बगलामुखी चालीसा के साथ आध्यात्मिक यात्रा पर चलें, यह देवी बगलामुखी के दिव्य गुणों की प्रशंसा करने वाला एक पवित्र भजन है।
हिंदी और अंग्रेजी में छंदों के साथ, यह पूजनीय मंत्र आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य कृपा के लिए आशीर्वाद मांगता है। आइये बगलामुखी चालीसा की गहन भक्ति का पता लगाएं।
बगलामुखी चालीसा हिंदी में
॥ दोहा ॥
सर नवाई बगलामुखी,
लिखूँ चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा,
पूरण हो मम काज ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥
बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥
शशि ललाट कुंडल छवि न्यारी ।
असतुति करहिं देव नर-नारी ॥
पीतवसन तन पर तव राजै ।
हाथहिं मुदगर गदा विराजै ॥ ४॥
तीन नयन गल चंपक माला ।
अमित तेज प्रकट है भला ॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।
शोभ निरखि सकल जन मोहि॥
आसन पीतवर्ण महारानी ।
भक्तन की तुम हो भक्तन ॥
पीताभूषण पीतहिं चंदन ।
सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ ८॥
अहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।
वेद पुराण संत अस भाखै ॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।
जाके किये होत दुःख-नाशा ॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फेरवै ।
पीतवसन देवी पहिरावय ॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबिर गुलाल सुपारी चंदन ॥ १२॥
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़ाइ धरै उर ध्याना ॥
धूप दीप कर्पूर की बाती ।
प्रेम-सहित तब करै आरती ॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पूर्वहु मातु मनोरथ मोरे ॥
मातु भगति तब सब सुख खानी ।
करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ १६॥
त्रिविध ताप सब दुःख नाशवहु ।
तिमिरस्मृतकर ज्ञानवर्द्धनहु ॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं ।
अविरल भगति ज्ञान दो मोहिं ॥
पूजनांत में हवन करावै ।
सा नर मनवंचित फल पावै ॥
सर्षप होम करै जो कोई ।
ताके वश सचराचर होई ॥ 20॥
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।
भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥
दुःख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।
निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥
फूल अशोक हवन जो करे ।
ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरी ॥
फल सेमर का होम करीजाय ।
निश्चित वाको रिपु सब छेजै ॥ २४॥
गुग्गुल घृत होमय जो कोई ।
तेहि के वश में राजा होई ॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै ।
ताको सकल बंध कट जावै ॥
बिलाक्ष का पाठ जो करहीं ।
बीज मंत्र तुम्हरो उच्चराहीं ॥
एक मास निशि जो कर जापा ।
तेहि कर मित्त सकल संतापा ॥ २८॥
घर की शुद्ध भूमि जहाँ होई ।
साधका जाप करै तहं सोई ॥
सेइ वांछित फल निश्चित पावै ।
यामै नहिं कदु संशय लावै ॥
ओर तीर नदी के जाई ।
साधक जाप करै मन लाई ॥
दस सहस्र जप करै जो कोई ।
सक काज तेहि कर सिद्धि होई ॥ ३२॥
जाप करै जो लक्ष्यहिं बारा ।
ताकर होय सुयशविस्तारा ॥
जो तव नाम जपै मन लाइ ।
अल्पकाल महं रिपुहिं नासाई ॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नाम ।
वाको पूरन हो सब काम ॥
नव दिन जाप करे जो कोई ।
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ ३६॥
ध्यान करै जो बन्ध्या नारी ।
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥
प्रातः सायं अरु मध्याना ।
धरे ध्यान होवैकल्याणा ॥
कहं लागि महिमा कहौं तिहारी ।
नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा ।
