फाल्गुन संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

भारतीय संस्कृति में व्रतों का अपना विशेष महत्व है। ये व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। इन व्रतों में से एक है 'फाल्गुन संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत', जो भगवान गणेश की पूजा और वंदना के लिए मनाया जाता है। इस व्रत के पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है जो हमें गणेश भगवान के अनुशासन एवं उनके आशीर्वाद के महत्व को समझाती है।

फाल्गुन संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

प्रत्येक माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन विधि विधान से भगवान श्री गणेशजी की पूजा करनी चाहिए। फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
एक बार की बात है। एक आदर्श राजा का राज्य था। वह राजा अत्यंत धर्मात्मा थे। उनके राज्य में एक अत्यंत सज्जन ब्राह्मण थे जिनका नाम था-विष्णु शर्मा।

विष्णु शर्मा के 7 पुत्र थे। वे सातों अलग-अलग रहते थे। विष्णु शर्मा की जब वृद्धावस्था आई तो उन्होंने सभी बहुओं से कहा-तुम सब गणेश चतुर्थी का व्रत किया करो। विष्णु शर्मा स्वयं भी इस व्रत को करते थे। आयु हो जाने पर यह सोचकर वह बहुओं को ढूंढ़ना चाहते थे।

जब उन्होंने बहुओं से इस व्रत के लिए कहा तो बहुओं ने आज्ञा न मानकर उनका अपमान किया। अंत में धर्मनिष्ठ छोटे बहू ने ससुर की बात मान ली। उसने पूजा के सामान की व्यवस्था करके ससुर के साथ व्रत किया और भोजन नहीं किया। ससुर को भोजन कराया।

जब आधी रात बीती तो विष्णु शर्मा को उल्टी और दस्त लग गए। छोटे बहू ने मल-मूत्र से खराब कपड़े को साफ करके ससुर के शरीर को दही और पका। पूरी रात बिना कुछ खाए-पिए जागती रही।

व्रत के दौरान रात्रि में चंद्रोदय पर स्नान कर फिर से श्री गणेश की पूजा भी की जाती है। विधिवत पारण किया। विपरीत स्थिति में भी अपना धैर्य नहीं खोया। पूजा और ससुर की सेवा दोनों श्रद्धा भाव से करती रहती है।

गणेश जी ने उन दोनों पर अपनी कृपा की। अगले दिन से ही ससुर जी का स्वास्थ्य ठीक होने लगा और छोटे बहू का घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। फिर तो अन्य बहुओं को भी इस प्रसंग से प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने ससुर से क्षमा मांगते हुए फाल्गुन कृष्ण संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया। और साल भर आने वाली हर चतुर्थी का व्रत करने का शुभ संकल्प लिया जाता है। श्री गणेश की कृपा से सभी का स्वभाव सुधर गया।

समापन:

फाल्गुन संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान गणेश की पूजा और उनके आशीर्वाद से हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। यह व्रत हमें समर्पण की भावना से जीने की महत्वपूर्णता को सिखाता है और हमें उन्हें पूजने की शक्ति प्रदान करता है।
इसके अलावा, इस व्रत के द्वारा हम अपनी आत्मा को ध्यान में लाने का अवसर प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध करते हैं।
इस व्रत को मनाकर हम अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति के साथ ही भगवान गणेश के कृपालु आशीर्वाद को भी प्राप्त करते हैं। इसलिए, फाल्गुन संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत को मनाकर हम अपने जीवन को समृद्ध, सुखमय और आनंदमय बना सकते हैं।
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