मोहिनी एकादशी व्रत कथा: एक परिचय
मोहिनी एकादशी, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन विष्णु भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस व्रत को रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मोहिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे दिव्य सुख की प्राप्ति होती है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। व्रतधारी इस दिन विशेष नियमों और विनियमों का पालन करते हुए उपवास करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
महर्षि वशिष्ठ बोले: हे राम! आपने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है, तब भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पाप तथा दुखों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान : ... चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उन्होंने कहा कि नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्म आदि बनवाए गए थे। वृक्षों पर आम, जमिन, नीमा आदि के अनेक वृक्ष भी लगे थे।
उनके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पिता आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्य की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।
मोटर वाहन से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद उसने अपने गहने एवं कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सब कुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसे साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगी। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।
एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारगार में डाल दिया गया। कर्मचारियों में उसे अत्यंत दु:ख दिया गया। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा।
वह नगरी से निकलकर वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को देखा गया। कुछ समय बाद वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा।
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस परघन से उन्हें कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई।
वह कौण्डिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि: हे मुने! मेरे जीवन में बहुत पापड़े हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करो। इससे अनेक जन्मों के हेतु हुए मेरु पर्वत जैसे समस्त महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।
हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर स्थापित विष्णुलोक को समर्पित हो गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके महात्म्य को पढ़ने या सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।
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मोहिनी एकादशी व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक और मानसिक शुद्धि का भी माध्यम है।
इस व्रत के पालन से व्यक्ति को आत्मिक शांति और आध्यात्मिक बल मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णित इस व्रत की महिमा अनंत है और यह भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
इसलिए, हर विष्णु भक्त को इस पावन व्रत पर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। मोहिनी एकादशी व्रत हमें यह सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से भगवान की कृपा अवश्य मिलती है।