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ ४०॥
॥ दोहा ॥
सन्तशरण को तनय हूँ,
मिश्र धातु सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं,
धाम हरिपुर ग्राम ॥
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की,
श्रावण शुक्ल मास ।
चालीसा रचनाएँ कियौ,
तव चरणन को दास ॥
बगलामुखी चालिया अंग्रेजी में
॥दोहा ॥
सर नवई बगलामुखी,
लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा,
पूरण हो मम काज॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता॥
बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥
शशि ललाट कुंडल छवि न्यारी ।
असौति करहिं देव नर-नारी॥
पीतवसं तं पर तव राजै ।
हथहिं मुदगर गदा विराजै ॥ ४॥
तिन नयन गल चंपक माला ।
अमित तेज प्रकटत है भला ॥
रत्नजाति सिंहासन सोहै ।
शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥
आसन पीतवर्ण महारानी ।
भक्तन की तुम हो वरदानी॥
पिताभूषण पिताहिं चन्दन ।
सुर नर नाग करत सब वंदन॥ ८॥
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।
वेद पुरान संत अस भाखै॥
अब पूजा विधि करण प्रकाश ।
जाके किये होत दुःख-नशा॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा पहारवै ।
पीतवसं देवि पाहिरावै ॥
कुमकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबीर गुलाल सुपारी चंदन॥ १२॥
मलय हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़ि धरये उर ध्याना ॥
धूप दीप कर्पूर की बाटी ।
प्रेम-साहित तब करै आरती ॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पुरवहु मातु मनोरथ मोरे॥
मातु भगति तब सब सुख खानी ।
करहुँ कृपा मोपर जनजानी ॥१६ ॥
त्रिविध ताप सब दुःख नाशवहु ।
तिमिर मितकर ज्ञान बधावहु ॥
बर-बर मैं बिनावहूं तोहिं ।
अविरल भगति ज्ञान दो मोहिं ॥
पूजनंत में हवन करवाइ ।
सा नर मानवंचित फल पावै ॥
सरशाप होम करै जो कोई ।
वश सचराचर होइ ले ॥ 20॥
तिल तन्दुल संग क्षीर मिरावै ।
भक्ति प्रेम से हवन करावै॥
दुःख दारिद्र व्यापै नहीं सोई ।
निश्चय सुख-सम्पति सब होई ॥
फूल अशोक हवन जो करी ।
ताके गृह सुख-सम्पति भारी ॥
फाल सेमर का होम करिजै ।
निश्चय वाको रिपु सब छिजै ॥ २४॥
गुग्गुल घृत होमाई जो कोई ।
तेहि के वश में राजा होई॥
गुग्गुल तिल संग होम करवाइ ।
ताको सकल बंध कत जावै॥
बिलाक्षर का पथ जो करहिं ।
बीज मंत्र तुम्हारो उच्चराहिं ॥
एक मास निशि जो कर जापा ।
तेहि कर मित्त सकल संतापा ॥ २८॥
घर की शुद्ध भूमि जहां होई ।
साधका जाप करै तहं सोई ॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।
यमइ नहिं कदु संशय लावै ॥
अथवा तीर नदी के जाई ।
साधक जाप करै मन लै॥
दस सहस्र जप करै जो कोय ।
सक काज तेहि कर सिद्धि होई॥ ३२॥
जाप करै जो लक्षणहिं बारा ।
ताकार होय सुयशाविस्तारा ॥
जो तव नाम जपै मन लाई ।
अल्पकाल महान रिपुहिं नासै ॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नाम ।
वाको पूरन हो सब काम ।
नव दिन जाप करे जो कोई ।
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ ३६॥
ध्यान करै जो बंध्या नारी ।
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥
प्रातः सयान अरु मध्याणा ।
धरे ध्यान होवैकल्याणा ॥
कहां लगी महिमा कहां तिहारी ।
नाम सदा शुभ मंगलकारी॥
पथ करै जो नित्य चालीसा ।
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ ४०॥
॥दोहा ॥
संतशरण को तनय हूँ,
कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मंडल बसून,
धाम हरिपुर ग्राम ॥
उन्नीस सौ पिचनाबे सान की,
श्रावण शुक्ल मास ।
चालीसा रचना कियाऊ,
तव चरणन को दास ॥