंत सुन्दर स्तोत्र है "शिव मानस पूजा स्तोत्र"।
यह स्तोत्र विशेष रूप से मानसिक पूजा का एक रूप है, जिसमें भक्त अपनी भावनाओं और विचारों को समर्पित करके भगवान शिव की आराधना करते हैं।
शिव मानस पूजा स्तोत्र का पाठ और उसकी साधना न केवल भक्ति को प्रगाढ़ बनाती है, बल्कि मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन प्राप्त करने में भी सहायक होती है। यह स्तोत्र अत्यंत सरल शब्दों में लिखा गया है, परन्तु इसका प्रभाव अत्यंत गहन और असीम होता है।
भक्तगण इस स्तोत्र को गाकर या उसके मनन करके अपनी दिनचर्या में सकारात्मक परिवर्तन महसूस कर सकते हैं।
इस स्तोत्र में भगवान शिव की महिमा, उनकी शक्ति और उनके दैवीय स्वरूप का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि भगवान शिव की पूजा केवल बाहरी मूर्त तक सीमित नहीं है, बल्कि उनका स्मरण और ध्यान हमारे अंतर्मन की शुद्धि के लिए भी आवश्यक है। शिव मानस पूजा स्तोत्र के माध्यम से हम अपने मन, बुद्धि और आत्मा को भगवान शिव के चरणों में समर्पित कर सकते हैं।
शिव मानस पूजा स्तोत्र का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह हमें हमारी आध्यात्मिक यात्रा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
यह हमें सिखाता है कि सच्ची पूजा वह है जो हम अपने हृदय से करते हैं, बिना किसी बाहरी प्रदर्शन के। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए और उनके चरणों में अपना सब कुछ अर्पित करना चाहिए।
शिव मानस पूजा स्तोत्र
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम् ।
जातीचम्पकबिल्वपत्रचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥१
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पाणकम् ।
शाकानामयुतं जलं हितकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥२
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।
साष्टांगं प्रणतिः स्तुतिर्हुविधा ह्येतत्समस्तं मया
सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥३
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः ।
संज्ञचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्व गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ॥४
किं वा वानेन धनेन वाजिक्रिभी प्राप्तेन राज्येन किम ।
किं वा पुत्रकलत्र पशुभिर देहं गेहेन किम ।
ज्ञातवेत तत्क्षण भंगुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दुरात: ।
स्वमार्थं गुरु वाक्यतो भज भज श्री पार्वती बल्भम् ॥५
उपसंहार
शिव मानस पूजा स्तोत्र एक ऐसा दिव्य साधन है, जिसके माध्यम से हम भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं और उनसे अपनी आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति की प्रार्थना कर सकते हैं। यह स्तोत्र न केवल भक्तों के लिए एक मार्गदर्शन है, बल्कि उन्हें अपने जीवन की आधारशिला से लड़ने की शक्ति और साहस भी प्रदान करता है।
जब हम इस स्तोत्र का पाठ और मनन करते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि भगवान शिव सदैव हमारे साथ हैं, हमें मार्गदर्शन और सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। उनकी कृपा से हम अपने जीवन में सभी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं और अपने आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।
शिव मानस पूजा स्तोत्र हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची भक्ति वह है जो हम अपने हृदय से करते हैं, न कि केवल बाहरी अदंबरों के माध्यम से। यह हमें आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि की ओर प्रेरित करता है, जिससे हम अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और संतुलित बना सकते हैं।
अतः शिव मानस पूजा स्तोत्र का नियमित पाठ और मनन हमें मानसिक शांति, विश्वास और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है। इस स्तोत्र के माध्यम से हम अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं और भगवान शिव के चरणों में अपनी असीमित भक्ति को समर्पित कर सकते हैं।