नर्मदा चालीसा, पवित्र नदी नर्मदा को समर्पित एक भजन है, जो उनके दिव्य सार और आशीर्वाद का जश्न मनाता है।
हिंदी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह भक्ति मंत्र आध्यात्मिक शुद्धि और आशीर्वाद के लिए नदी की कृपा का आह्वान करता है। आइए इसके छंदों के माध्यम से नर्मदा चालीसा के आध्यात्मिक सार को जानें।
नर्मदा चालीसा - जय जय नर्मदा भवानी हिंदी में
श्री नर्मदा चालीसा:
॥ दोहा॥
देवी पूजित, नर्मदा,
विशाल विशाल ।
चालीसा वर्णन करता हूँ,
कवि अरु भक्त उदार॥
आपकी सेवा से सदा,
मिटे पाप महान ।
तट पर कर जप दान नर,
पढ़ैं नित ज्ञान ॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय नर्मदा भवानी,
तुम्हारी महिमा सब जग जानी ।
अमरकंठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।
कन्या रूप सकल गुण खानी,
जब प्रकटी नर्मदा भवानी ।
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा,
अश्वनि माघ मास अवतारा ॥४
वाहन मकर आपको साजं,
कमल पुष्प पर आप विराजें ।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,
तब ही मनवांछित फल पावैं ।
दर्शन करत पाप कटि जा,
कोटि भक्त गण नित्य नहाते ।
जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥८
तुम सुख पावैं,
अंतिम समय परमपद पावैं ।
मस्तक मुकुट सदा ही साजं,
पाँव पञ्जनी नित ही राजैं ।
कल-कल ध्वनि करती हो माता,
पाप तप हरती हो माता ।
पूरब से पश्चिम की ओर,
धाणां माता नाचत मोरा ॥१२
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,
सुत आदि तुम्हरौं यश गावैं ।
शिव गणेश भी तेरे गुण गावां,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं ।
कोटि तीर्थ नर्मदा तट,
ये सब कहलाते दु:ख हरे ।
मनोकामना पूर्ण करती,
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥१६
कनखल में गंगा की महिमा,
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ।
नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहें माता मंगल में ।
एक बार कर के बधा,
तरत पीढी है नर नारा ।
मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हारी भजन करें नित देवा ॥२०
जटा शंकरी नाम तुम्हारा,
तू कोटि जनों को है तारा ।
समोद्भवा नर्मदा तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो ।
तुम्हारी महिमा कहीं नहीं जाये,
करत न बने मातु बड़ाई ।
जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीय तथा सुखदाता ॥२४
चाल सर्पिणी सम है तुम,
महिमा अति विशाल है ।
तुममें अस्थि भी भारी है,
छुवत पाषाण होत वर वारि ।
यमुना मे जो मनुज नहाता,
सात दिनों में वह फल पाता है ।
सरस्वती तीन दीनों में देती है,
गंगा तुरत बाद हींगेगी ॥२८
पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाता मन भर के ।
तुम्हारी महिमा अति भारी है,
मोटे गाते हैं नर-नारी ।
जो नर तुम में नित्य नहता,
रुद्र लोक मे पूजा जाता है ।
जड़ी बूटियाँ तट पर राजें,
मोहक दृश्य सदा हीं साजें ॥३२
वायु उत्सव तीरा,
जो हरती नर तन की पीरा ।
घाट-घाट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहीं सकते सारी ।
नहीं जानूँ मैं तुम्हारी पूजा,
और सहारा नहीं मम दूजा ।
हो प्रसन्न ऊपर माँ माता,
तुम ही मातु मोक्ष के दाता ॥३५
जो मनुष्य यह नित पढ़ता है,
उसका मन सदा ही विशाल ।
जो शत बार ऐसा होता है,
वह विद्या धन दौलत पाता है ।
अगणित बार पढै जो कोई,
पूर्ण मनोकामना होई ।
सबके उर में बसत नर्मदा,
यहाँ वहाँ सर्वत्र नर्मदा ॥४०
॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के,
जो करता है जाप ।
माता जी की कृपा से,
दूर होत संताप॥
॥ इति श्री नर्मदा चालीसा ॥
नर्मदा चालीसा अंग्रेजी में
॥दोहा ॥
देवी पूजित, नर्मदा,
महिमा बड़ी अपार ।
चालीसा वर्णन करात,
कवि अरु भक्त उदार॥
