सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा - श्री महादेवजी पार्वती(सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा - श्री महादेवजी पार्वती)

सकट चौथ का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।

इसका नाम संकष्टी चतुर्थी से भी जाना जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से भगवान गणेश और माता पार्वती को समर्पित है, जिसके आशीर्वाद से सभी विघ्न और संकट दूर होते हैं। इस पावन दिन पर भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।

व्रत की शुरुआत सूर्योदय से होती है और यह चंद्रदर्शन तक चलता है। व्रतधारी इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत समाप्त करते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, लेकिन माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी, जिसे सकट चौथ के नाम से जाना जाता है, का विशेष महत्व है। इस दिन को तिलकूट चौथ या माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है।

सकट चौथ के दिन प्रत्येक समय में व्रत कथा सुनने का विशेष प्रावधान है। इस व्रत कथा में महादेव शिव और माता पार्वती के साथ भगवान गणेश की महिमा का वर्णन किया गया है। इस कथा को सुनने से भक्तों को मानसिक शांति और शक्ति प्राप्त होती है और उनके जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं।

सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा - श्री महादेवजी पार्वती

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुन्दर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की।

तब शिवाजी ने कहा: हमारी हार-जीत का गवाह कौन होगा?

पार्वती ने वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा: बेटा! हम चौपड़ बजाना चाहते हैं, लेकिन यहाँ हार-जीत का गवाह कोई नहीं है। इसी खेल के अंत में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी हो कि तुमने किससे जीता, किसने हारा?

खेल आरंभ हुआ। दैवयोग सात बार पार्वतीजी ही अर्पित। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय हुआ तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामस्वरूप पार्वतीजी ने उसे एक पांव से लंगड़ा होने दिया और वहां के मिट्टी में पड़े रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।

बालक ने प्रसन्नतापूर्वक कहा: माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएं।

तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आई और वे बोलीं: यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएंगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। बहुत सारी जगहें वे कैलाश पर्वत चली गईं।

एक वर्ष बाद श्रावण में नाग-कन्याएं और गणेश पूजन के लिए आये। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्री गणेशजी का व्रत किया।

तब गणेशजी ने उन्हें दर्शन देकर कहा: मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो।

बूढ़ा बोला: भगवान! मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच जाता हूँ और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाते हैं।

गणेशजी तथास्तु प्रतीक अंतर्धान हो गए। प्राचीन भगवान शिव के चरणों में पहुंच गए। शिवाजी ने उससे वहाँ तक के साधन के बारे में पूछा।

तब पुराने ने सारी कथा शिवाजी को सुना दी। उसी दिन पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गईं थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन का पर्यंत श्रीगणेश का व्रत किया , जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जागृत हुई।

वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा: भगवान! मैंने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवाजी ने गणेश व्रत का इतिहास उनसे कहा।

तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन के पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। २१वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आए। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का महात्म्य सुना।

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सकट चौथ व्रत का धार्मिक और सामाजिक जीवन में अत्यधिक महत्व है। यह व्रत न केवल व्यक्तिगत कल्याण और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है, बल्कि इसे सामाजिक एकता और पारिवारिक प्रेम के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। व्रतों का मानना ​​है कि इस पावन अनुष्ठान से उनके बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि निश्चित होती है।

सकट चौथ की पौराणिक कथा में शिव-पार्वती और गणेशजी की उपासना का विशेष महत्व बताया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान गणेश सभी संकटों का नाश करने वाले देवता हैं। उनकी कृपा से ही जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ सरलता से समाप्त हो जाती हैं और सुख-शांति का वास होता है।

यथार्थ सप्तम चतुर्थी का व्रत हमारे जीवन में धार्मिकता, भक्ति और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि यह समाज में आपसी प्रेम और सद्भावना को बढ़ाने का साधन भी माना जाता है। सकट चौथ के इस पावन अवसर पर श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।

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