भौम प्रदोष व्रत कथा हिंदी में

भौम प्रदोष व्रत का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह व्रत भगवान शिव की पूजा और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। प्रदोष का अर्थ है 'प्रदोष काल' अर्थात दिन और रात्रि के संधि काल का समय। इस समय भगवान शिव की उपासना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

प्रदोष व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और यदि यह व्रत मंगलवार को पड़ता है तो इसे 'भौम प्रदोष' कहा जाता है। भौम प्रदोष व्रत विशेष रूप से मंगल दोष, ऋण मुक्ति और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए माना जाता है। भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं, दिनभर उपवास करते हैं, और शाम को शिवलिंग की पूजा करते हैं।

भौम प्रदोष व्रत की कथा भगवान शिव और उनके भक्तों की भक्ति और समर्पण की अद्भुत गाथा को दर्शाती है। यह व्रत कथा बताती है कि कैसे शिवजी ने अपने भक्तों की प्रार्थना सुनकर उन्हें कष्टों से मुक्त किया और उनकी मनोकामनाएँ पूरी कीं।

इस व्रत की कथा में एक बार एक गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कहानी आती है। उन्होंने अपने जीवन में अनेक कष्ट झेले, लेकिन शिवजी की पूजा और प्रदोष व्रत के पालन से उनकी सभी समस्याएं समाप्त हो गईं और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त हुई।

भौम प्रदोष व्रत कथा

जो प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ता है वह प्रदोष भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत कहलाता है। इसकी कहानी इस प्रकार है..

एक समय की बात है। एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने अपनी भक्ति उस वृद्ध महिला की श्रद्धा का परीक्षण करने का विचार किया।

हनुमानजी साधुओं का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त! जो हमारी इच्छा पूरी करे?
वह आवाज वृद्धा के कान में पड़ी, पुकार सुन वृद्धा जल्दी से बाहर आई और साधुओं को प्रणाम कर बोली- आज्ञा महाराज!
हनुमान वेशधारी साधु बोले- मैं भूखा हूँ , भोजन करूँगा, तुम थोड़ी ज़मीन लीप दो।
बूढ़ा मोटा में पड़ गया। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज! मैं मिट्टी खोदने और उसे साफ करने के अतिरिक्त कोई दूसरा आदेश देने पर पूरा ध्यान दूंगा।

साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के पश्चात कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।
यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परन्तु वह दृढ़ थी। उसने अपने बेटे को बुलाकर साधुओं को संतुष्ट किया।

वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही अपने पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उनकी पीठ पर आग जलाई। आग जलाकर दु:खी मन से बूढ़ा अपने घर में चली गई।

इधर भोजन बदले साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- उनका भोजन बन गया है। तुम अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।
इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न दें।

लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज दी। वह अपनी माँ के पास आ गया। अपने पुत्र को जीवित देखकर वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधुओं के चरणों में गिर पड़ी।

तब हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।
बजरंगबली की जय !
हर हर महादेव !

निष्कर्ष:

भौम प्रदोष व्रत कथा हमें भगवान शिव की असीम कृपा और उनकी भक्ति की महत्ता का बोध कराती है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है। शिवजी के प्रति पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा रखने वाले भक्त इस व्रत को पूर्ण निष्ठा और विधि-विधान से करते हैं।

व्रत की समाप्ति पर शिवलिंग का अभिषेक और आरती की जाती है, जिससे भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।

इस बात पर आधारित है कि भगवान शिव अपने भक्तों की सभी पीड़ाओं को पूर्ण करते हैं और उन्हें दुखों से मुक्त करते हैं। इस व्रत का पालन करने से भगवान शिव की अनंत कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।

इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति को इस व्रत का पालन कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। भौम प्रदोष व्रत कथा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि भगवान शिव की भक्ति और उनकी सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है।

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