इनकी सेवा से सदा,
मिटे पाप महान् ।
तत पर कर जप दान नर,
पाते हैं नित ज्ञान॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय नर्मदे भवानी,
तुम्हारी महिमा सब जग जानी ।
अमरकांठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की जानकारी ।
कन्या रूप सकल गुन खानी,
जब प्रकटिन नर्मदा भवानी ।
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा,
अश्वनी माघ मास अवतार ।
वहां मकर आपको साजें,
कमल पुष्प पर आप विराजें ।
ब्रह्मा हरि हर तुअको ध्यावैं,
तब ही मानवंचित फल पावैं ।
दर्शन करत पाप कटि जात,
कोटि भक्त गण नित्य नहाते ।
जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं ।
मगरमच्चा तुम में सुख पावैं,
अन्तिम समय परमपद पावैं ।
मस्तक मुकुट सदा ही साजैन,
पाँव पैंजनि नित ही राजैं ।
कल-कल ध्वनि कराती हो माता,
पाप ताप हरति हो माता ।
पूरब से पश्चिम की ओर,
बहतिन माता नाचत मोरा ।
शौनक ऋषि तुम्ह्रौ गुण गावैं,
सूत आदि तुम्हारौं यश गावैं ।
शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं ।
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,
ये सब कहलते दु:ख हारे ।
मनोकामना पूरण कराती,
सर्व दु:ख मान नित हि हरतिं ।
कनखल में गंगा की महिमा,
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ।
पर नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहती माता मंगल में ।
एक बार कर के स्नान,
तारत पीढी है नर नारा ।
मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हारी भजन करें नित देवा ।
जटा शंकरी नाम तुम्हारा,
तुमने कोटि जनों को है तारा ।
समोद्भव नर्मदे तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो ।
तुम्हारी महिमा कही नहीं जय,
करत न बनती मातु बड़ाई ।
जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीये तथा सुख दाता ।
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,
महिमा अति अपार है तुम्हारी ।
तुममें पड़ी अस्थि भी भारी,
छुवत पाषाण होत वर वारि ।
यमुना में जो मनुज नहाता,
सात दिनों में वह फल पाता ।
सरस्वती तीन दीनों में देती,
गंगा तुरत बाद हीन देती ।
पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाटा मन भर के ।
तुम्हारी महिमा है अति भारी,
जिसको गाते हैं नर-नारी ।
जो नर तुम में निति नहाता,
रुद्र लोक में पूजा जाता है ।
जदी बूटियाँ तट पर राजें,
मोहक दृश्य सदा हीन साजेन ।
वायु सुगन्धित चलति तीरा,
जो हरति नर तन की पीरा ।
घट-घट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहीं सकते सारी ।
नहीं जानूं मैं तुम्हारी पूजा,
और सहारा नहीं मम दूजा ।
हो प्रसन्न ऊपर मम माता,
तुम ही मातु मोक्ष की दाता ।
जो मानव यह नित है पढता,
उसका मान सदा ही बढ़ता ।
जो शत-बार इसे गाता है,
वह विद्या धन दौलत पाता ।
अगनीत बार पढाई जो कोई,
पूरण मनोकामना होई ।
सबके उर में बसत नर्मदा,
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।
॥दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनी के,
जो करता है जाप ।
माता जी की कृपा से,
दूरु होत संताप ॥
॥इति श्री नर्मदा चालीसा ॥
नर्मदा चालीसा पवित्र नदी नर्मदा के प्रति भक्ति और श्रद्धा का सार प्रस्तुत करती है, जो आशीर्वाद और शुद्धि प्रदान करती है।
इसके श्लोकों के माध्यम से भक्तगण नदी से आध्यात्मिक शुद्धि और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, तथा उन्हें आध्यात्मिक विकास और कल्याण की प्रेरणा देते हैं।
नर्मदा चालीसा का नियमित पाठ करने से माँ नर्मदा का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है, जो हमें आध्यात्मिक पूर्णता और दिव्य संबंध की ओर ले जाती है।
आइए हम नर्मदा चालीसा के दिव्य सार में डूब जाएं और अपने जीवन में आशीर्वाद और शुद्धि का आह्वान करें।