हिंदू धर्म में व्रतों का अत्यंत महत्व है, और इनमें से एक है चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत। यह व्रत गणेश चतुर्थी के अतिरिक्त भी मनाया जाता है, और इसकी कथा में गणेश भगवान की पूजा के साथ ही धार्मिक और सामाजिक महत्व होता है।
चलिए, इस लेख में हम चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा को समझेंगे और इस व्रत के महत्व को जानेंगे।
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा
चैत्र गणेश चतुर्थी कथा:
राजा राज्य का भार अपने मंत्री धर्मपाल पर सौंपकर, विभिन्न प्रकार के खेल-खिलाउने से अपने राजकुमार का पालन-पोषण करने लगे। राज्य शासन हाथ में आ जाने के कारण मंत्री धर्मपाल धन-धान्य से समृद्ध हो गए। मंत्री महोदय को एक से बढ़कर एक पांच पुत्र हुए। मंत्री पुत्रों का भाग्योदय के साथ विवाह हुआ और वे सब धन का उपभोग करने लगे। मंत्री के सबसे छोटे बेटे की बहू अत्यंत धर्मपरायण थी।
चैत्र कृष्ण चतुर्थी आने पर उन्होंने भक्तिपूर्वक गणेश जी की पूजा की। उसका पूजन और व्रत देखकर उसका आशीर्वाद प्राप्त करें - अरे! क्या तंत्र-मंत्र द्वारा मेरे पुत्र को वश में करने का उपाय कर रही है! बार-बार सास के निषेध किए जाने पर भी जब बहू नहीं मानी तो सास ने कहा - अरी बुरा! तू मेरी बात मान नहीं रही है, मैं पीटकर तुझे ठीक कर दूंगी, मुझे यह सब तांत्रिक अभ्यास पसंद नहीं हैं। इसके उत्तर में बहू ने कहा - हे सासु माँ, मैं संकट नाश करने वाले गणेशजी का व्रत कर रही हूँ, यह व्रत अत्यंत फलदायी होता है। अपनी बहू की बात सुनकर उसने अपने बेटे से कहा - हे बेटा! तुम्हारे बहूत सारे जादू-टोन पर आरोप लग गए हैं। मेरे कई बार मना करने पर भी वह दुराग्रह वश नहीं मान रही है। इस दुष्टा को मार-पीट के ठीक कर दो।
मैं गणेश जी को नहीं देखता, ये कौन है और इसका व्रत कैसे होता है? हम लोग तो राजकुल के इंसान हैं, फिर हम लोगों की किस विपत्ति को ये नष्ट कर देंगे । माता की प्रेरणा से उसने बहू को मारा पिता। बहुत कष्ट सहकर भी उसने व्रत किया। पूजनोपरांत वह गणेशजी का स्मरण करती हुई उनसे प्रार्थना करने लगी कि हे गणेश जी! हे जगत्पति! आप हमारे सास ससुर को किसी प्रकार का कष्ट देंगे। हे गणेश्वर! जिससे उनके मन में आपकी प्रति भक्ति भावना जागृत हो।
गणेश जी ने सबके सामने ही भगवान राजकुमार का अपमान करके मंत्री धर्मपाल के महल में छिपाकर रख दिया। बाद में उसके वस्त्र, आभूषण आदि उतार कर राजमहल में फेंक दिए और स्वयं अंतर्धान हो गए । हे राजा ने अपने पुत्र को शीघ्रता से पुकारा, परन्तु कोई प्रत्युत्टर न मिला। फिर उन्होंने मंत्री के महल में जाकर पूछा कि मेरा राजकुमार कहाँ चला गया? महल में उसके सभी वस्त्राभूषण तो हैं लेकिन राजकुमार कहाँ चला गया है? ऐसा निन्दनीय कार्य किसने किया है? हाय! मेरा राजकुमार कहाँ गया?
