सनातन धर्म में व्रत और त्योहारों का महत्व अत्यंत उच्च माना जाता है। इन व्रतों और त्योहारों के माध्यम से हम अपनी आत्माओं को पवित्र और शुद्ध बनाते हैं और ईश्वर की कृपा प्राप्त करते हैं। आमलकी एकादशी एक ऐसा पवित्र व्रत है जो हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण है।
इस व्रत को विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है और इसका उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा और स्तुति करना है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है आमलकी के पेड़ की पूजा करने वाले एकादशी।
यहां आपको आमलकी एकादशी व्रत की कथा का विवरण मिलेगा, जिसमें इस व्रत की महत्वता और इसके अद्भुत फलों का वर्णन किया गया है।
आमलकी एकादशी व्रत कथा
आमलकी : ... व्रत कथा!
राजा मांधाता बोले कि हे वशिष्ठजी! यदि आप मुझ पर कृपा करें तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए, जिससे मेरा कल्याण हो। महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन्, मैं सभी व्रतों से उत्तम और अंत में मोक्ष देने वाले आमलकी एकादशी के व्रत का वर्णन करता हूँ। यह एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में होती है।
एक वैदिश नाम का नगर था जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सर्ववर्ण आनंद सहित रहते थे। उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था। उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था। वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था। उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत करते थे।
एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी होती है। उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से धात्री/आंवले का पूजन करने लगे और इस प्रकार की स्तुति करने लगे।
हे धात्री! आप ब्रह्मस्वरूप हो, आप ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हुए हो और समस्त पापों का नाश करने वाले हो, आपको नमस्कार है। अब तुम मेरा अर्घ्य स्वीकार करो। आप श्रीराम चन्द्रजी द्वारा सम्मानित हो, मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ, अत: आप मेरे समस्त पाप का नाश करो। उस मंदिर में सब ने रात्रि को जागरण किया।
रात के समय वहां एक बहेलिया आया, जो अत्यंत पापी और दुराचारी था। वह अपने कुटुम्ब का पालन जीव-हत्या करके करता था। भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गई और विष्णु भगवान तथा एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगी। इस प्रकार अन्य व्यक्तियों की मूछ वह भी सारी रात जागकर जीती रही।
प्रात:काल होते ही सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी अपना घर चला गया। घर जाकर उसने खाना खाया। कुछ समय बीतने के बाद उस बहेलिए की मृत्यु हो गई।
लेकिन उस आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुराथ रखा गया। युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना के साथ मिलकर तथा धन-धान्य से युक्त होकर 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा।
वह तेज में सूर्य के समान, कांति में चन्द्रमा के समान, वीरता में भगवान विष्णु के समान तथा क्षमा में पृथ्वी के समान थी। वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था। वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था। दान देना उसका नित्य कर्तव्य था।
एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया। दैवयोग से वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वहां पर आ गए और राजा को अकेला देखकर मारो, मारो शब्द करते हुए राजा की ओर दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे कि इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता, पिता, पुत्र, पुत्र आदि अनेक संबंधों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है अत: इन्हें सर्वथा मारना चाहिए।
ऐसा इसलिए कि वे म्लेच्छ उस राजा को मारने दौड़े और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उसके ऊपर फेंके। वे सभी अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो गए और उनके युद्ध पुष्प के समान प्रतीत हुए। अब उन म्लेच्छों के अस्त्र-शस्त्र उलटा गर्म पानी पर प्रहार करने लगे जिससे वे मूर्छित होकर गिरने लगे। उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्री अत्यंत सुन्दर होती हुई भी उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, उसकी आँखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी, जिससे वह दूसरी काल के समान दिखती थी।
वह स्त्री म्लेच्छों को मारने दौड़ी और थोड़ी ही देर में उसने सब म्लेच्छों को काल के गाल में पहुंचाया। जब राजा सोकर उठा तो उसने म्लेच्छों को मारा हुआ यह देखकर कि इन शत्रुओं को किसने मारा है? इस वन में मेरा कौन हितैषी रहता है? वह ऐसा विचार कर ही रहा था कि आकाशवाणी हुई: हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन आपकी सहायता कर सकता है। इस आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने राज्य में आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा।
महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन्! यह आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णुलोक को जाते हैं।
रोचक तथ्य:
आमलकी एकादशी को बरस मे रंगभरनी एकादशी, श्रीनाथद्वारा मे कुंज एक्वा तथा खाटू नगरी मे खाटू एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी मे आँवले के पेड़ों की पूजा की जाती है।
समापन:
आमलकी एकादशी की कथा के माध्यम से हमें यह सिखाया जाता है कि ईश्वर की भक्ति और पूजा से हम अपने जीवन को परिपूर्ण से भर देते हैं। इस व्रत को करके हम अपने मन, वचन और कर्म को शुद्ध और पवित्र बनाते हैं और अपने आस-पास के लोगों को भी इस अद्भुत अनुभव का निर्माण करते हैं।
आमलकी एकादशी व्रत को निष्काम भाव से किया जाना चाहिए, और इसका पालन करके हम अपनी आत्मा को ईश्वर के साथ जोड़ते हैं। इस व्रत के पालन से हमें धैर्य, धैर्य और समर्पण का भाव प्राप्त होता है, जो हमें एक सकारात्मक और संतुलित जीवन जीने में मदद करता है।
इस पवित्र व्रत को करके हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति करते हैं और भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं। इस आमलकी एकादशी की कथा का अनुसरण करने से हम अपने जीवन को एक नई दिशा और उत्साह प्रदान करते हैं और भगवान की शरण में जाकर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।