राजा की बात सुनकर मंत्री ने कहा - हे राजन! आपका चंचल पुत्र कहाँ चला गया, इसका मुझे पता नहीं है। मैं अभी नगर, बाग-बगीचे आदि सभी स्थानों की खोज करता हूँ। इसके बाद राजा नौकरों, सेवकों आदि से कहने लगे। हे अंगरक्षकों! ! मेरे बेटे का शीघ्र पता समाप्त। राजा का आदेश दूत लोग सभी स्थानों में खोज करने लगे। जब कहीं भी पता न लगा तो आकर राजा से तानाशाही निवारण किया कि महाराज! अपहरण का कोई सुराग नहीं मिला। राजकुमार को आते-जाते भी किसी ने नहीं देखा।
उनकी बातों को सुनकर राजा ने मंत्री को बुलाया। मंत्री से राजा ने पूछा कि मेरे राजकुमार कहां हैं? हे धर्मपाल! मुझसे साफ़-साफ़ कह दे कि राजकुमार कहाँ है? उसके वस्त्राभूषण तो दिखाई देते हैं, केवल वही नहीं है! अरे छोड़ो! मैं तुम्हारा वध कर डालूंगा। तेरे कुल को नष्ट कर दूँ, इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है। राजा द्वारा दंतक्षण पर मंत्री हैरान हो गए।
मंत्री ने सर झुकाकर कहा कि हे भूपाल! मैं पता लगाता हूँ। इस नगर में वृद्ध अपहरणकर्ताओं का कोई खेल भी नहीं है और न ही हीरोद आदि रहते हैं। फिर भी हे प्रभु! पता नहीं किसने ऐसा नीच काम किया और ना जाने वह कहाँ चला गया? धर्मपाल ने आकर महल में अपनी पत्नी और पुत्रों से पूछा। अपनी सभी बहुओं को बुलाकर यह भी पूछा जाता है कि यह कार्य किसने किया है? यदि राजकुमार का पता नहीं लगा तो राजा मुरे अभागे के वंश का विनाश कर देंगे ।
ससुर की बात सुनकर छोटी बहू ने कहा कि वह उठ गई! आप इतने चिंतित क्यों हो रहे हैं। आप पर गणेश जी का कोप हुआ है। इसलिए आप गणेश जी के महादेव बनें। राजा से लेकर नगर के समस्त स्त्री-पुरुष, वृद्ध-वृद्ध संकट नाश चतुर्थी का व्रत विधिपूर्वक करें तो गणेश जी की कृपा से राजकुमार मिल जायेंगे, मेरा वचन कभी मिथ्या नहीं होगा ।
छोटे बहू की बात सुनकर ससुर ने हाथ जोड़कर कहा कि हे बहू! तुम धन्य हो, तुम मेरा और मेरे कुल का उद्धार करोगे। भगवान श्री गणेश जी की पूजा कैसे की जाती है? हे सुलक्षणी तुम बताओ। मैं मन बुद्धि होने के कारण व्रत के महात्म्य को नहीं जानता हूँ। हे कल्याणी हम लोगों से जो भी अपराध हुआ हो, उसे क्षमा कर दो और राजकुमार का पता लगा दो। तब सब लोगों ने कष्टनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत आरंभ किया।
राजा सहित समस्त भक्तों ने गणेश जी को प्रसन्न करने हेतु व्रत किया। हे गणेश जी प्रसन्न हो गए। सब लोगों के रहते ही रहते वे राजकुमार को प्रकट कर दिया। राजकुमार को देखकर सभी नगरवासी आश्चर्यचकित हो गए। सब लोग बहुत प्रसन्न हुए। राजा के हर्ष की तो सीमा ही नहीं रही। राजा कह ऊँचा - गणेश जी धन्य हैं और साथ ही साथ मंत्री की कल्याणी बहू भी धन्य हैं । कृपा से मेरा पुत्र यमराज के पास जाकर भी लौट आया। इसलिए सभी लोग इस संतानदायक व्रत को निरंतर विधिपूर्वक करते रहें।
श्री गणेश बोले - हे माता, इस लोक तथा सभी लोगों में इससे बढ़कर कोई व्रत नहीं होता। इसी कथा को युधिष्ठर ने श्रीकृष्ण से सुना था और इसी चैत्र कृष्ण चौथ का व्रत करके अपने खोए राज्य को फिर से प्राप्त किया था।
समापन:
इस लेख में, हमने चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को समझा और उसका महत्व जाना। यह व्रत गणेश भगवान की भक्ति में अत्यंत महत्वपूर्ण है और साथ ही इसके पालन करने से धार्मिक और सामाजिक रूप से सक्षम होता है। गणेश भगवान की कृपा से सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस चैत्र संकष्टी पर, हम सभी को गणेश भगवान की भक्ति में शामिल होने की शुभकामनाएं देते हैं, और आशा है कि गणेश जी हमें अपनी कृपा से सदा सुरक्षित और समृद्ध रखें।